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नकली घी -स्वाद व सेहत के साथ साथ आस्था के साथ भी धोखा 

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कुछ भी घी जैसा दिखता और महकता हो वो घी है।नकली घी

नकली घी बनाने में काम में ली जा रही है जानवरों की चर्बी 

नकली घी आज बाजार की सच्चाई है। अब घी की मिलावट कोई दूकानदार नहीं बल्कि बड़े बड़े कॉरपोरेट हाउस और कम्पनिया कर रही है  

घी स्वास्थ्य और स्वाद और खास खुशबू का एक ऐसा प्रतीक है जिसकी मान्यता और स्वीकार्यता भारत के हर धर्म और जाती व वर्ग में है।
लेकिन आज के दौर में नकली घी माफिया इतना अधिक सक्रिय हो चुका है की असली नकली घी की पहचान ही खत्म हो गई है। बाजार में 450 रु किलो से लेकर 5000 रु किलो तक के भाव में  घी मिल रहा है। घी में  पिछले कई दशक से मिलावट की जा रही है।


पारम्परिक घी दूध के दही को मथ कर मक्खन निकाल कर व मक्खन को गर्म करके घी निकला जाता था।जिसकी लागत वर्तमान में  प्रति किलो 1000 रु  से 1500 रु तक हो सकती है।आजकल मशीनों से दूध की क्रीम निकाल कर घी व मक्खन बनाया जाता है।लेकिन तकनीकी रूप से  इसको घी नहीं कहा जा सकता है।इसे बटर आयल (मक्खन का तेल ) कहा जाता है। 
खुद FSSAI भी घी को लेकर स्पष्ट परिभाषा अब तक नहीं दे पायी है।अब तक मात्र कुछ मापदंड ही FSSAI ने स्थापित किये है। और वो भी काफी नहीं है जो शुद्ध देशी घी और नकली घी में फर्क करता हो।  

बस कुछ भी घी जैसा दिखता और महकता हो वो घी है। मजे की बात तो ये है की बाजार में उपलब्ध हर घी पर देशी घी लिखा होता है जो देसी गाय के दूध से बनता है। लेकिन इनमे से कोई भी भैंस या जर्सी गाय होने का दावा नहीं करता है। क्यों की इसके लिए  FSSAI कोई मापदंड ही नहीं है।

जिससे ये परिभाषा और प्रमाणित रूप से देशी गाय के दूध से बना हो। इसी का फायदा उठा कर दूध और घी माफिया ग्राहकों को बेवकूफ बनाते चले आ रहे है। 

 घी माफिया घी में आलू ,नारियल तेल व वनस्पति तेल की मिलावट करते है। लेकिन पिछले कई वर्षो से जानवरो की चर्बी की मिलावट या जानवरो की चर्बी में ही कृत्रिम  घी की खुशबु (Diacetyl) आदि मिलाकर बेचा जा रहा है।

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छत्तीसगढ़ के रायपुर जिला स्थित A 2 मिल्क इंडिया के निदेशक श्री राजेंद्र तम्बोली से बातचित में उन्होंने बताया की घी में हो रही चर्बी की मिलावट के चलते रायपुर के कई बड़े मंदिरो में घी के दीपक व घी से बने प्रसाद पर रोक लगा दी गई है।उनके और उनके साथियों के प्रयासों से शुद्ध घी के लिए जनता को प्रेरित किया जा रहा है।


भारत में कई ग्रामीण व दूरस्थ  इलाको में सूअर पाले जाते है।वहां पर सूअर का दूध भी निकला जाता है जिसको गाय या भैंस के दूध के साथ मिला कर बेचा जाता है ,वैज्ञानिक रूप से सूअर  का दूध नुकसानदायक न हो कर स्वास्थ्यवर्धक होता है।

लेकिन आस्था के अनुसार हिन्दू या मुस्लिम दोनों धर्मों में यह वर्णित व घृणित है।यहाँ तक की संशोधित  पशु चर्बी जैसे सूअर की चर्बी (Lard ) गाय व भैंस की (Tallow) आदी से भी घी बनाया जा रहा है।

अब  नकली घी  दूध को बनाने के लिए सीधे ही खतरनाक रसायनो का उपयोग हो रहा है जो किसी भी लेब टेस्ट में पास हो जाये। बड़े बड़े डेयरी घराने इन का उपयोग सरकार और FSSAI के आँखों तले कर भी रहे है। लेकिन कार्यवाही कुछ नहीं ?

भारत जैसे देश में जहां दूध की खपत उत्पादन से दोगुनी तिगुनी  है।यहाँ पर दूध और घी में कुछ भी  मिलावट का होना आम हो चुका है। यहाँ तक की तथाकथित श्वेत वस्त्र या भगवा वस्त्र पहनकर कई बाबा  मठाधीश भी मिलावटी घी व दूध के व्यापार में संलिप्त हो चुके है।

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बड़े से बड़े ब्रांड नकली या मिलावटी घी के व्यापर में शामिल है। इसके बावजूद भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण सालाना एक हफ्ते की धरपकड़ या त्योहारी सीजन में छोटे दुकानदारों पर कार्यवाही के बाद पुरे साल खामोश रहता है।घी स्वाद के साथ साथ आस्था से भी जुड़ा है।

हर किसी को पता है की बाजार में घी नकली व मिलावटी है। लेकिन फिर भी विकल्प के अभाव में नकली घी ख़रीदा जा रहा है। उपभोक्ता की दूध व दूध से बने उत्पाद खरीदने की मज़बूरी समझ से परे है। हर उपभोक्ता यही मानकर दूध घी खरीद रहा है की उसके वाला नकली नहीं है। 

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