संपादकीय

अगले जन्म मोहे कीड़ा न कीजो

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 होली विशेषांक

हालही में पश्चिमी देशो ने झींगुर कीड़ा(Cricket (insect) को पीस कर आटा बना लिया जिसको धरती का सबसे प्रोटीन युक्त आहार माना जाता है। अब बहुत जल्दी ही यह भारत में आ जायेगा। हालाँकि कीड़ा खाना हम भारतीयों की नैतिकता में नहीं है। लेकिन अंग्रजी बोल कर रंगबिरंगे सभ्यता से ओतप्रोत हम भारतीयों में अंग्रेज बनने की एक नैतिक होड़ जरूर है। तो हो सकता है की कुछ अति खुल्ली  मानसिकता से पीड़ित बुद्धिजीवी इस दौड़ में दौड़ पड़े।

कल्पना कीजिये आपके बर्गर में कोई कॉकरोच कीड़ाआये तो शिकायत की जगह ये आपको बोनस लगे।

चाइना में तो लोग अलग से कीड़ा डीप फ्राई कर के खा जाते है।लेकिन चाउमीन और मंचूरियन की तरह कीड़े खाना फ़िलहाल भारतीयों के लिए दूर की कौड़ी लग सकता है । लेकिन यूरोप की नीतियां  भारतीय नस्लों में जल्दी घर कर जाती है।

अब तक हमारी सभ्यता में कीड़ो से  शहद, रेशम और लाख को ही स्वीकृति थी। लेकिन पश्चिमी देशो से आये प्रोसेस फ़ूड में हमें कोचिनियल ( लाल रंग के मादा कीड़ा का पाउडर ) जैसे खाद्य अवयव दिए जो कीड़ो से ही बनते है। लेकिन अब वो दिन दूर नहीं जब झींगुर के पाउडर को दूध में डाल कर पीना शुरू कर दे। भारत में अभी कीड़े खाने की परम्परा नहीं है।एकांत में कीड़ो को खाद्य वस्तु से निकल देना और किसी की उपस्थिति में खाद्य को ही फेंक देना हमारा स्वभाव है।

लेकिन कीड़ो को ही खाद्य बना लिया है तो कीड़ो की शामत समझो जिन कीड़ो को परमाणु युद्ध के बाद भी बचे रहने का वरदान था अब वो किसी की भूख के कारण कुछ सालो में ही अस्तित्वहीन हो जाने की आशंका बनी हुई है।

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कीड़ा होना और कीड़ा होने की पीड़ा तो एक कीड़ा ही समझ सकता है।
इंसानो से पहले अपने अस्तित्व में आये ये कीड़े इंसानो के बाद भी शायद इस धरती पर रहेंगे।
लेकिन इंसान अपने अस्तित्व की शुरूवात से ही कीड़ो का दुश्मन रहा है।पहले आग से जला कर मरता था आज जहर दे कर मार रहा है।कीड़ो को मारते मारते इंसान ने धरती को ही जहरीला बना दिया है। बेचारे कीड़े जाये तो कहाँ जाये।

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