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सुपाच्य भाप में पकी इडली।
कई रोगो का इलाज व रोकथाम है इडली।
इडली दक्षिण भारतीय उन व्यंजनों में से एक है जिसे सम्पूर्ण भारत के अलावा विदेशों में भी बहुत चाव से खाया जाता है। भारत के शहरो में बाकायदा इडली सांभर को फ़ास्ट फ़ूड की तरह बेचा जाता है।इडली अनाज को भाप में पका कर खाने के व्यंजन को कहते है। इसकी लोकप्रियता दक्षिण में अधिक होने से ऐसे व्यंजन को इडली के रूप में ही पहचाना जाता है। जबकि हर राज्य व प्रदेश में भाप में पके अनाज को खाने की परम्परा रही है।
आमतौर पर दक्षिण भारतीय इडली चावल और उड़द को भिगो कर व पीस कर घोल तैयार करके विशेष प्रकार के पारम्परिक मटके या इडली बनाने के कुकर में भाप में पकाकर तैयार की जाती है।दक्षिण भारत के अलावा भारत में अन्य राज्यों में भी भाप में पकाकर कई तरह व्यंजन बनाये जाते है।जैसे गुजरात के खमण ढोकला व राजस्थान में होली के बाद गणगौर के उत्सव में पानी में थार के रेगिस्तान में उगने वाली घास “बूर” के साथ पानी में उबाल बाजरे के ढोकले बनाये जाते है।
भारतीय संस्कृति और परम्परा में भाप से पकाने का पुराना इतिहास रहा है।
चीन की संस्कृति से आये मोमोज भी भाप में ही पकाये जाते है। ऐसे ही कश्मीर ,पंजाब ,नागालैंड ,भारत के हर राज्य में अनाज को भाप में पका कर अलग अलग तरह के व्यंजन बनाये व पसंद किये जाते है।
स्वास्थ्य के हिसाब देखे तो भाप में पका भोजन कई मायनों में बेहतर है। इडली की ही तरह बाजरा ,ज्वार ,रागी गेहूं आदि अनाजों की इडली बनाई जा सकती है। इसके लिए कोई विशेष तैयारी की जरूरत नहीं होती है।सीधे ही किसी अनाज का घोल बना कर उसकी इडली बनाई जा सकती है ,व इस इडली को किसी भी सब्जी या दाल के साथ खाया जा सकता है।
इससे अनाज में मौजूद कई लाभकारी तत्व व माइक्रो न्यूट्रिशन नष्ट नहीं होते तथा पौष्टिकता बरक़रार रहती है।
भारतीय मानसिकता भोजन को लेकर पिछले 80 सालो से जड़वत है। यानी की किसी भी तरह से प्राचीन व्यंजनों व भोजन में नवविचार पर कोई ज्यादा सोच ही नहीं पाता है।घरो में गेहू की रोटी ही प्रधानता से दोनों वक़्त बनाई और खाई जाती है।मात्र होटलो के फ्यूजन फ़ूड और बहुराष्ट्रीय कम्पनियो के उत्पादों के नए फ्लेवर को नवाचार मान लिया जाता है।
भाप में पके अनाज को किसी भी रूप में दैनिक खाया नहीं जाता है। यह इसलिए बाजार में अपना अस्तित्व बचाने में कामयाब रही है। क्योंकी इसको फ़ास्ट फ़ूड से जोड़ कर देखा जाता है। तथा इडली डोसा अपने स्वाद और पौष्टिकता की वजह से दुनिया भर में प्रसिद्ध है। दक्षिण भारत में अपनी हर सभ्यता को बरक़रार रखने की कला में महारथ है।
भाप में पके किसी भी अनाज के आटे की इडली रोटी से बेहतर सुपाच्य है। मोटे अनाज जैसे बाजरा और ज्वार जिसकी रोटी बेलकर बनाना आसान नहीं लेकिन इडली बहुत ही सुगमता से बनायी जा सकती है।ऐसे किसी भी अनाज की इडली शुगर और बीपी जैसे रोगों में भी लाभदायक है।विशेष कर अपना वजन कम करने वाले अनाज की इडली से अपने आटे के उपयोग को कम कर सकते है तथा अपने हिसाब से रचनात्मकता का उपयोग करके इसे और भी स्वादिष्ट और लज्जतदार बनाया जा सकता है।
आज लगभग हर भारतीय पेट की गैस एसिडिटी ,बवासीर जैसे पाचन रोगो से ग्रस्त है। ऐसे में मोटे अनाज से बनी इडली बचाव के साथ साथ इलाज का भी काम करती है। मोटे अनाज की इडली पाचन के लिए सरल है। तथा इससे शरीर में ऊर्जा का संचालन भी संतुलित मात्रा में रहता है। तथा इडली का मजा किसी भी सब्जी और दाल या करी के साथ गेंहू की रोटी की तरह लिया जा सकता है। मात्र नजरिया और व्यवहार बदलने की जरुरत है।
फ़ूडमेन की अपील है, फैक्टरी मेड प्रोडक्ट का कम से कम उपयोग में लाये और घर पर ही भोजन में परिवर्तन करके स्वास्थ्य और स्वाद दोनों का आनंद लेने की चेष्टा करे। और बीमारियों से दूर रहे।