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दावत किस के भरोसे

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भारतीय परम्पराओं में भोज और दावत का होना एक रिवाज है। भारत में दावत या भोज का जिम्मा आज भी स्थानीय हलवाई पर ही होता है। अब शादी पार्टी का सीजन दूर नहीं है। शहरों में केटरिंग या इवेंट मैनेजमेंट की कंपनी में पेशेवर लोग प्रबंधन में हैं । लेकिन वहां भी भोज का दारोमदार हलवाई पर ही होता है। भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण ( FSSAI ) द्वारा संचालित FOSTAC योजना के अंतर्गत कई खाद्य सुरक्षा के लिए इन्ही हलवाइयों व रेहड़ी ढाबा होटल आदि के शेफ या हलवाइयों को खाद्य सुरक्षा की ट्रेनिंग ट्रेनिंग का प्रावधान किया गया है । लेकिन न ही हलवाइयों ने और ना ही खाद्य व्यापार से जुड़े छोटे व्यवसाइयों ने इस योजना के प्रति कोई रूचि न दिखाई। और ना ही राज्य सरकारों और स्थानीय खाद्य सुरक्षा अधिकारियो ने इस योजना के प्रति सकारात्मक रूचि दिखाई है। हलवाइयों व खाद्य व्यवसायी का निरक्षर होना भी एक विकट समस्या है। यहाँ तक की छोटे होटल और ढाबों पर काम करने वाले शैफ भी खाद्य सुरक्षा के बारे में नहीं जानते है।

जिसके चलते कब आपकी दावत या भोज दूषित या संक्रमित हो जाये कहा नहीं जा सकता है। आये दिन दावतों में दूषित दही या सब्जी से फ़ूड पॉइजनिंग मामले प्रकाश में आते रहते है। ग्रामीण इलाको या शहरी इलाको में कोई भेद या फर्क नहीं है। ये अलग बात है कि बहुत से मामले मेहमानों के प्रकट न करने के चलते सामने नहीं आते। फिर पुदीन हरा तो जिंदाबाद है ही। अधिकतर मामलों में घटिया या पुरानी सामग्री का उपयोग पाया गया है। त्यौहार सीजन या शादियों के सीजन में नकली व पुराना या संक्रमित खाद्य सामग्री बेचने वाले माफिया सक्रिय हो जाते है। दावत कोई भी देने वाला हो लेकिन अपने घर की दावत में नकली या प्रदूषित सामग्री कोई काम में नहीं लेना चाहता। लेकिन खाद्य कारीगरों व हलवाइयों की अनदेखी के चलते खुशियों की दावत एक पारिवारिक सदमा न बन जाय ,इसलिए जब भी दावत देने का मन हो तो प्रशिक्षित व प्रामाणिक हलवाई या कम्पनी का चुनाव करे व भोज के लिए सामान खुद से या किसी अनुभवी व्यक्ति द्वारा ही ख़रीदे।

सरकार व खाद्य सुरक्षा एवं प्राधिकरण द्वारा समय समय पर अभियान तो चलाये जाते है ,लेकिन आज भी दावत या सामूहिक भोज प्रणाली में अप्रशिक्षित हलवाई का ही बोलबाला रहता है। जिसका खामियाजा स्वयं को ही भुगतना होता है।

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