सम्पादकीय
लापरवाह लोग और फ़ूड पॉइजनिंग: जगह बदली , आदत नहीं
हेमंत भाटी ,संपादक ,फ़ूडमेन हिंदी
2023 इस साल की शुरुवात ही खाना खाने से मरने और बीमार पड़ने वालो के नाम होता जा रहा है। सुनने में काफी दुःखद घटनाएं हो सकती है। लेकिन सबक किसी ने भी नहीं लिया है। ना तो मरने या बीमार हो रही जनता ने और न ही खाद्य सुरक्षा के लिए जिम्मेदार सरकारी एजेंसियों ने। अखबार के किसी कोने में छपी ये खबरे किसी के भी कान खड़े कर देने के लिए काफी है। बशर्त है की आप सजग हो , इसमें ज्यादा पढ़े लिखे होने की जरुरत नहीं।
फ़ूडमेन अपने इस अंक में पिछली बार की ही तरह खाद्य सुरक्षा में हुई चूक और लापरवाह लोग और प्रशासन के बारे में सरसरी तौर एक झलकी प्रस्तुत करता है। कही आपके मन में भी खाद्य सुरक्षा को लेकर थोड़ी भी समझ विकसित हो तो फ़ूडमेन खुद को धन्य कर लेगा।
घटनाएं कुछ इस तरह से है
ये साल की शुरआत से ही केरल चर्चाओं में रहा जहाँ साल की शुरूवात से ही दो लड़कियों की मौत बाहर के खाने या बाहर का खाना घर में मगवां कर खाने से हुई।घटना के बाद से ही केरल की खाद्य सुरक्षा एजेंसियों ने 429 प्रतिष्ठानों का निरक्षण करके करीब 43 प्रतिष्ठान होटल व खाने की दुकानों आदि को बंद कर दिया।
करीब 133 प्रतिष्ठानों को नोटिस चस्पा किये है। यह 29 दिसम्बर को बपतिस्मा एक धार्मिक आयोजन में भोजन के लिए नियुक्त केटरिंग करने वाली एक फर्म के खाने से करीब 100 से अधिक लोगो के बीमार और एक लड़की की हुई मौत को लेकर कार्यवाही देखने को मिली।
वही राजस्थान के दौसा में भी एक धार्मिक कार्यकर्म के दौरान 150 से अधिक लोग फ़ूड पॉइज़निंग का शिकार हुवे जिनमे से 50 को अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा। हालाँकि इसको लेकर कार्यवाही का आश्वासन दिया गया था। घटना 25 जनवरी की है और आज दिनाँक 17 फ़रवरी तक कोई अपडेट समाचार या कार्यवाही का समाचार नहीं है।
28 जनवरी महाराष्ट्र के सांगली में 35 स्कूली बच्चे मिड डे मिल के चावल खा कर अस्पताल पहुंच गए।
30 जनवरी वायनाड जहा से राहुल गाँधी सांसद है उन्ही के इलाके में स्थित एक बोर्डिंग स्कूल के 100 स्कूली बच्चे फ़ूड पॉइज़निंग के शिकार हुवे।
31 जनवरी को आंध्रप्रदेश के पालनाडु क्षेत्र 100 से अधिक बच्चो को भी फ़ूड पॉइज़निंग से साक्षात्कार हुवा।बोर्डिंग स्कूल में बच्चो को सुबह चावल के साथ टमाटर और मुगफली की चटनी और लंच में चिकन करी व सांभर दिया गया। यानि के यहाँ पढ़ने वाले
बच्चे साधारण व गरीब परिवार से नहीं थे। फ़ूड पॉइजनिंग कभी भी और किसी को भी हो सकती है ,जो की लापरवाही और लालच की वजह से पैदा होती है। और ये किसी में भी भेद नहीं करती है।
7 फरवरी कर्नाटक के मगलुरु में एक निजी छात्रावास जिसमे नर्सिंग और पेरामेडिकल के छात्र रहते है। वहां के 137 छात्र फ़ूड पॉइजनिंग से बीमार पड़ गए जिनको स्थानीय अस्पताल में भर्ती करवाया गया। मंगलुरु भारत की सिलिकॉन सिटी और पढ़े लिखो का गढ़ है। लेकिन ये घटना भी एक सबक है की सिर्फ पढ़ लिख जाने का ये मतलब बिलकुल नहीं है की आप फ़ूड पॉइजनिंग से बच सकते है।
इस तरह से देश भर में छोटी छोटी फ़ूड पॉइजनिंग की घटनाये होती रहती है। जिनमे से अधिकतर घटनाये मिडिया में आ ही नहीं पाती जब तक की मामला गंभीर और आंकड़ों में बड़ा न हो। देश भर में बढ़ रही इन घटनाओ के लिए सबसे बड़ी वजह जनता का खाने पीने के मामले “देख लेंगे” वाली मानसिकता ही है। कोर्ट के पचड़ो से बचने के चक्कर में अपनी और अपने परिवार को हमेशा दाव पर लगाया जाता है। और जब कोई फ़ूड पॉइजनिंग का अकेला शिकार होता है। और बच जाता है तो समाज या परिवार उसे ही दोषी ठहराने में लग जाता है। हाँ कोई गंभीर स्थिति हो तो भी तोड़ फोड़ अस्पताल में कर के अपने गुस्से को शांत कर लिया जाता है। कब तक खाने पीने की लापरवाहियों पर चुप रहोगे ?