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एक्रिलामाइड- प्रोसेस्ड फ़ूड का कड़वा सच 

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कैंसर कारक हो सकते है – एक्रिलामाइड

जानिए क्या होता है – एक्रिलामाइड

खाद्य पदार्थों में एक्रिलामाइड वो तत्व है जो पकने की क्रिया में एमिनो एसिड और ग्लूकोज की प्रतिक्रिया के स्वरूप स्वाभाविक रूप से बन जाते है। लेकिन यह कैंसरकारी हो सकते है। इसको लेकर 2002 से ही कई प्रयोग व शोध हुवे है जिनमे से कई वैश्विक संस्थाओ ने भाग लिया।

इसमें विशेष कर खाद्य उधोग के अंतर्गत संस्थाओ ने एक्रिलामाइड को बहुत ही साधारण बताता।  खाद्य उधोगो के पक्ष में एक्रिलामाइड के स्तर होना तो स्वीकारते है किन्तु कैंसर कारक नहीं माना जाता है। जबकि अन्य  प्रयोगशाला में पशुओं पर हुए अध्ययन में कैंसर की पुष्टि स्पष्ट रूप से हुई है।

एक्रिलामाइड कई गंभीर बीमारियों के जनक माने जाते है। ये लगभग उन सभी खाद्य पदार्थों में अलग अलग मात्रा में पाए जा सकते है। जिनको बहुत ज्यादा पकाया या बार बार गर्म किया जाता है।जैसे तलना भुनाना आदि। भारत में कई होटलों में खाना एक साथ पका कर उसे बार बार गर्म किया जाता है।

यहाँ भी एक्रिलामाइड बनने के आसार बन जाते है।कुछ खाद्य प्रदार्थ जैसे आलू को उबालने पर एक्रिलामाइड जैसे प्रदार्थ नहीं पाए गए जबकि उन्ही आलुओ के चिप्स जिन्हे डीप फ्राई किया गया उनमे एक्रिलामाइड पाया गया। खाद्य प्रदार्थो में एक्रिलामाइड की उपस्थिति की खोज ज्यादा पुरानी नहीं है। 2002 में ही कैंसर कारक तत्वों के गहन पड़ताल में कुछ खाद्य प्रदार्थो में एक्रिलामाइड की उपस्थिति की पहचान हुई।

भारत के बाजार में उपलब्ध स्नेक्स या नमकीन के नाम पर बिक रहे स्नेक्स पैकेट एक्रिलामाइड की उपस्थिति अंतरास्ट्रीय स्टार से दो से चार गुणी हो सकती है। भारत में ब्रांडेड स्नेक्स के साथ साथ स्थानीय स्तर पर भी कई तरह के स्नैक्स बेचे जाते है। जिन में से कइयों के पास FSSAI द्वारा लाइसेंस भी है। और कइयों के पास लाइसेंस ही नहीं है। 

इनमे एक्रिलामाइड का स्तर दोगुना या तीन गुणा नहीं अपितु जानलेवा स्तर तक पाया जाता है। जो सुरक्षा व नियमन करने वाली संस्थाओं और एजेंसियों के आखो के सामने से बाजार में बेचे जा रहे है। तथा इनके उपभोक्ता अधिकतर गरीब  बच्चे या शराब पीने  वाले लोग होते है। दोनों ही बच्चे या शराबी के लिवर को खतरा बना रहता है। 

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भारत के विभिन्न शहरों में ऐसे उत्पादों का निर्माण होता रहता है जहाँ तेल का उपयोग तब तक तलने के लिए किया जाता है। जब तक की वो उत्पाद के रंग और खुशबू को प्रभावित न करे। और ऐसा चलता रहे इसके लिए तेल में कई तरह के रसायन भी उपयोग में लाये जाते है। जिससे एक्रिलामाइड के साथ साथ और भी ऐसे रसायन बनाना शुरू हो जाते है जो प्राण घातक होते है। ऐसे पैकेट पैक मौत के स्नैक्स आप गांवों और छोटे शहरों की टापरी और शराब के  आसानी से देख सकते है। 

2003में यूरोप आयोग ने द हीट जनरेटेड फ़ूड टोक्सिकेट्स( Heatox )अनुसन्धान परियोजना बना कर एक्रिमाइड तथा ऐसे तत्वों की खोज के लिए कमिटी बनाई। 2005 को केलिफोर्निया के अटॉर्नी जनरल ने फ्रेंच फ्राइज व आलू चिप्स बनाने के चार निर्माता HJheinz co.,Frito-Lay,kettle food और लांकेब Inc के खिलाफ मुकदमा चलाया गया।

पश्चिमी देशो में  एक्रिलामाइड को लेकर 2002 ही जन चेतना फैलाई जा रही है।तथा अलग अलग देशो में एक्रिमाइड को लेकर दिशानिर्देश तथा प्रोसेस इंडस्ट्री में एक्रिलामाइड कम करने के उपायों को बढ़ावा दिया जा रहा है।
भारत में इसके विपरीत कोई चर्चा मात्र में भी एक्रिमाइड का जिक्र होता है।जबकि भारतीय खाद्य व्यवसाय में  एक्रिलामाइड  होना एक आम घटना है।यहाँ  खुद खाद्य सुरक्षा अधिकारी व कर्मचारियों को तक को पता  की एक्रिलामाइड होते क्या है। भारतीय स्नेक्स बाजार 

एक्रिलामाइड प्राय स्टार्च आधारित उत्पादों को अधिक गरम या बार बार गर्म करने पर बनते है।तथा कुछ खाद्य अवयव व रसायनो के आपसी प्रतिक्रिया के फलस्वरूप भी बनते है।भारतीय बाजारों में शुगर फ्री मिठाइयों व कचौरी समोसा जैसे पदार्थ व मैदे से बने पिज्जा बर्गर ब्रेड आदि में एक्रिमाइड की मात्रा पायी जा सकती है।जो की FSSAI द्वारा नजर में है। लेकिन नियमन व नियंत्रण में नहीं कहा जा सकता है।

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