स्वास्थ्य और जीवनशैली

समय बदला,हम बदले और बदल गया भोजन

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ग्लोबलाइजेशन का दौर है , तकनीकों का भी जोर है तो इस दौर में हमारा कंस्यूमर क्यों है बदले।  अब इन सबका असर हमारे  खान पान में तो ऐसा पड़ा कि का  खान पान के नामो का चलन भी समय ने बदल दिया।
महंगे और मध्यम स्तरीय  होटल में विदेशी भाषा के पकवान खाये और मंगवाए जा रहे है।
भारत के युवाओं में खाने पीने की पसंद, पसंद ना होकर दिखावे और देखा देखी का चलन ज्यादा हो चला है।इसके पीछे कुछ हद तक नए नए फ़ूड ब्लॉगर और  कलाकारों के लाइफ स्टाइल  वाले इंटरव्यू  भी है। जिनमे वे अपनी पसंद के विदेशी खाने में अपनी पसंद  को जताते रहते है। भले ही खुद की असल जीवन में फल सब्जियों का ही उपभोग करते हो। लेकिन इसका सीधा असर युवाओ पर पड़ता है।
इसी दिखावे और चमक दमक ने देश में पिज्जा, बर्गर, नूडल्स, मंचूरियन, इटालियन फ़ूड, चाइनीज फ़ूड, फ्रेंच फ़ूड का एक बड़ा बाजार भारत में खड़ा किया गया जिसके शौकिया  सीधे तौर पर युवा और बच्चे हुये। अब इनकम ग्रुप भी खड़ा तैयार है।   मामूली आलू भजिया को फ्रेंच फ्राइज बोल कर महंगे दामों पर बेचा जाता है और युवा व बच्चे ले भी रहे है। बिना किसी जांच परख और जानकारी के सिर्फ स्वाद में हेरफेर करके और भाषाई छलावे से छला जा रहा है।
खुद में सोच के देखिये ये विदेशी भाषा के व्यंजन होटल और रेस्टोरेंट में बनाने वाला कौन है। जो खुद में ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं है। वो इटालियन और फ्रेंच रेसिपी  बना कर खिला रहा है। मात्र स्वाद के लिए खतरनाक सिंथेटिक खाद्य अवयव का उपयोग  किसी जानकारी के भोजन में डाले जा रहे है। जिनके गंभीर परिणाम भी युवा और बच्चे भुगत रहे है। हमारे प्राचीन ज्ञान में कहा गया है कि 90 प्रतिशत गंभीर बीमारियां पेट से हो कर ही आती है।और आज तो लगभग हर बीमारी का कारण ही पेट में ठुसे जाने वाले भोजन की ही देन है। इससे बचा नहीं जा सकता।
फ़िल्मी दुनिया के कलाकार और राजनीती के बड़े नेताओ को ही ले लीजिये जो  असमय  हार्ट अटैक कैंसर का शिकार हुये  है। लेकिन आज का नौजवान एक दिन खाने से क्या बिगड़ जायेगा से लेकर एक दिन नहीं खाया तो क्या बिगड़ जायेगा वाली सोच पर स्थान्तरित होते जा रहे है। खाने पीने  से होने वाली बीमारियों की ये भी एक खूबी होती है की प्राय: चिकित्सक इसके बारे में बताना ही नहीं चाहते। लेकिन सलाह  जरूर दे देंगे की बाहर का मत खाओ और चिकना मीठा तला भुना बंद। लेकिन असल वजहों या कारणो को मरीज को नहीं बताया जाता है। खाते खाते आपका खाना आपको कब खा जाये ये पता तो सबको है। लेकिन तत्कालीन मजे और दिखावे के नाम पर नशा हो या डिजाइनर खाना सब चलता है।

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