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स्टेशन से निकली गाड़ी 500 कि. मी का सफर तय हुआ 8 महीने में

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गाड़ी में रखा बीस लाख का चावल सड़ा अधिकारियों ने की लीपा पोती : झारखंड का मामला

5 वर्ष की मासूम निम्मी  हमेशा खुश और चहकती रहती थी। अपनी माँ की दुलारी लेकिन ना जाने अपने किस जन्म के पाप से इस जन्म में उसे एक गरीब के घर जन्म ले लिया। जन्म के साथ ही उसे एक बीमारी थी। पेट में दर्द की। निम्मी के अलावा उसके और 4 भाई बहनों को भी यही बीमारी थी। जैसे तैसे दिन तो निकल जाता लेकिन रात को वो उस दर्द से सो नहीं पाती थी। आखिर वो मनहूस लेकिन ख़ुशी का दिन आ ही गया जिस दिन निम्मी अपनी माँ से कुछ मांगते मांगते सो गई और फिर कभी न उठी। गरीब माँ का पथराया दिल कितना और पसीज सकता था सुखी आंखे रो भी नहीं पा  रही थी। लेकिन एक संतोष था रोज के पेट दर्द से तो एक दिन में मर जाना बेहतर था। शहर से आये लोगो ने निम्मी की मां से पूछा क्या बीमारी थी निम्मी के जवाब में इस बार सुखी आखे बरस पड़ी रूआ से गले से आवाज आई “भूख 
5 साल की निम्मी झाड़खंड के किसी गांव से थी कई दिनों की भूखी बच्ची ने आखिर दम  तोड़ ही दिया। जिस रात को निम्मी ने दुनिया छोड़ी उसी शाम को बच्ची भात मांगती भात भात कहते सो गई। निम्मी के साथ उसका परिवार भी भूखा था। वो तो भला हो झाड़खंड की सरकार का की निम्मी के मौत के बाद उसके परिवार को 40 किलो अनाज का भारी भरकम मुआवजा दिया गया।
उसी झाड़खंड में लापरवाही की अफसर शाही के चक्कर में 20 लाख का चावल  आखिरकार जमीन में गाड़ दिया गया है। 10 दिन की रेलवे और एफ सी आई की रसाकस्शी के बाद आखिर में चावलों सुकून की कब्र मिल गई।
8 महीने पहले छत्तीसगढ़ से गरीबो के लिए निकला ये अनाज झाड़खंड के गिरिडीह पहुंचना था लेकिन 8 महीने तक जिस ट्रेन पर चावल लादा गया था उस पर शायद पता ठीक से लिखा नहीं था 8 महीने मालगाड़ी  डब्बो में बंद चावल सड़ गया और  20 मई को गिरिडीह पंहुचा और फिर शुरू हुया  तेरी गलती तेरी गलती का खेल जिसमे रेलवे ने गलती स्वीकार करते हुवे 5 लाख का मुआवजा एफ सी आई को देना स्वीकार भी कर लिया है। सड़े चावल मानव और पशु दोनों के उपभोग के लायक नहीं थे तो 31 मई को  रेलवे ने अपनी खाली पड़ी जमीन में गड्डा करके चावल गाड़ दिया। बात ख़त्म। 
 
भारत दुर्दशा की  मिसाल आये दिन देखने  मिलती है , इसकी मीडिया  में कोई खबर या सनसनी नहीं 
 
ये कोई पहला मामला नहीं है जहा अफसरों की लापरवाही के चलते सेकड़ो टन अनाज ख़राब हुया  है।और न ही सिर्फ झाड़खंड का पुरे भारत के कई राज्यों की सच्चाई है। ये  विश्वगुरु भारत की ही सच्चाई है की हर साल रेलवे और एफ सी आई की लापरवाही के चलते सैंकड़ो टन अनाज कभी गोदामों में तो कभी रेलवे प्लेटफार्म में सड़ जाता है। वही दूसरी सच्चाई ये भी है की सेंकडो गरीब बच्चे अपने बचपन में ही भूख और कुपोषण से मारे जाते है। इस मुद्दे पर राजनीती हो सकती है। लेकिन बड़ा सवाल ये भी हे की जिस गरीबी से निकल कर आज के भारत के बाबू और अफसर जिनको गरीबो के लिए सहारा बनना था। वो अब उसी गरीबी का मजाक बनाने में लगे हुये है।
 

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