कंज्यूमर कार्नर
क्यों बढ़ रहे है गेहू से एलर्जी के मामले ?
आज हम गेहूं को किस रूप में खा रहे है, किसी को पता नहीं। गरीबों को सरकारी गेहू किस रूप में मिल रहा है हर किसी को पता है। लेकिन जो लोग गेहू खरीद कर खा रहे है। क्या वो गेहू की गुणवत्ता के बारे में जानते है की वो हाइब्रिड गेहू है या केमिकल जहर से लिपटा हुवा अनाज है। गेहू ही जहरीला है या जहर लगा है ये पता कर पाना आसान नहीं है। लेकिन आसपास के माहौल से ये पता करना मुश्किल नहीं की कितने लोग गंभीर जीवनशैली बीमारियों से पीड़ित है। डाइबिटीज और बीपी तो सामान्य सी बीमारियां हो गई है। हर कोई या हर कोई का कोई इनसे पीड़ित है। लेकिन अब गेंहू से एलर्जी या गेहू के प्रति असहिष्णुता के मामले बढ़ते जा रहे है। एक अंदाजे के मुताबिक हर 10 एलर्जी टेस्ट में करीब दो से तीन टेस्ट में गेहू से एलर्जी या असहिष्णुता पायी गई है। अलग अलग क्षेत्र के अनुसार आंकड़े बदल सकते है। लेकिन उत्तर भारत व उत्तर भारत के मैदानी और गेहू प्रधान क्षेत्रो में आंकड़े लगभग यही है। बच्चो सीलिएक रोग का भी प्रतिशत बढ़ रहा है। वही उम्र के कोनसे पड़ाव में गेहू से एलर्जी या असहिष्णुता हो जाये,कहा नहीं जा सकता है। सीलिएक और गेहू की एलर्जी के लक्षण और ईलाज एक जैसे ही है।लेकिन गेहूं से असहिष्णुता का पता तब तक नहीं लगता जबतक की यह गंभीर न हो जाये। आमतौर पर शुरुवाती लक्षणों में गैस बनना ,कब्ज ,दस्त ,व त्वचा पर दाग धब्बे व त्वचा में एलर्जी जैसे लक्षण आते है। जो की आम दिनों में खाने-पीने की गड़बड़ी से हो ही जाते है।लेकिन गेहू की असहिष्णुता वाले मरीज प्राय:गंभीर स्थिती और चिकित्सक की सूझबूझ की वजह से ही पकड़ में आ पाती है।
अब गौर करने वाला बिंदु ये है की जिस व्यक्ति ने उम्र भर गेंहू ही खाया हो अचानक या धीरे धीरे गेहू के प्रति असहिष्णु कैसे हो गया। या गेहू में ही कोई बदलाव हुवा है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता की आप गेहू जैविक खेती का खाये या केमिकल खेती का या धो के अंकुरित करके खाये।
समय के साथ साथ आधुनिक कृषि विज्ञान ने गेहू को हर तरह के मौसम और परिस्थिति व कीट पतंगों और वनस्पतीय बीमारियों के प्रति अनुकूल तो बना लिया है। लेकिन वही गेहू की अनुकूलता अब इंसानों के लिए असहिष्णुता ला रही है। जानवरों पर भी असर हुवा होगा। लेकिन जानवर लोकतंत्र का जरिया हो सकते है लोकतंत्र का हिस्सा नहीं। कृषि विज्ञान का प्राथमिक उद्देश्य ही ऊपज बढ़ाना और नए बीज तैयार करना है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता की उस हाईब्रीड फसल से इंसानो पर तुरंत व दीर्ध काल के बाद क्या फर्क पड़ेगा। उसके लिए चिकित्सा व औषधी विज्ञान है। लेकिन दोनों ही तरह के विज्ञान की जुगलबंदी नहीं होती या नहीं होने दिया जाता है।