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GMO फसल और हम बेखबर

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थाली में जहर : भाग 4

GMO फैसले और उत्पाद आज के जीवन की सच्चाई है। चाहे हमें बेखबर रहे या बेपरवाह। भुगतना आम आदमी को ही पड़ेगा 

विज्ञान ने सुविधाएं दी है और साथ में कई परेशानियां भी दी है। कहा भी जाता है विज्ञान वरदान भी है और अभिश्राप भी। कुछ दशकों पहले कृषि में शुरू हुई जीन के साथ छेड़छाड़ आज एक भयावह रूप ले चुकी है जिसे जी एम बीज/ फसल ( Genetically modified Crops ) कहा जाता है।

जी एम बीज में बीज के मूलभूत संरचना यानि जीन या डी.एन.ए. में किसी और प्रजाती या जंतु के डी.एन.ए. से संक्रमित कर उसके उत्पादन और अन्य गुणों को प्रभावित किया जाता है दूसरे शब्दों में कहा जाये तो फसलों के बीज के आनुवांशिक पदार्थ (डीएनए) में बदलाव किये जाते हैं, अर्थात ऐसी फसलों की उत्पत्ति उनकी बनावट में अनुवांशिक रूपांतरण से की जाती है।

इनका आनुवांशिक पदार्थ अनुवंशकीय अभियांत्रिकी से तैयार किया जाता है। इससे फसलों के उत्पादन में बढ़ोत्तरी होती है शुरुवाती रुझानों में उत्पादन में बढ़ोतरी देखी गई है। किन्तु मानव व जीवजंतुओं पर दूरगामी परिणाम क्या है जिसका परिणाम अब तक अज्ञात है । इसे अभी तक बताया नहीं गया। मात्र धन एकत्र करने और कृषि बाजार में एकछत्र राज करने के नाम पर सरकारों से मिलीभगत कर जनता से सच छुपाते हुए इन बीजों को बेचा जा रहा है।

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इस तकनीक पर द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से ही प्रयोग होने शुरू हो गए थे तथा इस तरीके से पहली बार 1990 में फसल पैदा की गयी थी। सबसे पहले इस विधि से टमाटर को रूपांतरित किया गया था। कैलिफोर्निया की कंपनी कैलगेने ने टमाटर के धीरे-धीरे पकने के गुण को खोजा था, तब उस गुण के गुणसूत्र में परिवर्तन कर एक नयी फसल निकाली थी। इसी तरह का प्रयोग बाद में पशुओं पर भी किया जा रहा है। 2006 में सूअर पर प्रयोग किया गया।

उत्तरी अमेरिका में अनुवांशिकीय रूपांतरित फसलों का उत्पादन सबसे अधिक किया जाता है।

इस पर कई सरकारों और वैज्ञानिक समूहो ने भी इसके गुण व दोष दोनों पर शोध किये।

सन 1989 में पहली बार इसके दुष्परिणाम सामने आये जब अमेरिका में हेल्थ टॉनिक के नाम पर जापानी कम्पनी सोवाडेंको ने जी.एम. बीजों से तैयार टॉनिक एल-ट्रिप्टोफैन (L-tryptophan) बाजार में उतारा। जिससे करीब 100 लोगो की मृत्यु की आधिकारिक पुष्टि हुई और करीब 500 से ज्यादा लोग किसी न किसी तरह की विकलांगता से ग्रसित हुये।

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हालाँकि आंकड़ा कुछ और भी हो सकता था।

 

तत्कालीन अमेरिकी सरकार ने जापानी कम्पनी सोवाडेंको पर तुरंत रोक लगा दी और करीब दस हजार करोड़ भारतीय मूल्य हिसाब से जुर्माना लगाया गया। समय समय पर कई प्रयोगशालाओ में इस पर गहन शोध हुया और चूहों पर प्रयोग किये गए जिसका परिणाम बहुत ही घातक रहे। कुछ चूहे जल्दी ही मर गए कई चूहों की किडनी ,लिवर सिकुड़ गए तथा एक अनुवांशिकी दुष्प्रभाव से चूहे प्रजनन कर पाने में असमर्थ हो गए तथा उनमे कैंसर ,एलर्जी ,ह्रदय रोग ,व रक्त में गड़बड़ी पाई गई। जिसके चलते कई विकसित देशो ने इसको प्रतिबंधित किया हुया।

भारत जैसे विकासशील देश जहां पर राजनैतिक भ्रष्टाचार और धन कमाने के लिए मानव जीवन को खतरे में रखने वाले धनी लोगों के चलते यह जी.एम. बीज आपकी रसोई से आपके शरीर में जा रहे है। देश में पहली बार इस पर 2012 में इन बीजों और फसलों पर बहस हुई। कई बुद्धिजीवियों ने आवाज मुखर की जिसमे बाबा रामदेव और श्री श्री रविशंकर जैसे आध्यात्मिक और योग गुरुओं ने सरकार की खूब भत्सर्ना की लेकिन 2014 के आम चुनाव के बाद एक दो छिटपुट खबरों को ही राष्ट्रीय मीडिया और अखबारों में दिखी जिस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया।

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अब स्थिति बहुत भयावह है जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है लेकिन बिलकुल ताजा आलू गोभी बेंगन अपने जैविक सरचना में जहर से लबरेज है। फिर भी आपको ये लगता है कि आप अभी तक इनसे सुरक्षित है तो अपने शहर के कैंसर में और एलर्जी हृदय रोग के मरीजों संख्या और उनकी उम्र की समीक्षा करे तो आपका भ्रम टूट सकता है और दूसरा अपने शहर में कृत्रिम गर्भाधान के अस्पतालों और उनकी एजेंसियों गिनती करले। यही से आपको भविष्य खतरे का अहसास हो जायेगा।

समय रहते जनता अगर नहीं जगी तो एक ऐसी आपदा सामने खड़ी है जिसका कोई कुछ नहीं कर सकता और यह भूकंप या तूफान की तरह आ कर चली नहीं जाएगी बल्कि समय के साथ साथ और भी भीषण होती जाएगी।

1 Comment

  1. jitendra goyal

    19 May 2022 at 12:23 am

    यह बहुत ही अच्छी पहल है .फ़ूडमैन को बधाई .

    इस तरह के सब्जेक्ट आम जनता को समझना और जागरूकता को फैलाने चाहिए .

    अमेरिका और अन्य कई देशों में Genetic modified (GM) फसल एक भयावह रूप के चुकी है । यहाँ पर हर vegetable सब्ज़ी अपने वास्तविक रूप से कही बहुत बड़े आकार की देखी जा रही है . गोबी, आलू, निम्बू, बैगन, शिमला मिर्च , प्याज़, केला, पत्ते दार सब्ज़ी और फल देखने में बड़े विचित्र और बेस्वाद है . इस के हेल्थ पहलू काफ़ी भयावह होने वाले है . ये नक़ली को विशुद्ध रूप में परोशा जा रहा है ।

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