स्वास्थ्य और जीवनशैली
सर्वगुण संपन्न – “राबड़ी ” : किसी सुपरफूड से नही है कम
हेमंत भाटी की कलम से
भारत में खान-पान की विविधता जग जाहिर है। हमारे खान-पान में हमारी परम्पराये और संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। आज हम बात करेंगे राबड़ी की “रबड़ी” नहीं राबड़ी।
राजस्थानी भाषा का शब्द है राबड़ी या राब जिसको छाछ के साथ बाजरा या मक्के के आटे के साथ सुप की तरह पकाया जाता है। वही देश के अलग अलग हिस्सों में कई तरह के आटे के साथ छाछ या पानी के साथ सुप की तरह पका कर सेवन किया जाता है। इसे महाराष्ट्र में रागी के आटे और छाछ से बने सुप को अमली या आम्बील कहा जाता है। वही गुजरात में इसे राब कहा जाता है। ऐसे ही देश के अलग अलग इलाको में नाम साथ बनाने की सामग्री भी परिवर्तित हो जाती है।
राजस्थान में राबड़ी दो तरीको से बनाते है। एक तरीके में पारम्परिक रूप से मिटटी की हांड़ी में या सामान्य रूप की किसी भी बर्तन में जीरे को भून कर उसमे थोड़ा पानी गर्म करके उस पानी में आटा व छाछ मिला कर पकने के लिए लगातार चम्मच से हिलाते रहते है।
राबड़ी राजस्थान में नास्ते के लिहाज से सर्वोत्तम मानी जाती है। बाजरे की राबड़ी गर्मियों में प्याज के साथ तथा सर्दियों में गर्मागर्म परोसी जाती है। राजस्थान में एक और तरह से राबड़ी बनाई जाती है जिसे “डोवा “या डो कहा जाता है। डोवा बनाने की विधि भी पारम्परिक रूप से मिटटी के बर्तन में छाछ में बाजरे का आटा मिला कर उस बर्तन को ढक कर तेज धुप में सुबह से श्याम तक छोड़ दिया जाता है। तथा रात को सामान्य तापमान पर रख कर छोड़ दिया जाता है।
अगले दिन सुबह ये सेवन योग्य हो जाता है। सुबह से शाम तक राजस्थान की तेज गर्मी में छाछ धीरे धीरे पकती है। वही सामान्य तापमान पर रात को छाछ में मौजूद मित्र बैक्टीरिया से आटे – छाछ के मिश्रण में किण्वन (फर्मेंटेशन) भी हो जाता है। जिससे इसमें पोषण के साथ प्रोबायोटिक्स की भी खुबिया आ जाती है।
राबड़ी जैसा की बताया गया की नाश्ते के लिए उत्तम मानी जाती है। वही छोटे बच्चो और बुजुर्गो के लिए भी बहुत सुपाच्य होती है।जिन लोगो को अपना वजन कम करना हो उनके लिए यह बेहतरीन डाइट होती है। वही इसको ह्रदय रोगो में भी अच्छे परिणाम देखने को मिलते है। राबड़ी चिकित्सीय शल्य प्रक्रिया के बाद के लिए भी मरीज के लिए बहुत अच्छी खुराक मानी जाती है।बढ़ते बच्चो के लिए दिन में दो कटोरी राबड़ी दिनभर के आयरन और कैल्शियम के लिए उत्तम है।
आज के शहरी जीवन और प्रोसेस फ़ूड के ज़माने में राबड़ी को धीरे धीरे रसोई से दूर हो रही है। आधुनिक भाषा में कहे तो राबड़ी किसी भी तरह के सुपरफूड से कम नहीं है। तथा बिना किसी झंझट विशेष सामग्री के इसे बहुत ही सहजता से घर में बना कर सेवन किया जा सकता है।
फ़ूडमेन अपनी स्वस्थ जीवनशैली राबड़ी को आज के आधुनिक जीवन और खानपान में किसी सुपरफूड से कम नहीं मानता तथा इसके सेवन की सालाह को अग्रसर करता है।