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मैदा जो बिना मशीनी आटा मिल से भी निकलता है ? : जानना क्यों जरूरी ?

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 मैदे के बिना पैक्ड फ़ूड और  फ़ास्ट फ़ूड इंडस्ट्री ही खत्म हो जाएगी।
हमारे जीवन में तकनीक के नाम झूठ और पाखंड इतना है की कई बार हम समझ ही नहीं सकते की सच्चाई क्या है। ऐसा ही गेहूं और मक्के  के मैदे के साथ भी है।  अब एक सच्चाई ये भी है की मैदे को लेकर कई गलतफहमियां बाजार में बनी हुई है। लेकिन खपत में कभी कमी देखने को नहीं मिली।  ये बात अलग है की मैदा बड़ी फेक्ट्रियो में बना है या प्राचीन तरीको से ?
मैदा मुगलों के साथ ही भारत में आया था वही कुछ का मानना है की पुर्तगाली अपने साथ मैदा लाये थे।
परम्परागत  मैदा निकालने की विधि
शुरुआती और अभी भी कई गावो और आदिवासियों में मैदा बिना मशीन के बनाया जाता है। इसके लिए पहले गेहूं को धोकर भीगो दिया जाता है। फिर भीगे गेहूं को सुखाया जाता है। लेकिन पूरा नहीं सुखाया जाता थोड़ी नमी रखी जाती है। फिर इसको ओखली में रख कर कुट्टा जाता है। लेकिन आटा नहीं बनाया जाता इसको दरदरा होने तक कूटते है। फिर इसको थोड़ा और सुखाया जाता है। और छलनियो से फटकारा जाता है जिससे गेहू का चोकर और उसका वसा का भाग अलग अलग हो जाते है। यहाँ पर अगर इसको और संशोधित किया जाये तो सूजी को भी अलग किया   सकता है। लेकिन इस प्रक्रिया में मैदे में सूजी भी रह जाती है। फिर इसको पूरा सूखा के पीस लिया जाता है। इसका रंग हल्का पीलापन लिए होता है। और स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत ही गुणकारी होता है। जो सामान्य आटे से ज्यादा सुपाच्य होता है।
वही जब यही प्रक्रिया स्व चालित फैक्ट्री में होती है तब सब को मशीनों में  अलग अलग कर दिया जाता है। गेहूं से चोकर ,मैदा और सूजी तीनो ही अलग अलग कर दी जाती है। फलस्वरूप तीनो ही पदार्थों में गुणवत्ता की कमी आ जाती है। तथा दिखने में तीनो का ही रंग बदरंग हो जाता है। जिसके लिए इनमे पाउडर ब्लीच या सफ़ेद रंग मिलाया जाता है। जो न सिर्फ मैदे को बल्कि सूजी व सामान्य आटे  को भी स्वास्थय के लिए हानिकारक बनाता है।
कहने को तो मैदे को सफ़ेद जहर कहा जाता है जो की सफ़ेद झूठ है।
मैदा कभी आंतो से नहीं चिपकता है। बल्कि मैदे में सफेदी के लिए मिलायी जाने वाले रासायनिक  सफ़ेद रंग जिसको आंते सोख नहीं पाती और ये खतरनाक रसायन आंतो में जम जाता है। और यही हाल सामान्य आटे  और सूजी में भी होता है।
मतलब साफ है बाजार में प्राचीन तरीके से बना मैदा नहीं आ रहा है। तो सफ़ेद रासायनिक रंग से ओतप्रोत मैदे और आटे से बेहतर विकल्प है की  आटा पीसने वाले से या घरेलु आटा चक्की से ही पिसवायें। बाजार में जब सारा मैदा ही फेक्ट्रियो में बन आ रहा है,  तो हाँ ये सफ़ेद जहर ही है।

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