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स्वाद वर्धक ( Flavor Enhancer )  की  पड़ताल (ई  कोड -600 से 699 )

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स्वाद वर्धक ( Flavor Enhancer )  की  पड़ताल (ई  कोड -600 से 699 )
भोजन पेट भरने और शरीर को पोषण और शक्ति देने के लिए होता है। लेकिन भोजन में स्वाद का होना भी जरुरी होता है। कई बार तो पोषण से समझौता किया जा सकता है लेकिन स्वाद के साथ बिलकुल भी समझौता नहीं होता, जब तक के आप स्वस्थ हो। कई बार कोई  उत्पाद खाया ही इसलिए जाता है ताकि स्वाद आ सके। स्वाद के प्रति इसी आकर्षण को जानने के लिए कई शोध हुये  है। तथा नए शोध  हो भी रहे है की कम प्रयासों में किसी चीज को कैसे स्वादिष्ट बनाया जा सकता है
 स्वाद वर्धक का इतिहास भोजन के  पकाने के साथ ही शुरू हो गया था। आज की अपेक्षा प्राचीन काल में ज्यादा प्रयोग हुये  और कुछ लोगो को जान से भी हाथ धोना पड़ा क्यों की उस समय विज्ञान इतना उन्नत नहीं था जिससे लेब टेस्ट करके प्रभाव बताया जा सके।
नमक मिर्च मसाले पहचाने गए और  भोजन में नए नए स्वाद जुड़ते गए। फिर भी कुछ स्वाद जो इंसान के आदिकालीन समय में सामान थे उसके लिए आज भी जीभ सक्रीय है।
मांस का स्वाद लगना मनुष्य का प्राकृतिक स्वभाव है।  आप में से  कुछ धार्मिक  लोग मानेंगे नहीं की मनुष्य को आज भी मांस का स्वाद अच्छा लगता है भले ही सामाजिक और धार्मिक कारणों से कई धार्मिक लोगो ने मांस से दूरी बना ली है। लेकिन स्वाद की तलब आज  भी है। जिसका फायदा प्रोसेस फ़ूड इंडस्ट्री और मीट इंडस्ट्री उठाती है। और छुपा कर  मांस से बने तत्व अपने उत्पादों में डालती  रही है।
लेकिन सवालों के जवाब गोलमोल या समुंदरी घास पर आ कर ख़त्म हो जाते है। 
20वी सदी में ही  जीभ के पांचवे स्वाद की कथा कथित खोज हो गई थी। जिसे “उमामी” स्वाद कहते है। वास्तविकता में इसका मतलब वसा और नमक  (sodium ) के  संयोग का स्वाद  ही है।  लेकिन वसा वनस्पति या जंतु आधारित या फिर दोनो  भी हो सकती है  । लेकिन कभी भी इसको स्वतंत्र रूप से स्वीकार नहीं किया गया। हमेशा समुंद्री घास या इधर उधर में जवाब टाला जाता रहा है। स्वाद वर्धक में आने वाले ये नमक और वसा से बने अवयवों को E -600 से 699 E-957,958 ,959 E -1100 ,1101 के गणितीय अंको में पैकेट के पीछे सामग्री में दर्शाया जाता है। जिसके बारे में इंटरनेट पर आसानी से जानकारी मिल जाती है।
स्वाद वर्धक रसायनों की पड़ताल -आइनोसिनिक एसिड  E -630  E -632 E -633 
आइनोसिनिक एसिड का उपयोग स्वाद वर्धक के रूप में किया  है इसे अन्य स्वाद वर्धक के साथ यौगिक या अकेले ही उपयोग में लाया जाता है। इसके उपयोग से उत्पाद में तथाकथित  उमामी स्वाद को महसूस करवाया जाता है।
जिससे उत्पाद स्वादिष्ट लगे तथा दूसरे शब्दों में कहे तो बार बार खाने का मन करे ताकि उत्पाद ज्यादा से ज्यादा बिक सके। आइनोसिनिक एसिड जंतु वसा आधारित खाद्य अवयव है जो आमतौर पर मुर्गियों के कत्लखाने के कचरे से संश्लेषित किया जाता है। लेकिन अन्य कत्लखानो के कचरे से भी बनता है। कत्लखाने में बची हुई चर्बी अंतड़िया या वो अंग जिनको खाया नहीं जाता है उन पर ईस्ट व बैक्टीरिया से फर्मेन्टेड करके आइनोसिनिक एसिड को बनाया जाता है।
इसका उपयोग चिकित्सा क्षेत्र में भी होता है। इसकी अधिकता से शरीर में प्रतिकूल असर होता है आइनोसिनिक एसिड  की अधिकता से शरीर में यूरिक एसिड बढ़  जाता है , इसके अलावा गठिया ,पथरी , मूत्राशय व किडनी में दोष आदी  दुष्प्रभाव हो सकते है। आइनोसिनिक एसिड का उपयोग नमकीन खाद्य उत्पादों में किया जाता है; रेडीमेड सुप ,नूडल्स ,ब्रेड ,बेकरी उत्पाद व रेस्टोरेंट और रेहड़ी वाले स्वाद बढ़ाने के लिए किया जाता है।
आइनोसिनिक एसिड के अन्य योगिक भी होते है जिनको डाइसोडियम आइनोसिनेट (Disodium inosinete ) या E-632 तथा केल्सियम आइनोसिनेट ( Calcium inosinete ) या E -633 में लिखा या दर्शाया जाता है।

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