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कांच और प्लास्टिक
ल्कोहल को लम्बे समय तक प्लास्टिक की बोतल में रखा जाय तो प्लास्टिक से एथिनिल ग्लाइकोल और टर्फ्थेलिक एसिड की लीचिंग होकर अल्कोहल को विषाक्त बना सकती है। आयुर्वेद की तरल औषधियों को काँच की बोतलों में रखे जाने की परम्परा रही है किंतु परिवहन में बोतलों की टूट-फूट से बचने और कुल भार कम करने के व्यापारिक उद्देश्यों से प्लास्टिक ने काँच को उखाड़ फेंका, पर शराब नें प्लास्टिक की बोतलों में रहने से मना कर दिया, वह आज भी काँच की बोतलों में ही रहना पसंद करती है। आयुर्वेदिक औषधियां शराब जितनी भाग्यशाली नहीं, शराब की बात ही अलग है, वह हर युग में सम्मानित रहेगी।
आसव-अरिष्ट जैसी अल्कोहलयुक्त आयुर्वेदिक दवाइयों की पैकिंग के संदर्भ में हमें एक बार फिर यह विचार करने की आवश्यकता है कि प्लास्टिक की बोतलों में इन औषधियों को रखने से प्लास्टिक से लीच होने वाले एथिनिल ग्लाइकोल और टर्फ्थेलिक एसिड के उस औषधि की गुणवत्ता पर पड़ने वाले हानिकारक प्रभावों से समझौता करने से लाभ किसे होगा, रोगी को या निर्माता को! अब तो रोगियों को ही यह विचार करना होगा कि औषधि में घुल रहे प्लास्टिक के नैनो पार्टिकल्स के हानिकारक प्रभावों से समझौता करने की आवश्यकता क्यों है?