स्वास्थ्य और जीवनशैली

जीवन रक्षक -सात्विक रोटी

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आजादी के बाद भारतीय जनमानस में रोटी और विशेष गेहूं की रोटी जीवन का आधार हो गई है। किन्तु यह भी सच्चाई है की आज के जीवन में जीवनशैली बीमारियों का आधार भी अब गेहूं की रोटी हो गई है। रोटी का मतलब ही गेहूं की रोटी हो गया है।  अन्य आटे  की रोटी के लिए अनाज का नाम पहले बोला जाता है। जैसे मक्के की ,बाजरे की ,जौ की रोटी।
बढ़ती जनसँख्या और अनाज की बढ़ती मांग को लेकर 1950 के दशक से ही अनाज की खेती की पैदावार बढ़ाने के लिए प्रयोग होने शुरू हो गए थे। जिसकी वजह से आज का अनाज अपने मूल से भिन्न हो गया है।  जिस अनाज से भूख को शांत या तृप्त किया जाता था आज वही अनाज कई बीमारियों का आगाज बन गया है। ऐसे में जब अनाज खाना छोड़ना संभव नहीं है।
सात्विक रोटी एक बहुत ही अच्छा विकल्प है। 
सात्विक रोटी के लिए पालक ,चमोलाई ,पूनर्नवा ,चुकंदर ,कद्दू ,खीरा ,एलोबेरा ,ककड़ी , या किसी भी सब्जी का उपयोग किया जा सकता है।  सब्जी को उबालकर या बिना उबाले महीन पीस कर उसमे आटा  गुंथा जाता है। ऐसा करने पर रोटी से 30 % तक आटा कम किया जा सकता है। जिससे मधुमेह ,रक्तचाप ,मोटापे जैसी बीमारियों से राहत मिलती है। तथा सब्जियों के पोषक तत्वों से विटामिन ,मिनरल्स आदि की पूर्ति हो जाती  है।
गुजरात में सहजन के पत्तों को आटे में मिलाकर रोटी व पराठे बनाये जाते है। एक भाषण में खुद प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने सहजन के पराठो की तारीफ की है। ऐसे ही राजस्थान में पुनर्नवा राजस्थानी भाषा में साटा और चांदलिया के पत्तों की रोटी कई ग्रामीण क्षेत्रों में चलन में है।  महाराणा प्रताप के संघर्ष और पराक्रम की गाथा में उनके द्वारा जंगलों में घास की रोटी खाने का उदाहरण मिलता है।
फ़ूडमेन की सलाह है की गेहू का आटा जितना हो सके उतना कम खाये तथा पीसे पिसाये पैक्ड आटे के स्थान पर घर में ही पीसे या मोहल्ले के अनाज का आटा पीसने वाले से ही पिसवायें। व मल्टीग्रेन या जौ ,बाजरी आदि के आटे से सात्विक रोटी का सेवन करे। जिससे बीमारिया काम होंगी और सेहत भी अच्छी बनी रहेगी।

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