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घिन आने की भावनाओ का हनन

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प्रोसेस फ़ूड इंडस्ट्री के कारनामें [ भाग 1 ]

कोरोना काल के दौरान मीडिया के कुछ भाग ने एक धर्म विशेष को लेकर  थूक जिहाद जैसी खबरें चलाई थी। थूक जब तक मुँह में है तब तक लार है  और मुँह से बाहर निकलते ही थूक।  थूक कर चाटना या किसी का भी थूक चाटना बहुत ही घिनौना माना जाता है और है भी।
घिन किसी को भी किसी से हो सकती है घिन आना स्वभाविक है किसी शाकाहारी को मांस मछली देख कर तो किसी को सड़ी गली सब्जियों को देख कर। हम भारत के लोग अक्सर चीन या विदेशी खाने पीने की वस्तुयें  देख कर  ही सिहर जाते है क्यों की हमारी सांस्कृतिक अभ्यास के इतिहास में वो सब नहीं है।  
लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के  प्रमुख शोधकर्ता और प्रोफेसर वेल कर्टिस ने कहा, ‘घिन आने वाली इस भावना से हम कहीं न कहीं बीमारियों से दूर रहते हैं. हम पहले ही गन्दी  चीजों के प्रति सुरक्षात्मक रवैया अपना लेते हैं।
आधुनिक भारत में घर की रसोई से लेकर  पटरी रेहड़ी ,ढाबे  ,रेस्टोरेंट ,होटल आदि  से  लेकर और लेब मे विकसित और फेक्ट्रियो में निर्मित प्रदार्थ  भरे पड़े है जो किससे बने हे कैसे बने है हमें पता भी नहीं। विज्ञापनों की चमक दमक और कृत्रिम जायके और महक के धोखे में हम वो सब उपभोग कर रहे है जिनसे हमारी घिन करने की भावनाओ का हनन होता है जिन चीजों को देखते ही घिन आ जाती है उन्ही से कुछ तत्व निकाल कर कोई खाद्य तत्व आपके ही खाने में डाल दिया जाता है।
हालाँकि इससे कोई खास  नुख्सान नहीं होता लेकिन हमारी घिन करने की भावना का हनन जरूर होता है।
आइये आपको वो कुछ तत्वों के बारे में बताते हे जिनसे हो सकता है की आपको घिन आती हो लेकिन वो कही न कही आपके जायके से जरूर जुड़ा है
प्रोसेस फ़ूड इंडस्ट्री में काम आने वाले तत्व जिनके जायेके के बिना  जीवन ही अधूरा है लेकिन उनकी  सचाई आपको घिन करने के लिए मजबूर कर सकती है।
 

*स्काटले ( Skatole ) या 3-मेथीलिडोल ( Methylindole ) यह  एक प्राकृतिक तत्व है जो  कुछ फूलो में  पाया जाता है तथा विशेष कर स्तनधारी जानवर जैसे गाय बकरी व मनुष्य की आंतो  में पाया जाता है जिसे उनके गोबर से प्राप्त किया जाता  है।    स्काटले का प्रयोग खुशबूदार इत्रों  में और खाद्य पदार्थों में स्ट्रॉबेरी व वनीला फ्लेवर आदि में खुशबु को बनाये रखने और  खुशबू को खुशनुमा बनाने के लिए किया जाता है प्राकृतिक रूप से यह गोबर इत्यादि  खाने वाले जीवो को अपनी तरफ आकर्षित करता है।  मनुष्यो में इसकी हल्की गंध का आकर्षण पाया जाता है इसे तम्बाकू और सिगरेट में भी मिलाया जाता है।

कस्टोरेयम (castoreum ) ये भी एक प्राकर्तिक तत्व है जो की ऊदबिलाव के गुदा के पास की ग्रंथि से निकलता है इसको थोड़ा प्रोसेस किया जाता है इसमें  वनीला फ्लेवर जैसी सुगंध  पाई जाती है  इसका उपयोग भी इत्र बनाने और खाद्य प्रदार्थो में वनीला फ्लेवर के लिए किया जाता है।
उपरोक्त  प्रदार्थ प्राकर्तिक है और इन्ही को नेचुरल फ्लेवर कहा जाता है आजकल इनका उपयोग बढ़ा है लेकिन इनको पेकिंग पर लिखने का तरीका बदल गया है आजकल इनको सीधे नाम से या फ़ूड कोड में न लिख के इनको ‘नेचुरल’ व ‘आइडेंटिकल नेचुरल फ्लेवर’, आर्टिफीसियल फ्लेवर  क्लास 1 से 3  तक में लिख दिया जाता है और कई उत्पादों में लिखा भी नहीं जाता है।
 
भारत देश  आस्थाओ और  भावनाओ का देश है। कुछ विशेष जगहों और जनजातियों को अपवाद मान लिया जाये तो भारत के हर समुदाय के आस्थागत कुछ खास तरह के भोजन की मनाही है।  फिर भी फ़ूड प्रोसेसिंग कम्पनी अपने ही मनमाने तरीके से कुछ भी अवयव उत्पाद की सुरक्षा के नाम पर जोड़ देती है भारत का हिन्दू समुदाय गौमांस का सेवन महापाप मानता है वही भारतीय मुस्लिम समुदाय सूअर को खाना तो छोड़िये नाम लेना ही गुनाह मानते है वही फ़ूड प्रोसेस कम्पनी इन्ही जानवरो की चर्बी व हड्डियों से बने खाद्य अवयवों को उत्पाद में मिला देती है जानकारी के आभाव में हमारे घिन और धार्मिक भावनाओ का हनन आम हो गया है।
आगामी लेखो में ऐसे और भी घिनोने खाद्य तत्वों की जानकारी साँझा की जाएगी।
अपनी सलाह  व शिकायत के लिए फ़ूडमेन से जुड़े रहिये।
 

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