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कचरा -एक ऐसी समस्या जिस पर ध्यान किसी का नहीं
कचरा -जिसको लेकर सिर्फ एक व्यक्ति ही नहीं बल्कि आने वाली पीढ़िया भी भुगतेगी
प्लास्टिक कचरा कम करने के लिए आम जनता को ही कदम बढ़ाने होंगे
कचरा हर कोई फैलता है। प्रकृति भी कचरा फैलाती है। लेकिन उस कचरे को समाप्त करने का भी दम रखती है। लेकिन हम इंसानो के फैलाये कचरे का तोड़ ना तो प्रकृति के पास है और ना ही हम इंसानो के पास है।इंसानो ने जब से प्लास्टिक की खोज की है तब से कचरे के पहाड़ दुनिया भर की जमीनों पर दिन चौगुने की रफ़्तार से बढ़ रहे है।
हालत यहाँ तक आ चुके है , कि अब हमारे खून तक में नेनो प्लास्टिक पहुंच गया है।
दुनिया भर की बात करे तो विकसित देशों की सूची में अमेरिका का स्थान पहला है। एक अमेरिकी साल भर में 130 किलो प्लास्टिक कचरा फैलता है। और ब्रिटेन दूसरा स्थान पर 99 किलो प्रति व्यक्ति प्लास्टिक का कचरा पैदा करता है।
विश्व में 1950 के बाद लगभग 9 बिलियन टन से अधिक प्लास्टिक का उत्पादन किया है जिसमे से आधे से अधिक को जमीन में गाड़ दिया है और सिर्फ 9 प्रतिशत ही रिसाइकल हुवा है।
भारत में भी अब प्लास्टिक कचरे और ई-कचरे की समस्या किसी दैत्य की तरह फ़ैल रही है। साथ ही मिश्रित व मल्टी लेयर पेकिंग ने तबाही मचाई हुई है। उस पर आग में घी का काम भारत कचरा आयात कर के कर रहा है।
आपको भी जानकर आश्चर्य होगा की भारत हर साल 90 हजार से 1 लाख टन प्लास्टिक का कचरा आयात करता है। जिसमे पाकिस्तान बांग्लादेश का भी कचरा भारत में आयात होता है। तथा 21 हजार टन ई-कचरा तथा अवैध रूप से दुनिया भर से डायपर तथा और तरह के कचरे का आयत अवैध रूप से भारत में किया जाता है।
जिनका अधिकांश भाग भारत के ही किसी डम्पिंग यार्ड ने डाल दिया जाता है।इसको लेकर मौजूदा भाजपा सरकार पर उंगली उठा सकते है। लेकिन इस सौदे के पीछे पिछली सरकारों की अंतरराष्ट्रीय संधिया जिम्मेदार है। 2018 एक बार के लिए भाजपा ने इस कचरे के आयात को प्रतिबंधित किया था लेकिन अंतरराष्ट्रीय दबाव वजह से इसे पुनः जारी किया गया।
भारत सरकार अब सिंगल यूज प्लास्टिक के उत्पादन और उपयोग को लेकर नए नियम जारी कर रही है।सरकार द्वारा सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध हुवा है लेकिन कागजी। आज भी प्लास्टिक स्ट्रॉ दूध छाछ और जूस के साथ देखी जा सकती है। भारत में विश्वगुरु या वैश्विक नेता या सूत्रधार बनाने की होड़ में घोषणाएं तो हुवी है।
लेकिन घोषणाओं पर कार्यवाही के नाम पर सिर्फ कागज बाजी ही हुई है। लेकिन इससे कचरे में कमी नहीं आएगी इससे उलट कचरे में और अधिकता आएगी। प्लास्टिक की जगह भरने के लिए मिश्रित या मल्टी लेयर पैकिंग का उपयोग होगा जो की प्लास्टिक के सामान ही खतरनाक है।
प्लास्टिक के कचरे के निस्तारण के लिए नई तकनीकों का विकास हो रहा है। हर रोज कोई नई खोज या स्टार्टअप सामने आ रहे है। लेकिन मल्टी लेयर पेकिंग का कोई समाधान नहीं है। इसे भी जलने से पर्यावरण को नुकसान पहुंचने वाली जहरीली गैस बनेगी और जमीन में यह ख़त्म नहीं होगा।
मल्टीलेयर पैकिंग से सीधा मतलब टेट्रा पैक से है। जिसको अज्ञात सूत्रों या वजहों से सुरक्षित मान लिया गया है। ये सरकारो की मूर्खता है या जानबूझ कर मूर्ख होने की वजह है की सिंगल यूज प्लास्टिक को तो प्रतिबंधित किया हुवा है और टेट्रा पैक जैसे और भी खतरनाक तत्वों को खुली छूट दे रखी है।
मोदी सरकार चाहे छवि निर्माण के लिए सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबन्ध लगाया हो लेकिन सच्चाई लोगो के सामने से रोज गुजरती है। सिंगल यूज प्लास्टिक के साथ साथ मल्टी लेयर पैकिंग मटेरियल पर भी सरकार और आम जनता का ध्यान खींचने की कोशिश है। आपका टूथपेस्ट हो या नूडल्स का पैकेट या ज्यूस का पैकेट सभी मल्टी लेयर पैकिंग मटेरियल से बने है जिनका खत्म पृथ्वी के साथ ही होना है।
क्या हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए जीवन इतना कठिन क्र देंगे की वो पीढ़िया अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए लेब और कृत्रिम तरीको के लिए विवश हो जाये। अभी भी मौका है। हम अपनी गलतियों को सुधारे और सरकारों को भी समझाये की क्या गलत है। एक दो मंत्री बिकने का मतलब सरकार बिकना नहीं है। जनता को एक जुट हों ही पड़ेगा। नहीं तो वो नवम्बर या दिसम्बर दूर नहीं जब इन महीनो का तापमन 40 डिग्री से ऊपर न हो और खेत बंजर हो जाये।
प्लास्टिक कचरा कम करने के लिए आम जनता को ही कदम बढ़ाने होंगे। क्यों की सरकारे अपने में ही मस्त है।
हमें फ़िल्मी मोड या विचारो से आगे आना होगा। फिल्मो में कोई हीरो या नेता आ ही जाता है। लेकिन वास्तविक स्थिति में हम लोगो को ही पहल और शुरुवात करनी पड़ेगी। बजाये किसी स्टार्टअप किये जिसमे आप किसी के लिए आदर्श तो हो सकते है लेकिन समस्या का समाधान नहीं। आज भारत में ऐसे कई स्टार्टअप है जो प्लास्टिक के कचरे से कुछ न कुछ बना कर मिडिया में सुर्खियां बटोर रहे है। लेकिन प्लास्टिक निपटान से ज्यादा उत्पादन पर हमारा ध्यान होना चाहिए। और यही रास्ता है जब हम प्लास्टिक के कचरे का समाधान कर सकते है।