फ़ूड लेबल : इ कोडिंग के सच
पाइरोलिग्नियस एसिड: धुएं की कृत्रिम महक ( तरल स्मोक )
फ़ूडमेन की रिसर्च डेस्क से
अभी तक इसका कोई ई कोड नामित नहीं है। पाइरोलिग्नियस एसिड को लेकर कोई भी वैश्विक रूपरेखा ,व नियम कानून नहीं है। हर देश में इसके अलग अलग नियम व अलग अलग पदार्थों की छूट या पाबंदी है। आमतौर पर भारतीय शराब व अन्य खाद्य उत्पाद में इन कृत्रिम धुऐ की महक और स्वाद को आर्टिफीसियल कलर लिख कर उसका वर्ग ( CLASS ) लिख कर इतिश्री कर ली जाती है। जिससे इसके बारे में खोज बीन कर पाना मुश्किल हो जाता है। हमें हमारे खाने पीने में क्या है जानने का हक़ है उसे गूढ़ भाषा और अपने शब्दों में घुमा फिरा कर गुमराह करना हमारे अधिकारों का हनन है। फ़ूडमेन आपके इसी अधिकार की वकालत करता है।
धुएं की महक हमारे बहुत से भोजन की पहचान है
दरअसल में मानव विकास और उसके भोजन के विकास का विकास साथ साथ हुया है। पहले इंसान कच्चा मांस खाता था। फिर आग पर भून कर खाने लगा।
जैसे भुने हुवये मांस के स्वाद को प्रयोगशाला में विकसित कर रासायनिक टेस्ट बढ़ाने वाले तत्व बनाये गए है । ठीक वैसे ही भुने हुये या कोयले पर जले हुवे भोजन की महक को भी हमारे शरीर ने मानव विकास की शुरुवात में भोजन की महक एक प्रतीक मानता है। जो हमारे जीन्स में है जिसका उपयोग हम करते आये हैं।
लेकिन अब रासायनिक तत्वों का इस्तेमाल कर धुंए का स्वाद व खुशबु दी जाती है। और इन रसायनो को पायरोलिग्नीयस एसिड ,या लकड़ी का सिरका कहते है।
पायरोलिग्नीयस एसिड अपने आप में कोई तत्व न हो कर एक तरह के तत्वों का समूह है। जिसमे धुएं की महक को तरल करने के लिए ,परम्परिक तरीको से लेकर अत्याधुनिक अश्वन व संश्लेषण संयंत्र में मांग अनुसार उत्पादन किया जाता है। जिससे खाद्य उत्पादों में स्मोकी व बारबेक्यू महक और स्वाद दिया जाता है। लेकिन यह चारकोल ,चारकोल और तार या डामर से बनाया जाता है। जिसका स्वभाविक रंग भूरा हो जाता है। इसलिए इसे शराब उद्योग विशेष कर विस्की ,स्कॉच ,रम व भूरी दिखने वाली शराब में रंग व महक के लिए किया जाता है।
शराब को बनाने और उसमे धुये की महक लाने और शराब से अशुद्धियाँ दूर करने के लिए शराब को लकड़ी के अंदर की तरफ जले हुवे ड्रम में महीनो तक रखा जाता था जिससे उनमे कुदरती धुवे के स्वाद के साथ साथ अशुद्धियाँ भी दूर हो जाती थी। लेकिन वर्तमान परिपेक्ष में इतना समय और इतनी मानवीय मेहनत हर किसी शराब उधोग के लिए संभव इस लिए इन सस्ते और तुरंत काम में आने वाले पायरोलिग्नीयस एसिड का उपयोग कर ग्राहक को भ्रमित कर दिया जाता है।
पाइरोलिग्नियस एसिड मानव पाचन तंत्र में पच नहीं पाते और आंतों को भी प्रभावित करते है। शराब में इनका उपयोग अधिक होता है। इसलिए विस्की व अन्य भूरे रंग की शराब के नियमित उपभोक्ताओं को काला मल आने की शिकायत होती है। जिसका कारण पाइरोलिग्नियस एसिड तथा चारकोल व चारकोल से बने रंग और महक हो