स्वास्थ्य और जीवनशैली
विटामिन का मायाजाल भाग -4
जैसा की पहले के लेखो में बताया जा चूका है की विटामिन को लेकर हमारे मन में और हमारी शिक्षा प्रणाली में सब कुछ पोषण और सिर्फ पोषण के बारे में ही बताया गया है। जिसका फायदा बड़े औद्योगिक घराने पिछले 70 सालो से उठाते आ रहे है। जो की चिकित्सीय प्रणाली और विज्ञापन के माध्यम से हमारे मन मस्तिष्क में जड़वत बिठा दी गई है। जैसा की विटामिन से होते खतरों के बारे में भी हमने पिछले लेखो में संछिप्त व सार पूर्ण बताया है। आज बात करेंगे सुडोविटमिन की।
सुडोविटामिन(Pseudo-vitamin)
सुडो-विटामिन उन तत्वों को कहते है। जिनकी संरचना बिलकुल विटामिन जैसी होती है। लेकिन मानव शरीर के लिए इनका कोई उपयोग नहीं होता है। और अगर बहुत असर भी होता है तो इनका असर व्यक्ति विशेष पर या तो होता ही नहीं है और होता है तो भी कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता है। विटामिन्स को क्रमशः करके देखेगे तो आपको कई क्रमांक व अक्षर नजर नहीं आएंगे। जैसे अक्षर – विटामिन जी ,विटामिन ऐल तथा क्रमांक विटामिन बी 4 विटामिन बी 10 ,आदि।
ऐसा नहीं है की ये होते नहीं है। होते है लेकिन कोई विशेष काम के नहीं होते है। शुरुवात में चिकित्सीय विज्ञानं ने इनको अपनी लीस्ट में रखा लेकिन जैसे जैसे इनके असर पर अनुसंधान हुवे वैसे वैसे इनको हटा दिया गया। इन हटाए गए विटामिन को ही चिकित्सीय भाषा में सुडो-विटामिन कहा गया है।
वही कुछ खाद्य विशेषज्ञ आज के चिकित्सा क्षेत्र और प्रोसेस फ़ूड में उपयोग में होने वाले विटामिन को भी सुडो-विटामिन ही मानते है। क्योकि फैक्ट्री में निर्मित विटामिन का स्रोत क्या होता है। यह सार्वजनिक रूप से जनता के सामने नहीं है। विटामिन सी या डी या ई प्राकृतिक रूप से खाद्य वनस्पतियों में पाए जाते है जिनको पचने के लिए मानव शरीर अनुकूल है। लेकिन सिंथेटिक रूप से बनाये विटामिन कई रासायनिक प्रक्रिया और कई रसायनो का मेल होता है। जिनमे से कुछ प्रदार्थ या प्रतिशत ही मानव शरीर को स्वीकार होते है। जिससे या तो ऐसे विटामिन को शरीर द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है। लेकिन कई बार इनके दुष्प्रभाव भी देखने को मिलते है। विशेष कर इन सिंथेटिक विटामिन में प्रयुक्त रसायनो से शरीर को एलर्जी हो जाती है। जिसके चलते और भी कई तरह की एलर्जी शुरू हो जाती है।
प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले विटामिन ज्यादा स्थिर नहीं रहते तथा अपने से ही कम या खत्म हो जाते है। इसी लिए चिकित्सा क्षेत्र में सिंथेटिक विटामिन्स का उपयोग होता है। जो की खाद्य पूरक के रूप में दर्शा कर बेचे जाते है। ऐसे किसी भी विटामिन या खाद्य पूरक दवा की गोली या टेबलेट के पीछे आप हमेशा लिखा पाएंगे की यह दवा के रूप में उपयोग में नहीं लाया जा सकता है ( Not for medicinal use )
ये एक विडंबना ही है की भारत जैसे गरीब देश में गरीबो को विटामिन फ़ूड सप्लीमेंट दवा की पर्ची में दवा के रूप में लिखा जाता है लेकिन बेचने में इसे साफ साफ शब्दों में दवा के रूप में उपयोग नहीं लेने का लिखा जाता है। ऐसे में पढ़े लिखे समुदाय में भी विटामिन व विटामिन सप्लीमेंट को लेकर एक आकर्षण देखने को मिलता है।जिनका मूल्य मनमानी तरह से लिया जाता है। विटामिन को लेकर एक ऐसा मायाजाल आप अपने चारो और पाएंगे जिसका कोई फर्क आपके जीवन या शरीर पर पड़े न पड़े लेकिन आपकी जेब पर जरूर पड़ता है। कभी एक संतरे को या किसी भी फल के विटामिन को एक टेबलेट के विटामिन से तुलनात्मक रूप में दिखाया जाता है।
फ़ूडमेन विटामिन के सिंथेटिक रूप को लेकर अब तक के हुवे दुनिया भर के अनुसंधानों और रिसर्च रिपोर्ट के हवाले से ये लेख आप तक लेकर आया है। हालाँकि ये लेख इंटरनेट पर मुक्त रूप से विद्यमान है। लेकिन विटामिन को लेकर इतनी सकारात्मकता फैलाई गई है की कोई विटामिन व सिंथेटिक विटामिन के बारे में नकारात्मक सोच ही नहीं सकता। फ़ूडमेन की यही कोशिश है की खाद्य के वो अनछुवे तथ्य आपके सामने लाये जिनसे बच कर आप अपना जीवन स्वस्थ और आसानी से जी सके। क्रमशः जारी
ब्लॉग
सलाद -स्वस्थ भोजन और जीवन का आधार।
भोजन के साथ सलाद खाने से कई बीमारियां रहती है दूर।
सलाद भोजन का एक महत्वपूर्ण अंग है। सलाद कई तरह की सब्जियों का मिक्स भी हो सकती है या एक ही सब्जी को सलाद के रूप में खाया जा सकता है। सलाद को ज्यादा मिक्स में खाना फायदेमंद नहीं होता है। आमतौर पर सलाद को भोजन से ठीक पहले या भोजन के दौरान खाया जाता है।
भोजन के दौरान सलाद को निवाले के साथ खाने से आप अपने भोजन की मात्रा को कम कर सकते है।जिससे की मोटापे और मधुमेह मरीजों के लिए फायदेमंद है। मोटापे से ग्रस्त लोगो को सलाद का सेवन भरपूर मात्रा में करना चाहिए। भोजन के साथ सलाद लेने से भोजन को चबाने की प्रवृति में भी बढ़ोतरी होती है।यानी की निवाले के साथ सलाद के होने से भोजन ज्यादा चबाना पड़ता है।जो की स्वास्थ्य और पाचन दोनों को दुरुस्त करता है।साथ ही वजन कम करने वाले लोगो के लिए एक बहुत ही आसान तरीका है।इससे भोजन को कम करते हुवे सलाद का सेवन बढ़ाने से भूख को भी तृप्त किया जा सकता है।वो भी बिना भूखे रहे।
आमतौर पर सलाद में कच्चे टमाटर प्याज गाजर मूली खीरा ककड़ी हरी मिर्च का सेवन प्रमुख है।
फ़ूडमेन की सालाह है की एक बार में एक ही तरह की सलाद का उपयोग ज्यादा लाभकारी होता है। तथा सलाद में नमक डालने से बचाना चाहिए। कुछ लोग सलाद को भी हल्का फ्राई करते है। हालाँकि सलाद को कच्चा ही काम में लेना उचित है
सलाद के साथ साथ अदरक के बारीक़ टुकड़े या कदूकस किये अदरक खाने से अपच और गैस की समस्या को कम किया जा सकता है।सलाद में सब्जियों के अलावा फलो का विशेषकर खट्टे फलों का उपयोग न करे। अधिकतर सब्जियां अल्कलाइन होती है। और अधिकतर फल एसिडिक होते है। दोनों का साथ में कच्चे रूप में होना विरुद्ध आहार माना गया है।
कैंसर पीड़ित रोगियों को भी सलाद खाने की सलाह दी जाती है। हफ्ते में एक दिन सिर्फ सलाद का ही उपयोग कर पाचन तंत्र को आराम दे कर शरीर में बने विषैले तत्वों को कम किया जा सकता है।
आज के दौर में जीवनशैली बीमारियां नौजवानो को घेरने के लिए तैयार रहती है। लेकिन जीवन और भोजन में अपनाये गए ऐसे छोटे छोटे बदलाव आपको कई गंभीर बीमारियों से बचा सकने की क्षमता रखते है। इसलिए सलाद का सेवन जरूर करे। स्वस्थ रहे। खुशहाल रहे।
ब्लॉग
चावल के मुरमुरे ,भारतीय खाद्य संस्कृति और विज्ञान का अनोखा उदाहरण।
मोटापे की समस्या में महत्वपूर्ण भूमिका में चावल के मुरमुरे।
चावल के मुरमुरे खाने के फायदे
चावल के मुरमुरे (Puffed rice )भारत के अलग अलग राज्यों में अलग अलग नाम से जाने जाते है। और पुरे विश्व में इनको खाया जाता है। यहाँ तक की कुछ पूजा पाठ आदि में इसको प्रसाद के रूप में भी मुरमुरे का वितरण होता है। मुरमुरे चावल को गर्म नमक में भून कर चावलों के फूलने तक भुना जाता है।
साधारण से दिखने वाले मुरमुरो में भरपूर लौह तत्व ( Iron )होता है। सिर्फ 100 ग्राम मुरमुरे में 30 से 32 मिलीग्राम, लौह तत्व 110
मिलीग्राम पोटेशियम और 3 मिलीग्राम सोडियम होता है। तथा फेट मात्र आधा ग्राम ही होता है। इसलिए यह नाश्ते और स्नेक्स के लिए बेहतरीन विकल्प है। साथ ही वजन कम करने और भूख कम करने के लिए भी एक अच्छा आहार है।मुरमुरे न सिर्फ भूख को कम करते है। बल्कि पेट को भी अल्प मात्रा में होते हुवे भी भरा होने का अनुभव देते है।
जिससे वजन कम करने के आहार में इसका उपयोग एक असरकारक भोजन के रूप में किया जा सकता है। लेकिन बाजारवाद के चलते इन सस्ते चावल के मुरमुरे की जगह दवाइयों और डिजाइनर खाद्य पदार्थों ने अपनी जगह बनायी हुयी है। चावल के मुरमुरे न सिर्फ सस्ते स्नेक्स है बल्कि चावल के मुरमुरे में फाइबर अच्छी मात्रा में होते है। इसलिए कब्ज वाले मरीजों के लिए भी यह बहुत गुणकारी हो सकती है।
मुरमुरे हमारे अनाज खाने की शुरुवात से ही हमारे साथ है। आज के दौर में मुरमुरे मात्र भेलपुरी और कुछ नमकीन तक ही सिमट कर रह गया है। अभी भी कुछ ग्रामीण स्थानों पर मुरमुरे के लड्डू और कई तरह के मीठे स्नैक्स खाये जाते है। चावल के मुरमुरे से बच्चो के लिए कई तरह से स्नेक्स और चाय के साथ खाने के व्यंजन आपको इंटरनेट पर मिल जायेंगे।
मुरमुरे या पफ्ड (फुले) अनाज संभवतः अनाज खाने के सबसे शुरुआती शुरुवात में से एक माना जा सकता है। शुरुवाती इंसान ने जब आग की खोज कर मांस को पकाना सीख लिया था।
तब आग जलने के लिए आसपास के घास का उपयोग किया होगा। और यही घास के बीजो में तापमान की वजह से पफ्ड ( या फुले ) बने होंगे और इंसानो ने मांस के साथ साथ चावल या मक्की , गेंहू के फुले पहली बार खाये होंगे जो उनके अनाज के प्रति आकर्षण बढ़ाने का काम किया होगा। और इसी तरह इंसानो ने अनाज के व्यंजन और अनाज उगाने के लिए विकास की और अग्रसर हुवा होगा।और आज हमारे पास सेंकडो की तादाद में कृषि योग्य फ़सलें है। जो अरबो इंसानो का पेट भर रही है।
इंसान में सबसे पहले किस अनाज के फुले ( पफ्ड ) खाये होंगे यह शोध और बहस का हिस्सा हो सकता है। लेकिन इस लेख में पफ्ड चावल या ( फूले ) के बारे में जानकारी दी जा रही है।
मुरमुरे समय के साथ साथ रसोई से दूर होते जा रहे है।जिसका एक मुख्य कारण इससे बनने वाले उत्पाद को औद्योगिक रूप में मान्यता नहीं मिलना है।तथा इनके ओधोगिक रूप से बाजार में नहीं आने का कारन इनका सस्ता होना व भारतीय संस्कृति से सीधा जुड़ा होना भी है। जिसके चलते बहुराष्ट्रीय कम्पनीज चावल के मुरमुरे बेचने से परहेज करती है। स्वस्थ्य के साथ साथ आप इसे कभी भी किसी भी वक़्त खा सकते है। वजन कम करने वाले भी इससे अपनी भूख को नियंत्रण में रख सकते है।
फ़ूडमेन अपने नियमित स्तम्भ ” स्वास्थ्य और जीवनशैली “में स्वास्थ्यवर्द्धक तथा सेंकडो सालो से हम भारतीयों के खानपान और उनकी उपयोगिता के बारे में बताया जा रहा है।
जो आज के दौर में लगभग भुला ही दी गई है। या मात्र किसी त्यौहार और पर्व तक सिमित हो चुकी है। जबकि इनको दैनिक जीवन में उपयोग कई प्रकार से उपयोगी और महत्वपूर्ण है।तथा कई बीमारियों के इलाज व इलाज के दौरान इनका उपयोग बहुत ही लाभदायक हो सकता है। बस आपका चिकित्सक भारतीय व्यंजन और अनाज की संस्कृति के बारे में जनता हो।
ब्लॉग
सामक की इडली ।
मोटापे व पेट से जुड़ी बीमारियों के लिए एक बहुआयामी भोजन -सामक की इडली।
सामक की इडली कैसे बनाये ।
सामक की इडली एक बहुआयामी भोजन है। जो किसी भी बीमारी या अवस्था व किसी भी उम्र के लिए उपयोगी और लाभकारी भोजन है। जो नाश्ते व खाने में रोटी पराठे विकल्प के रूप में खाया जा सकता है।हालाँकि पुरानी मान्यता के चलते सामक को उपवास तक ही सीमित समझा जाता रहा है।सामक को भारत में कई नामों से पहचाना जाता है। इसे सांख। सवा समां सांवा ,सांवा चावल आदि नामो से जाना जाता है।अंग्रेजी में इसे बार्नयार्ड मिलेट कहा जाता है।
यहाँ तक की सामक को मात्र चावल की तरह उबाल कर ही खाया जाता है। सामक को अन्य किसी व्यंजन या रेसिपी के साथ जोड़ कर देखा ही नहीं गया। फ़ूडमेन अपने सत्तर पर खाने पीने के प्रयोग करता आया है। जिसमे सामक को लेकर कई प्रयोग किये गए।
जिसमे सामक को पीस कर रोटी बनायीं गई जो बहुत ही कड़क बनी। इसके अलावा सामक का हलवा भी बना कर देखा गया जो थोड़ा कम स्वादिष्ट लगा। सामक को पीसकर आटे से सामक की इडली बनायीं गई जो बहुत ही अच्छी बनी। हालाँकि सूजी और चावल दाल की इडली की तरह बहुत नरम तो नहीं बनी लेकिन बहुत ही स्वादिष्ट और खाने लायक बानी।
अब तक के इतिहास में सामक की इडली की चर्चा देखने को नहीं मिली है। ऐसे में लोहो को जब समक की इडली बना कर खाने के लिए कहा गया तो लोगो में अनसमझ जैसी प्रतिक्रिया देखने को मिली है।इसके विपरीत सामक की इडली बहुत ही स्वादिष्ट और लाभकारी भोजन है।
सामक की इडली कैसे बनाये
बहुत ही आसान है। सामक की इडली बनाने के लिए सामक को मोटा पीस लेवे तथा पानी या बेहतर परिणाम के लिए दही में आटे को इडली के बेटर की तरह गाढ़ा घोल बना कर इडली मेकर की सहायता से सामक की इडली बनाये।अथवा सामक को रात भर पानी में भीगो कर छोड़ देवे।व सुबह इसे मिक्सर ग्राइंडर में दरदरा होने तक पीस लेवे। फिर इस घोल को सामान्य इडली की तरह बनाये। इसको सब्जी या दाल किसी के भी साथ खाया जा सकता है।
फ़ूडमेन द्वारा एक प्रयोग किया गया जो आधिकारिक न हो कर एक सलाह के रूप में अलग अलग तरह के रोगियों को सामक की इडली खाने के लिए कहा गया । जिसमे मधुमेह,उच्च रक्तचाप तथा विशेष पेट में एसिडिटी अपच व पेट संबंधी रोगों और मोटापे से ग्रस्त लोगो को सलाह के रूप सामक की इडली का उपयोग रोटी के विकल्प में लेने को कहा गया।
इसके लिए फ़ूडमेन द्वारा बीकानेर (राजस्थान ) के दो मेडिकल स्टोर पर आने वाले रोगियों से बातचीत व चर्चा द्वारा रोगियों को सामक की इडली खाने के लिए प्रेरित किया गया तथा एक हफ्ते या 10 दिन के अंतराल बाद पुनः रोगियों से संपर्क किया गया। जिसमे से कई रोगियों ने पूर्ण रूप से सामक इडली पर अपना भोजन लिया व कइयों ने एक वक़्त सामक की इडली का सेवन किया।
लगभग सभी का अनुभव सुखद रहा विशेष रूप से पेट से जुड़ी बीमारी वाले जिनको कब्ज व बवासीर थी व मोटापे वाले रोगियों में सामक की इडली को लेकर अपने सराहनीय अनुभव बताये। हालाँकि ये कोई आधिकारिक सर्वे या कोई आधिकारिक परीक्षण नहीं था। खुद फ़ूडमेन से जुड़े लोगो को भी ये सब करने के लिए आग्रह किया गया। लगभग सभी को पेट में हल्कापन और ऐनर्जी लेवल में सकारात्मक परिणाम मिले।
हमारे समाज में खाने पीने को लेकर एक खास किस्म की सोच बनी हुई है। हम उपलब्ध खाद्य संसाधनों को उनके अलग रूप के बारे में सोच ही नहीं पाते है। हम बने बनाये वयंजनो में ही थोड़ा बहुत परिवर्तन करके इसे और भी ज्यादा टेस्टी या वीभत्स बना सकते है। जो की आप फ़ूड ब्लॉगर के विडिओ में देख सकते है। लेकिन लीक से हट कर स्वाद और स्वास्थ्य ढूढ़ने की कोशिश नहीं करते है। ऐसे और भी प्रयोग होने चाहिए जो खाने पीने की वैकल्पिक रेसिपी ढूंढ सके जो स्वादिष्ट भी हो और स्वस्थ वर्धक भी हो। फ़ूडमेन अपने पाठको को एक बार के लिए सामक की इडली को जरूर आजमाने के लिए कहना चाहेगा।
ब्लॉग
दैनिक एकल भोजन पद्धति।
विरुद्ध आहार से बचने के लिए एक सरल तरीका है। दैनिक एकल भोजन पद्धति।
दैनिक एकल भोजन पद्धति।फ़ूडमेन द्वारा अपने संसाधनों द्वारा किया हुवा एक प्रयोग व अनुसंधान है। जिसमे विरुद्ध आहार से बचने और स्वस्थ रहने के आसान तरीको को बताया गया है।
हम लोग खाने में कुछ भी खा लेते है। बिना किसी जानकारी या ज्ञान के हम दिन भर खुश न कुछ खाते ही रहते है।खाने के मामले में हमारे पास ज्ञान तो बहुत है। लेकिन भूख और फैशन के चलते ध्यान रख पाना आसान नहीं है।
किस खाने के साथ या खाया जा सकता है और क्या नहीं खाना चाहिए इन सब पर ना तो हम ध्यान दे पाते है और न ही सिखाया जाता है। वही भागदौड़ की जीवनशैली में कही भी कुछ भी खा लेने की प्रवृति आज हमारी जीवनशैली बीमारियों की प्रमुख वजह है। खाने के सेकड़ो विकल्पों में सही संयोग याद रख पाना और व्यवहार में लाना बिलकुल भी व्यवहारिक नहीं हो सकता है।
लेकिन कुछ एक तरीको से इन सब से बचा जा सकता है।फ़ूडमेन द्वारा एक विशेष पद्धति को आपके समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है। जो आसान है। इस पद्धति को भोजन की दैनिक एकल भोजन पद्धति कहते है। यानी एक दिन में एक ही प्रकार का भोजन ग्रहण करना।
हम जीवन में भोजन के रूप में बहुत से भोजन व भोजन के विभिन्न प्रकारो को एक ही दिन में उपभोग करते है। जिससे हमारे शरीर की पाचन प्रणाली पर बहुत बुरा असर होता है।
किसी भी प्रदार्थ को पचाने के लिए शरीर की पाचन प्रणाली को जरुरी एंजाइम और प्रदार्थ के अनुरूप अम्ल का उत्पादन करना पड़ता है। यदि हम एक साथ कई तरह की खाद्य सामग्री जिनकी तासीर (PH ) अलग अलग हो व प्रकार भी भिन्न हो तो उसे पचा पाना आसान नहीं होता है यही कारण है की दावतों में कई व्यंजन और गरिष्ठ भोजन होने की वजह से अपच व अन्य पेट व पाचन सम्बन्धी गड़बड़िया होने लगती है।
कई बार हम सुबह और शाम के भोजन में भी एक दूसरे के विरुद्ध भोजन ग्रहण कर लेते है जिसके कारण भी पाचन के सूक्ष्म प्रकार चय अपचय में अंतर्युद्ध होने से फ़ूड एलर्जी या पॉइजनिंग भी हो जाती है।
दैनिक एकल भोजन पद्धति में एक दिन का भोजन दोनों समय एक सामान ही रहता है। उदाहरण -यदि सुबह के खाने में रोटी व आलू की सब्जी खाई है तो रात्रि भोजन में भी यही दोहराया जाना चाहिए। जिससे पाचन तंत्र आसानी उपलब्ध एन्ज़ाइम से ही भोजन पचा ले। किसी नए तत्व के लिए उसे और एन्ज़ाइम न बनाने पड़े। और विरुद्ध भोजन होने की समस्या से भी बचा जा सकता है।
फ़ूडमेन ने अपने अध्ययन में पाया की दुरस्त ग्रामीण व आदिवासी इलाको में रहने वाले लोग का दैनिक भोजन प्राय सामान रहता है। यानि की स्थानीय समस्याओ के चलते अनजाने में ही दैनिक एकल भोजन पद्धति का ये लोग अनुसरण करते पाए गए।
ये लोग स्थानीय उपलब्ध अनाज व सब्जियों पर निर्भर रहते है। तथा यातायात व अपनी विवशताओं के चलते इनका दैनिक भोजन सामान ही रहता है। उनमे मोटापा व अन्य जीवनशैली बीमारिया बहुत ही कम देखने को मिलती है।जैसे डाइबिटीज व ब्लड प्रेसर ,हृदय रोग व एलर्जी आदि।
दैनिक एकल भोजन पद्धति का अनुसरण भारतीय मूलनिवासी व ग्रामीण परिवेश में सामान्य रूप से पायी जाती है। इन लोगो में कई भारतीय वनवासी व आदिवासी कबीलो पर फ़ूडमेन की टीम द्वारा उपलब्ध शोध व अध्ययन किया गया। जिसमे कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आये। राजस्थान में बीकानेर में स्थानीय कबीला राइका जनजाती पर हुवे शोध का शोध किया गया। जिसमे पाया गया की ये लोग ऊंटनी का दूध दैनिक उपयोग में लाते है जिसके चलते इन कबीलो में मधुमेह जैसी बीमारी बिलकुल भी नहीं पायी जाती है।
इस शोध के आधार पर ऊंटनी का दूध मधुमेह के लिए उपयोगी बता कर बाजार में उतार दिया गया। लेकिन इसी कबीले की खान पान की आदतों में फ़ूडमेन ने अपने अध्ययन में पाया की ये राइका कबीले के लोगो का खाना अधिकतर बाजरे के रोटी और मरुस्थलीय सब्जियां प्रमुखता से थी और ये इनके दैनिक जीवन में रोज काम में ली जाती है।
जिसके चलते फ़ूडमेन ये दावे से कह सकता है की ऊंटनी का दूध एक मात्रा में इस कबीले की स्वास्थय के लिए एक बिन्दु हो सकता है। लेकिन इनके भोजन की समानता और भोजन में विभिन्नताओं का आभाव भी इनके स्वस्थ जीवन का आधार केंद्र बिंदु है। जिस पर ध्यान नहीं दिया गया।
फ़ूडमेन की टीम द्वारा किया यह शोध सिर्फ एक कबीले की व्याप्त मान्यताओं तक सिमित नहीं है। आप किसी भी क्षेत्रीय सीमा से सम्बंधित हो। आप अपने क्षेत्र में उत्पन्न अनाज और वनस्पति के उपभोग तक ही सिमित होते है। तो आप पर जीवनशैली बीमारियों का असर कम होगा। ये बात हम भारतीय भारत छोड़ने के बाद ही समझ पाते है।
इसलिए यदि आप भी वजन कम करना व मधुमेह व जीवन शैली संबंधी बीमारियों से पीड़ित है तो भोजन की दैनिक एकल भोजन पद्धति व अपने क्षेत्रीयता के अनुसार भोजन करके अपनी बीमारियों को दूर रख सकते है। दैनिक एकल भोजन पद्धति को अपना कर एक बार अनुभव जरूर करें।
कंज्यूमर कार्नर
बाजार के अंकुरित अनाज व दालों से सावधान।
बाजार में अंकुरित अनाज व दालों का आटा स्वास्थ्य के लिए हो सकता है खतरनाक
अंकुरित करने के सही तरीके के बारे में जानिए
अंकुरित अनाज व दालों खाना हमेशा से स्वास्थकारी माना जाता है। जो की सत्य है। लेकिन बाजार में उपलब्ध अंकुरित उत्पादों को देखे तो कुछ एक कंपनी या स्टार्टअप कंपनी मेट्रो शहरों में देखने को मिल जाती हैं।
आज के दौर में जहा हर कोई कुछ भी बेचने और खरीदने को तैयार है। वहां अंकुरित प्रदार्थ कैसे बाजार से दूर रह सकते थे।
बाजार में अंकुरित मूंग चना गेहू आदि कई अंकुरित प्रदार्थ एकल या मिश्रित पैकिंग में बाजार में उपलब्ध है।जिसमे खाद्य संदूषक (बैक्टीरिया वायरस फंगस आदि ) पाए जाना एक आम बात है। बाजार में उपलब्ध अंकुरित अनाज व दालों धोकर या उबालकर या फ्राई करके खाद्य संदूषको को कम किया जा सकता है।
अंकुरित अनाज या दालों में एमिनो एसिड्स व प्रोटीन व एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते है। प्राय घर में अनाज व दालों को अंकुरित करने की प्रक्रिया में साफ सफाई का ध्यान रखा जाता है। साफ सफाई का ध्यान रखा ही जाना चाहिए।
अब बाजार में अंकुरित अनाज का आटा भी उपलब्ध है। जिसे कथित रूप से स्वास्थ्य के लिए बहुत ही अच्छा बता कर बेचा जा रहा है।जबकि ये बहुत ही खतरनाक हो सकता है। किसी भी बीज का अंकुरण उस बीज के जीवन की शुरुवात होती है। जिसे ताजा ही खाना चाहिए।
अंकुरित अनाजों को सूखा कर उसका आटा बनाना स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकता है। क्यों की ऐसे अनाज को आटा बनाने के लिए इनको सुखाया जाता है ,जो की अंकुरित अनाज में पौधे बनने की प्रक्रिया को रोका जाता है। फलस्वरूप अंकुरित अनाज में अपने बचाव की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। और कई तरह के घातक जैव रसायनो का निर्माण होता है।
अंकुरित अनाज जो सुख गया है वो वापस हरा नहीं हो सकता। क्योकि अब वह पूर्ण रूप से मर चूका है। आमतौर पर औद्योगिक रूप से अनाज के अंकुरण में कई तरह के अवांछित पदार्थों का उपयोग किया जाता है जिससे अंकुरण जल्दी हो फिर इनको सुखाने के लिए सबसे सस्ते तरीको में से एक धुप में सुखाया जाता है।
इतनी बड़ी मात्रा में इसमें ई-कोलाई साल्मोनेला लिस्ट्रिया जैसे खाद्य संदूषको का पनपना बहुत आसान हो जाता है।तथा पीसे हुवे आटे के साथ आपके स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर सकता है। तथा ऐसे ही आटे से बने अन्य खाद्य प्रदार्थ भी इतने ही खतरनाक हो सकते है।
पश्चिमी देशो में अंकुरित उत्पादों पर वहा की खाद्य सुरक्षा विभाग की निरन्तर निगरानी में बेचे जाते है। भारत में अभी तक कोई बड़ी कम्पनी ऐसे उत्पादों पर जोर नहीं देती है। जिस वजह से FSSAI भी ऐसे उत्पादों की जाँच पड़ताल में विशेष रूचि नहीं लेती है।
घर में अनाज व दालों को अंकुरित करते समय क्या क्या सावधानी रखनी चाहिए।
(1 ) अनाज व दालों को पहले धो कर साफ़ पानी में 3-4 घंटे एयरटाइट बर्तन में ड़ाल कर रखे। कभी भी खुले बरतन में अनाज या दाल को नहीं भिगोना चाहिए।
(2 ) अंकुरण के लिए साफ कपडे का उपयोग करे। स्प्राउट मेकर को भी अच्छी तरह से साफ़ करे व उपयोग नहीं होने पर सूखा कर ही रखे।
(3 ) अंकुरण के दौरान अगर फफूंद लग जाये तो अंकुरित वस्तु काम में ना लेवे।
(4) अंकुरित अनाज व दालों को उपयोग से पहले गर्म पानी में धो लेवे।
(5 ) अंकुरित अनाज को लम्बे समय तक फ्रिज में नहीं रखना चाहिए। ताजा अंकुरित अनाज ही उपयोग में लेवे
फूडमेन अपने पाठकों को बाजार में उपलब्ध अंकुरित अनाज व दालों को लेकर सावधान रहने की सलाह देता है।तथा घर में भी अंकुरण के लिए जरुरी सावधानी और सतर्कता बरतने की जरुरत है।अनाज को अच्छी तरह से धो कर भिगो देवे तथा छानने के बाद सुखी और साफ जगह पर या अंकुरित करने के उपकरणों को भी अच्छी तरह साफ करके ही उपयोग में लाये। अंकुरित होने के बाद इसे गर्म पानी में कुछ देर रख कर धोये।व फ्राई भी किया जा सकता है। स्वस्थ हर कोई रहना चाहता है। लेकिन स्वस्थ रहने के और भी तरीके हो सकते है।
कंज्यूमर कार्नर
घरेलु आटा चक्की – स्वास्थ्य के लिए एक बेहतरीन मशीन
घरेलु आटा चक्की -भोजन में स्वच्छता और रचनात्मकता का मेल करवा सकती है।
घरेलु आटा चक्की आज कई मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए बहुत उपयोगी और बहुत जरुरी घरेलू मशीन है। भारत में भोजन का मुख्य भाग रोटी होती है जिसके लिए आटा बाजार से रेडीमेड लाया जाता है। या फिर मोहल्ले की आटा चक्की से पिसवाया जाता है। शहरो में मोहल्ले की आटा चक्की धीरे धीरे गायब होने लगी है।
जिसकी प्रमुख वजह अनाज ले कर उसकी सफाई करना है। मध्यम और गरीब परिवारों की गृहणियां आज भी अनाज को साफ़ करके ,धोकर ,सूखा कर आटा पीसने को भेजती है। (नोट -अनाज को धोकर ,सूखाने से अनाज पर लगे कीटनाशक व अन्य खेती व भण्डारण के रसायन व फफूंद हट जाती है )
शहरी जीवन में भागदौड़ और आधुनिक जीवनशैली में अनाज साफ करके पीसने का चलन लगभग ख़त्म होता जा रहा है। बाजार में पीसे पिसाये आटे को ही उपयोग में लाया जाता है। किसी भी अनाज को पीसने के बाद उसके पोषक तत्व धीरे धीरे कम हो जाते है। बाजार में उपलब्ध रेडीमेड आटे को लम्बे समय तक सुरक्षित रखने के लिए व आटे में सफेदी के लिए कई तरह के रसायन मिलाए जाते है। जो स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते है।
ऐसी समस्याओं के लिए काम आती है घरेलू आटा चक्की।
घरेलू आटा मशीन के फायदे -घरेलू आटा मशीन ताजा व शुद्ध आ प्राप्त करने का माध्यम है। जिसमे बिना किसी रसायन के आप दो दिन या तीन दिन का आटा पीसकर रख सकते है। साथ ही कई तरह के अनाज को पीसा जा सकता है। तथा मल्टीग्रेन या दो अनाज आदि को मिलाकर भी रचनात्मकता के साथ अच्छा स्वास्थ्य बनाया जा सकता है। अनाज के अलावा कई तरह के मसाले भी पीसे जा सकते है। ये घरेलु आटा चक्की के प्रकार पर निर्भर करता है।
मोहल्ले और बड़ी आटा पीसने की मशीने लगातार चलाई जाती है। जिससे घर्षण से आटा भी गर्म हो जाता है। तथा आटे के पोषक तत्वों और भी ज्यादा कम हो जाते है। वही गेंहू की आटा फैक्टी में आटे से सूजी (ब्रान ) निकाल ली जाती है। इस तरह से आटा मात्र गेंहू का पावडर मात्र बचता है जिसमे पोषक तत्वों की मात्रा नाम मात्र रह जाती है
भोजन में रचनात्मकता से मतलब कई तरह के आटे से बनने वाले भोजन से है। ऐसी घरेलु चक्की से आप कम मात्रा में भी कई अनाज पीस सकते है। कई मोटे अनाज व दालों को पीस कर भोजन संबंधी कई प्रयोग किये जा सकते है। व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर खुद लेखक सामक (सावां ) की इडली बना कर कई बार खाया है जो स्वास्थ्य के साथ साथ स्वादिष्ट भी होती है। आज तक किसी को भी सांवा की इडली के बारे में बात करते नहीं देखा गया है। घर में चक्की थी तो एक प्रयोग करके देखा गया।
आमतौर पर मोटे अनाज का आटा रेडीमेड ही मिलता है। जो प्राय ताजा नहीं होता और स्वाद में भी थोड़ा कड़वाहट आ जाती है। घरेलु आटा चक्की से ये समस्या समाप्त हो जाती है।
घरेलू आटा चक्की कई तरह की तकनिकी खूबी के साथ उपलब्ध है। बाजार में 10 हजार से लेकर 20 हजार तक घरेलु आटा चक्की आ जाती है।
फ़ूडमेन किसी भी आटा चक्की के ब्रांड या मशीन की कोई मार्केटिंग नहीं करता है। तथा अपने पाठको के अच्छे स्वास्थ्य व जीवनशैली के लिए अपनी सलाह जरूर देता है। बाजार के रेडीमेड आटे से बेहतर है। की घर में अपने लिए आटा पीसा जाये। इसमें थोड़ा समय जरूर लगता है। लेकिन यह आपके स्वास्थ्य के लिए खाद्य निवेश जैसा ही है। जो भविष्य में जीवनशैली और खानपान से होने वाली बीमारियों से बचा जा सकता है
ब्लॉग
सब्जी ,फल, फूल व जड़ीबूटी के बीज लगाओ। भुखमरी प्रदूषण व सभी रोग भगाओ।
करनाल के स्वास्थ्य क्रांतिकारी -श्री अजित सिंह
टेरेस,किचन गार्डनिंग वालो के लिए जड़ीबूटी के निशुल्क बीज वितरण।
“सब्जी ,फल, फूल व जड़ीबूटी के बीज लगाओ।
भुखमरी प्रदूषण व सभी रोग भगाओ “यह नारा है। करनाल के श्री अजीत सिंह का।
अजीत सिंह पिछले 10 सालो से जड़ीबूटी व सब्जी की खेती कर रहे है साथ ही किचन गार्डनिंग़ व टेरेस गार्डनिंग के लिए निशुल्क मूल बीज भी उपलब्ध करवा रहे है।
करनाल के स्वास्थ्य के क्रांतिवीर अजित सिंह से फ़ूडमेन ने बात चित की –
अजित सिंह बताते है। आज ऐसी कई जड़ीबूटियां और सब्जियां है जो अब विलुप्त होने के कगार पर है। जिसका मुख्य कारण उन जड़ीबूटियों के प्रति जनमानस का कम होता रुझान है। लोग जानते ही नहीं की इन जड़ीबूटियों का क्या उपयोग है। और न ही किसी भी मीडिया माध्यमों पर इसकी चर्चा तक नहीं होती है। वही कई सब्जियां भी है जो जंगलो में पाई जाती थी लेकिन अब जंगलो के साथ साथ यह जंगली सब्जियां भी विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुकी है।
अजित सिंह इन्ही जड़ीबूटियों और सब्जियों के बीज को संग्रहित करते है। व इच्छुक व्यक्ति को निशुल्क रूप से कुछ बीज उपलब्ध करवाते है।
अजित सिंह अपने फेसबुक पेज अचूक जड़ी बूटी पर प्राकृतिक जड़ीबूटी और जड़ीबूटियों से इलाज के बारे में बताते है। तथा पेड़ पौधो के रस से कई छोटी बड़ी बीमारियों के इलाज के बारे में बताते है। अजित सिंह अपने वीडियो में अपनी हरयाणवी भाषा में हिंदी में देशी इलाज व जड़ीबूटियों की जानकारी देते है। तथा मूल बीजो को निशुल्क उपलब्ध करवाते है। अजित सिंह से निशुल्क बीज प्राप्त करने के लिए इन मोबाइल नंबर पर 7082969921 संपर्क किया जा सकता है।
मूल बीज का मतलब वो बीज जिनको किसी भी तरह से हाइब्रिड नहीं किया हो। बिना किसी छेड़छाड़ के प्राकृतिक बीजो को ही मूल बीज कहा जाता है। तथा इनसे तैयार फल व सब्जियों में अधिक गुण व प्राकृतिक स्वाद होता है। जो आजकल की सब्जी मंडियों से कोसो दूर है।
आज हमारा खान पान ही हमारी बीमारियों की मूल वजह है। ऐसे में ऐसे किसान जो जैविक व पारम्परिक खेती करते है। उनको प्रोत्साहित करना व उनके प्रयासो को दुनिया के सामने लाना ही फ़ूडमेन की प्राथमिकताओं में से एक है। अगर आप भी सचेत है। और टेरेस गार्डनिंग या किचन गार्डनिंग करना चाहते है। तो कई तरह के मूल बीज आप अजित सिंह से संपर्क करके प्राप्त कर सकते है।
फ़ूडमेन अपने अभियान के एक चरण स्वास्थ्य क्रांतिकारी के तहत ऐसे और किसानो की जानकारी सार्वजानिक करता रहेगा।
ब्लॉग
महुआ -भारतीय खाद्य विरासत का सुपरफूड
भारत में ही भुला बिसरा होता – महुआ
निशा निरंजन (मध्यप्रदेश ) ग्वालियर
महुआ भारतीय संस्कृति से जुड़ा एक सुपर फ़ूड है। जिसकी जड़ से लेकर छाल फल फूल पत्ते सभी खाद्य या औषधि के रूप में खाया जा सकता है। प्राचीन भारत में इसको सूखा काल (अकाल ) का भोजन तक कहा गया है। कई आदिवासी परम्पराओं में अपने अलग अलग नामो से प्रचलित महुआ को इतना पवित्र माना गया है की इसकी पूजा या इसके अलग अलग अंगों को पूजा में शामिल किया जाता है।
आप किसी भी बीमारी में महुआ के विभिन्न हिस्सों को मुख्य या वैकल्पिक इलाज के लिए काम में ले सकते है। इसके लिए विशेषज्ञों की सलाह जरुरी है।
महुआ का पेड़ उष्णकटिबंध इलाको में आसानी से पाए जाते है।पुरे विश्व महुआ उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है।इसका वनस्पति विज्ञान में (Madhuca Longifolia ) इंग्लिश में हनी ट्री व बटर ट्री कहा जाता है।
महुआ के फूलो का उपयोग शराब बनाने में किया जाता है। कुछ इलाकों में शुद्ध रूप से महुआ के फूलों की शराब बना कर उसका सेवन स्वास्थ्य लाभ के लिए भी किया जाता है।
महुवा भारतीय नागरिकों के लिए बहुत ही उपयोगी है। अब कुछ आयुर्वेदिक निर्माताओं ने महुआ से बने कई औषधियाँ बना कर मुख्यधारा में स्थान बनाने की कोशिश में लगे हुये है। महुआ का खाद्य तेल व मक्खन आदि से साबुन व कॉस्मेटिक उत्पादों भी बनाये जाते है।
महुवा के फूलों से कई तरह के खाद्य प्रदार्थ अलग अलग स्थानों पर अलग अलग तरह से बनाये जाते है। महुआ के फूलों में लौह तत्व (IRON ) भरपूर मात्रा में होता है। जो महिलाओ के लिए बहुत ही जरूर तत्वों में से है।
महुवा भारतीय प्राचीन खाद्य विरासत में किसी सुपरफूड से कम नहीं है।
लेकिन आदिवासी और जनजातियों से जुड़े होने के कारण महुआ को वो स्थान भारत में प्राप्त नहीं जो ओलिव को दिया जाता है। आज भी मुख्यधारा बाजारों में महुआ से सम्बंधित उत्पाद आप लोगो को देखने में नहीं मिलेंगे। कुछ भारतीय निर्माताओं ने महुआ के उत्पादों को बनाना और उसे मुख्यधारा में लाने का प्रयास कर रहे है। तो एक बार महुआ से बने उत्पादों को भी आजमा कर देखने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए।
महुवा सिर्फ पारम्परिक खाद्य न हो कर भारतीय पाक कला और पाक कला विज्ञान का एक अद्भुत उदाहरण है। जब पश्चिम की सभ्यता और लोग सिर्फ कुछ ही खाद्यों की जानकारी रखते थे। उस समय भी भारतीय पाक कला इतनी उन्नत थी। की वो हर प्रकार से खाद्य पदार्थों और अवयवों का उपयोग करना जानती थी ,न सिर्फ खाद्य तत्वों का बल्कि औषधि गुणों की भी खोज भारतीय सभ्यता ने कर ली थी।
इस देश का एक गौरव ये भी है की भारतीय सभ्यता में खाद्य तत्वों और अवयवों व औषधीय गुणों की पहचान करके उनके आधार पर आयुर्वेद व कई चिकित्सीय ग्रंथो का निर्माण किया है। भारतीय की आधुनिक सभ्यता भले ही पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित हो। लेकिन आखिर में एक भारतीय को भारतीय अध्यात्म और खाद्य व औषधि की तरफ आते देखा जा सकता है। ऐसे में समझदारी यही है की समय बीत जाने से पहले ही अपने पारम्परिक परिवेश में लौट आये।
महुवा आज भारत में ही अपनी पहचान खोज रहा है। जैसा की बताया गया है की कुछ लोग कोशिश कर रहे है की महुवा से बने उत्पाद विशेषकर औषधीय गुणों के उत्पाद बना कर बेचने की कोशिश कर रहे है। ऐसे में अपनी विरासत और परम्पराओं पर भरोसा करना चाहिए।
पहले से ही हम अपनी परम्परागत खान पान से दूर हो कर जीवन व्यापी बीमारियों से पीड़ित हो चुके है। अब तो हमें हमारे बच्चो के लिए सोचना ही होगा की आधुनिकता और पश्चिम की चकाचौंध और बीमारिया और दवाओं से भरपूर जीवन जीये या पुनः अपनी परम्परागत बीमारियों से मुक्त जीवन जीये ?
ब्लॉग
मुझे कैंसर क्यों हुवा ?
हमारे आसपास के वातावरण में कैंसर कारक तत्वों भरे पड़े है।
कैंसर के कई कारण आज हमारी रसोई में ही है।
मुझे कैंसर क्यों हुवा ?हर कैंसर रोगी का और उसके परिवार वालो का एक ऐसा सवाल होता है जिसका जवाब बहुत कम लोगो को ही पता होता है। नशा करने वाले कैंसर रोगियों को तो पता होता है की कारण क्या हो सकते है। लेकिन जिस इंसान ने कभी कोई नशा नहीं किया बाहर का भोजन फ़ास्ट ,जंक फ़ूड नहीं खाया। कैंसरकारक माहौल में नहीं रहा जैसे खान मजदुर या केमिकल फैक्टरी आदि को कैंसर हो जाता है।
उसे कैंसर कैसे हो सकता है।
कैंसर किसी जाती धर्म या आर्थिक स्थिति देख कर नहीं होता है। आज कैंसर से पीड़ित कई करोडो कमाने वाले लोग है। जिनके पास किसी भी चीज की कमी नहीं उनमे भी बहुतायत कैंसर हो रहा है। इसके कई कारण तो कुछ आज भी हमारी रसोई में है।
प्रोसेस और फैक्ट्री मेड फ़ूड जैसे मसाले आटा अल्ट्रा प्रोसेस चीनी व शुगर फ्री मिठास आदि में फैक्टरी प्रोसेस में डाले जाने वाले फ़ूड एडिटिव ,और प्रोसेस में ही कई तरह के कैंसर कारक तत्व बन जाते है। न्यूयॉर्क टाइम्स में हालही में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार रसोई गैस के जलाने से निकली गैस से भी कैंसर हो सकता है।
जैसे तेल में मक्खन और फ़्राईड चिप्स स्नेक्स बिस्किट में एक्रीलामिड़ (Acrylamide ) बन जाते है। जो कैंसर का कारण हो सकते है। रेडीमेड पीसे पिसाये आटे में ब्लीच(benzoyl peroxide ,calcium peroxide ,chlorine) और सफ़ेद रंग पोटैशियम ब्रोमेट ( potassium bromate ) मिलाया जाता है।
जो फ़िलहाल आधिकारिक रूप से प्रतिबंधित है। लेकिन छोटे उत्पादक आज भी इसे काम में लेते है। वही आपके बाथरूम में काम आने वाले साबुन और डिटर्जेंट में भी कैंसर कारक तत्व उपस्थित होते है।
आपके फ्लोर क्लीनर ,मच्छर भगाने या मारने वाले उत्पादों में वही कीटनाशक होते है जिससे खेतों में काम करने वाले किसानों को कैंसर होता है। कई लोग अपने बाथरूम और बेडरूम और कार में खुशबू के लिए परफ्यूम काम में लेते है ,जिनमे कैंसरकारक एरोसोल और कई तरह के रसायन पाये जाते है।
वही कुछ निरंतर ली जाने वाली दवाइया जैसे डायबिटीज और बीपी ,एलर्जी व गैस की दवाओं में भी कैंसर कारक तत्व छुपे होते है ।एक रिसर्च रिपोर्ट में बताया गया है की पीपीआई (PPI ) यानी शरीर में बन रही गैस को कम किये जाने वाली दवा से चार तरह के कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है।
अत्यधिक मल्टीविटामिन व पोषक तत्वों वाली दवाओं से कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। गठिया और कैंसर के इलाज में एंटी विटामिन का उपयोग होता है।
ये वो कैंसर कारक है जिस पर मीडिया या जानकर लोग कभी बात ही नहीं करते है।लेकिन इंटरनेट पर गहन पड़ताल करेंगे तो सच्चाई ढूढ़ना मुश्किल नहीं।
अब जब आपके मन में ये सवाल आता है की करे क्या ,तो ऐसा नहीं है की बाजार में विकल्प उपलब्ध नहीं सभी के विकल्प बाजार में उपलब्ध है। जो आपको बिना किसी हानिकारक केमिकल के आपके उपभोग के लिए उपयुक्त है। ऐसे उत्पादों विडंबना यही है की इस गला काट मार्केटिंग में ये लोग उतना नहीं कर पाते जितना बड़ी बड़ी कम्पनीज कर लेती है।
हर मिनट आपको इनके उत्पाद नाच गा कर टीवी और मोबाइल स्क्रीन पर बार बार दिखाये ही इसीलिए जाते ताकि आपका ध्यान बिलकुल भी वैकल्पिक उत्पादों पर न जाये।ऐसे में कैंसर हर किसी का भविष्य हो सकता है। हथेली पर जान रख कर चलने वाले भी कैंसर से डरते है।
कैंसर की भयानक और तड़पती मौत और उस मौत को देखता परिवार आत्मा काँप जाती है सोचते हुवे भी ? ऐसे में खाने पीने में विशेष ध्यान देने की जरूरत आज से ही कर लेनी चाहिए। जितना हो सके जैविक उत्पादों का इस्तमाल करे। महक के लिए प्राकृतिक तत्व चुने।ध्यान रहे कैंसर होने के बाद आपका पैसा कोई मायने नहीं रखता है।
Pingback: विटामिन ई -के केप्सूल लगाने के फायदे व नुकसान - Foodman
Pingback: विटामिन ई -के केप्सूल लगाने के फायदे व नुकसान - Foodman