स्वास्थ्य और जीवनशैली
विटामिन का मायाजाल भाग -4
जैसा की पहले के लेखो में बताया जा चूका है की विटामिन को लेकर हमारे मन में और हमारी शिक्षा प्रणाली में सब कुछ पोषण और सिर्फ पोषण के बारे में ही बताया गया है। जिसका फायदा बड़े औद्योगिक घराने पिछले 70 सालो से उठाते आ रहे है। जो की चिकित्सीय प्रणाली और विज्ञापन के माध्यम से हमारे मन मस्तिष्क में जड़वत बिठा दी गई है। जैसा की विटामिन से होते खतरों के बारे में भी हमने पिछले लेखो में संछिप्त व सार पूर्ण बताया है। आज बात करेंगे सुडोविटमिन की।
सुडोविटामिन(Pseudo-vitamin)
सुडो-विटामिन उन तत्वों को कहते है। जिनकी संरचना बिलकुल विटामिन जैसी होती है। लेकिन मानव शरीर के लिए इनका कोई उपयोग नहीं होता है। और अगर बहुत असर भी होता है तो इनका असर व्यक्ति विशेष पर या तो होता ही नहीं है और होता है तो भी कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता है। विटामिन्स को क्रमशः करके देखेगे तो आपको कई क्रमांक व अक्षर नजर नहीं आएंगे। जैसे अक्षर – विटामिन जी ,विटामिन ऐल तथा क्रमांक विटामिन बी 4 विटामिन बी 10 ,आदि।
ऐसा नहीं है की ये होते नहीं है। होते है लेकिन कोई विशेष काम के नहीं होते है। शुरुवात में चिकित्सीय विज्ञानं ने इनको अपनी लीस्ट में रखा लेकिन जैसे जैसे इनके असर पर अनुसंधान हुवे वैसे वैसे इनको हटा दिया गया। इन हटाए गए विटामिन को ही चिकित्सीय भाषा में सुडो-विटामिन कहा गया है।
वही कुछ खाद्य विशेषज्ञ आज के चिकित्सा क्षेत्र और प्रोसेस फ़ूड में उपयोग में होने वाले विटामिन को भी सुडो-विटामिन ही मानते है। क्योकि फैक्ट्री में निर्मित विटामिन का स्रोत क्या होता है। यह सार्वजनिक रूप से जनता के सामने नहीं है। विटामिन सी या डी या ई प्राकृतिक रूप से खाद्य वनस्पतियों में पाए जाते है जिनको पचने के लिए मानव शरीर अनुकूल है। लेकिन सिंथेटिक रूप से बनाये विटामिन कई रासायनिक प्रक्रिया और कई रसायनो का मेल होता है। जिनमे से कुछ प्रदार्थ या प्रतिशत ही मानव शरीर को स्वीकार होते है। जिससे या तो ऐसे विटामिन को शरीर द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है। लेकिन कई बार इनके दुष्प्रभाव भी देखने को मिलते है। विशेष कर इन सिंथेटिक विटामिन में प्रयुक्त रसायनो से शरीर को एलर्जी हो जाती है। जिसके चलते और भी कई तरह की एलर्जी शुरू हो जाती है।
प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले विटामिन ज्यादा स्थिर नहीं रहते तथा अपने से ही कम या खत्म हो जाते है। इसी लिए चिकित्सा क्षेत्र में सिंथेटिक विटामिन्स का उपयोग होता है। जो की खाद्य पूरक के रूप में दर्शा कर बेचे जाते है। ऐसे किसी भी विटामिन या खाद्य पूरक दवा की गोली या टेबलेट के पीछे आप हमेशा लिखा पाएंगे की यह दवा के रूप में उपयोग में नहीं लाया जा सकता है ( Not for medicinal use )
ये एक विडंबना ही है की भारत जैसे गरीब देश में गरीबो को विटामिन फ़ूड सप्लीमेंट दवा की पर्ची में दवा के रूप में लिखा जाता है लेकिन बेचने में इसे साफ साफ शब्दों में दवा के रूप में उपयोग नहीं लेने का लिखा जाता है। ऐसे में पढ़े लिखे समुदाय में भी विटामिन व विटामिन सप्लीमेंट को लेकर एक आकर्षण देखने को मिलता है।जिनका मूल्य मनमानी तरह से लिया जाता है। विटामिन को लेकर एक ऐसा मायाजाल आप अपने चारो और पाएंगे जिसका कोई फर्क आपके जीवन या शरीर पर पड़े न पड़े लेकिन आपकी जेब पर जरूर पड़ता है। कभी एक संतरे को या किसी भी फल के विटामिन को एक टेबलेट के विटामिन से तुलनात्मक रूप में दिखाया जाता है।
फ़ूडमेन विटामिन के सिंथेटिक रूप को लेकर अब तक के हुवे दुनिया भर के अनुसंधानों और रिसर्च रिपोर्ट के हवाले से ये लेख आप तक लेकर आया है। हालाँकि ये लेख इंटरनेट पर मुक्त रूप से विद्यमान है। लेकिन विटामिन को लेकर इतनी सकारात्मकता फैलाई गई है की कोई विटामिन व सिंथेटिक विटामिन के बारे में नकारात्मक सोच ही नहीं सकता। फ़ूडमेन की यही कोशिश है की खाद्य के वो अनछुवे तथ्य आपके सामने लाये जिनसे बच कर आप अपना जीवन स्वस्थ और आसानी से जी सके। क्रमशः जारी
Pingback: विटामिन ई -के केप्सूल लगाने के फायदे व नुकसान - Foodman
Pingback: विटामिन ई -के केप्सूल लगाने के फायदे व नुकसान - Foodman