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Consumer authority issues notice on sale of fake offerings on Amazon.


The inauguration program of Shri Ram Temple as on 22nd January and fake Prasad was being sold on Amazon, shouldn’t be surprising.
On January 22, the Central Government officials, who were busy in the inauguration of Shri Ram Temple, were surprised when they were found selling fake ‘Prasad’for the consecration of Shri Ram Temple on Amazon, the largest online selling company.
There are some such anti-social elements among the businessmen of our country. Whose only motive is to earn profit, they are ready to tell even the biggest lies. In such a situation, big online platforms like Amazon give them opportunities from local to global.
Taking cognizance of this shocking news, the Central Consumer Protection Authority (CCPA) has issued a notice to Amazon for selling sweets by making misleading advertisements in the name of selling fake Prasad on Amazon.
This action was taken by the Confederation of All India Traders (CAIT). This has been done on the basis of a complaint by the regulatory authority under the Central Government, alleging that Amazon is selling fake Prasad sweets in the name of Ram Mandir Prasad.
Looting and fraud are already going on in this country in the name of faith. In reality, online markets like Amazon merely act as a link between the customer and the shopkeeper.
Amazon allows sellers to use its online platform as per its policies and responsibility. Even before this, Amazon buyers have been charged with selling soap bars, stones, or empty boxes etc. and fake goods in the name of mobile.
This is the first time that in the name of Central Government programs and faith, customers are being cheated with the help of Amazon. According to sources, the consumer authority has sought a response within seven days on the sale of fake Prasad on Amazon. They warned that if it fails to respond, action will be taken against the company under the provisions of the Consumer Protection Act, 2019.
Fake Prasad for sale on Amazon Limited products with ‘Shri Ram Mandir Ayodhya Prasad – Raghupati Ghee Laddu’, ‘Ayodhya Ram Mandir Ayodhya Prasad – Khoya Khobi Laddu’, ‘Ram Mandir Ayodhya Prasad – Desi Cow Milk Peda’ written on them.
The Consumer Protection Act prohibits ‘misleading advertising’ which gives false information about a product or service. On the other hand, Amazon said in a statement that the company is taking appropriate action as per its policies. An Amazon spokesperson said that we have been asked by the Central Consumer Protection Authority (CCPA) regarding the investigation of misleading product claims and violations by some sellers.
The central authority said that such misleading information and information affects the customers. It is noteworthy that under Rule 4(3) of the Consumer Protection (E-Commerce) Rules, 2020, no e-commerce entity can indulge in unfair trade practices.
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“चमत्कार” इंडिया गेट बासमती चावल रिकॉल !

सवाल -इंडिया गेट बासमती चावल स्वतः रिकॉल किया गया या करवाया गया ?
चमत्कार।जी हाँ चमत्कार हो गया। इंडिया गेट बासमती चावल रिकॉल किया गया !वो भी कम्पनी द्वारा !भारत जैसे देश में किसी फ़ूड कम्पनी द्वारा उत्पाद रिकॉल किया गया हो। अब तक के इतिहास में ना हमने सुना ना देखा !
खैर ख़ुशी राम बिहारी लाल लिमिटेड (K.R.B.L.)ने अपने उत्पाद इंडिया गेट बासमती चावल राइस फीस्ट (दावत ) रोजाना सुपर वैल्यू पैक (10%एक्स्ट्रा ) के 1.1 किलो कीटनाशकों की अधिकता के चलते बाजार से रिकॉल कर लिए है। इंडिया गेट बासमती चावल में थियामेथोक्सम और आइसोप्रोथिओलेन आदि कीटनाशक मानक मात्रा से अधिक पाए गए है,जिसे अब बाजार से रिकॉल किया गया है। कंपनी ने आधिकारिक रूप से जानकारी देते हुए उपभोक्ताओं को अपने उत्पाद
इंडिया गेट बासमती चावल दावत रोजाना सुपर वैल्यू पैक
वजन -1.1किलो
बेच संख्या B-2693 (CD-AB(DC-SJ) (BL 6)
पैकिंग डेट -जनवरी 2024
बेस्ट बिफोर डेट -दिसंबर 2025
को बाजार से वापस ले लिया है।
फ़ूडमेन सवाल
K.R.B.L. ने खुद से रिकॉल किया या किसी जांच एजेंसी के दबाव में रिकॉल किया ?
K.R.B.L. की खुद की लैब में चावलों का परीक्षण क्यों नहीं किया ?और अगर किया तो फिर बाजार में अपना उत्पाद क्यों उतारा ?
चावल कहाँ से लिए गए थे ?
FSSAI ने अब तक क्या कार्यवाही की है या भविष्य में क्या कार्यवाही करेगी ?
रिकॉल चावलों का क्या किया जायेगा ?
रिकॉल चावलों का क्या किया जायेगा ?ये एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। क्यों की किसी भी जांच एजेंसी ने चावलों को जब्त नहीं किया है।ये रिकॉल का चावल पुनः कम्पनी के पास ही है।क्या कम्पनी चावल नष्ट करेगी या पुनः किसी और माध्यम से बाजार में ही बेच देगी। थियामेथोक्सम ऐसा कीटनाशक है जो पौधो की जड़ो से पराग तक में फैला होता है। इसे धोकर निकलना असंभव है। ये भी महत्वपूर्ण प्रश्न है की K.R.B.L. कम्पनी कोई मामूली चावल छिलने की मिल या फैक्टरी नहीं अपितु एक बड़ी कॉर्पोरेट कम्पनी है। तथा एक्सपोर्टर भी है। कंपनी के पास हाईटेक लैब है। तो कम्पनी को चावलों में मानक से ज्यादा कीटनाशक होने का पहले पता क्यों नहीं चल पाया या जानबूझकर लापरवाही की गई ?
हमारे देश में खाने पीने की चीजों को लेकर कोई खास जागरूकता नहीं है। ऐसे में कीटनाशकों की अधिकता लिए ये चावल किसी भी अन्य शहर गांव में बिकने को भेजे जा सकते है। साथ ही कम्पनी ने यह भी नहीं बताया की ये चावल कहाँ से आये है। ताकि ऐसे चावलों की खेप को बाजार में जाने से रोका जाये। वैसे ये हमारे देश में संभव भी नहीं है। हर रोज ऐसे ही खाद्य पदार्थ हमारे बाजारों में भरे रहते है। जो जनता को बीमार से गंभीर बीमार किये जा रहे है। FSSAI जिसके जिम्मे हमारे खाद्य पदार्थों की सुरक्षा का जिम्मा है। वो FSSAI कॉरपोरेट की कठपुतली बन कर बहुत ही बेशर्मी से इवेंट इवेंट का खेल खेल रही है।बस !
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FSSAI और कॉरपोरेट फ़ूड कम्पनियो का दोगलापन।

कॉरपोरेट फ़ूड कम्पनियो का भारत में इस्तेमाल उत्पाद और एक्सपोर्ट उत्पाद की क्वालिटी में फर्क।
पिछले कई सालों से कई व्हिसलब्लोअर, खोजी पत्रकार और खाद्य पत्रकार देश में हो रही खाद्य मिलावटों और प्रोसेस्ड फूड की खामियों को उजागर करने का प्रयास कर रहे हैं।कुछ पत्रकार यूट्यूब आदि प्लेटफार्म पर खाद्य सुरक्षा जागृति का प्रयास कर रहे है। वही मुख्यधारा मिडिया कॉरपोरेट फ़ूड कम्पनियो के विज्ञापन में ही व्यस्त है। भारतीय और अंतरराष्ट्रीय प्रोसेस्ड फूड, कॉरपोरेट फ़ूड कम्पनियो द्वारा भारतीय जनता के साथ दोगला व्यवहार किया जा रहा है।
हाल ही में एवरेस्ट और एमडीएच जैसी बड़ी मसाला कंपनियों के मसालों में कीटनाशकों को लेकर हांगकांग में उठे सवाल ने देश में FSSAI और खाद्य निर्यात करने वाली संस्था APEDA को कठघरे में ला खड़ा किया है। इसके चलते देश भर में कई ब्रांड के मसालों की जांच की गई और हांगकांग की खाद्य सुरक्षा एजेंसी की बात सच साबित हुई।यही नहीं नौनिहालों और बच्चो के खाने पीने के उत्पादों में कॉरपोरेट फ़ूड कम्पनियो का दोगलापन साफ साफ झलकता है। विदेशो में बिकने वाले हेल्थ ड्रिंक और भारत में बिकने वाले हेल्थ ड्रिंक,चॉकलेट ,और बेबी फ़ूड में चीनी की मात्रा में बहुत ज्यादा फर्क देखने को मिलता है।
सिर्फ प्रोसेस फ़ूड में ही नहीं बल्कि हमारे देश की फसले भी कितनी खाने लायक है। यह सवाल भी पूछना चाहिए। 2022 में मिस्र और ईरान द्वारा भारत से निर्यातित गेहूं को वापस भेजने का मामला सामने आया था, तो FSSAI और तत्कालीन भाजपा सरकार ने इसे मुस्लिम विवादों से जोड़कर पेश किया, जबकि इस सच्चाई पर मुख्यधारा मीडिया या यूट्यूबर पत्रकारों ने कोई खास रिपोर्टिंग नहीं की। पिछले साल एक NGO, ACP द्वारा देश में बिक रहे सभी ब्रांडेड शहद की भारतीय गुणवत्ता और एक्सपोर्ट गुणवत्ता को लेकर सवाल उठाए गए, लेकिन किसी ने भी इस कदम पर कोई रिपोर्टिंग नहीं की।
फ़ूडमेन का कहना यह है कि भारतीय उपभोक्ताओं को उत्पाद का उचित मूल्य चुकाने के बाद भी वह गुणवत्ता नहीं मिल रही है। वहीं उसी उत्पाद की गुणवत्ता निर्यात में अंतरराष्ट्रीय स्तर की हो जाती है।ये दोगलापन FSSAI बड़ी ही बेशर्मी के साथ देख भी रही है और उदासीन बनी हुई है।
कॉरपोरेट फ़ूड कम्पनियो का भारत में इस्तेमाल उत्पाद और एक्सपोर्ट उत्पाद की क्वालिटी में फर्क क्यों है।
भारत में FSSAI यानी खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण का काम खानपान में सुरक्षा और प्रोसेस्ड फूड में मानक स्थापित करना है। लेकिन जैसा कि हम अपने पिछले लेखों में बता चुके हैं कि FSSAI को किस तरह बड़े उद्योग घराने अपने फायदे के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दखलअंदाजी कर नियमों और कानूनों से छेड़छाड़ करते हैं, और भारतीय खाद्य सुरक्षा नाम मात्र ही रह गई है। ऐसे में दूसरे देशों को देखा जाए, विशेषकर पश्चिमी और यूरोपीय देशों में, खाद्य सुरक्षा को लेकर सरकारें और एजेंसियां बहुत सक्रिय रहती हैं। यही कारण है कि हमारे खाद्य पदार्थों में कैसी-कैसी मिलावटें हैं, हमें विदेशी जमीन पर वहां की खाद्य सुरक्षा एजेंसियां बताती हैं।

FSSAI एक कॉर्पोरेट संचालित संस्था की तरह काम करती है, और इसके CEO जो कि निविदा पर नियुक्त हैं। यह उद्योग और स्वास्थ्य मंत्रालय की व्यवस्था है कि सरकारी व्यवस्था में सचिव स्तर का कोई अधिकारी भारत में खानपान की निम्न स्तरीय गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार नहीं होता। जिस तरह से FSSAI नागरिकों के टैक्स से भारी बोझ साबित हो रही है, उनके अधिकारी सभी शिकायतों पर खानापूर्ति करते हैं और सैकड़ों-हजारों शिकायतों की अनदेखी की जा रही है।
ये बहुत ही मज्जेदार बात है की इस विषय पर वर्तमान विपक्ष भी खामोश ही रहता है। सदन में खाद्य सुरक्षा के मानकों और अनियमितताओं को लेकर सदन में कोई भी प्रश्न नहीं उठाया जाता है। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट के बाद सेबी अध्यक्ष माधवी बुच पर रोज खुलासे विपक्ष द्वारा किये जा रहे है। लेकिन स्वास्थ्य और भोजन से जुडी कॉरपोरेट फ़ूड कम्पनियो को लेकर विपक्ष भी शांत है।
FSSAI के कार्यप्रणाली की गंभीरता को समझना बेहद ज़रूरी है क्योंकि यह संस्था देश के खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता की देखभाल के लिए बनाई गई है। लेकिन, जैसे-जैसे समय बीता है, यह साफ़ हो गया है कि इस संस्था के अंदर भारी अनियमितताएँ हैं और यह बड़े उद्योगपतियों के दबाव में आकर अपने असली उद्देश्य से भटक गई है। आज स्थिति यह है कि भारतीय उपभोक्ताओं को खराब गुणवत्ता वाले उत्पाद मिलते हैं, जबकि वही कंपनियां अपने उत्पादों के निर्यात में अंतरराष्ट्रीय स्तर की गुणवत्ता सुनिश्चित करती हैं।
जब देश के भीतर खाने-पीने के सामान की गुणवत्ता की बात आती है, तो FSSAI की सख्ती की कमी के कारण कंपनियां मिलावट और घटिया क्वालिटी के उत्पाद बेचने से पीछे नहीं हटतीं। इसके विपरीत, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निर्यात के समय ये कंपनियां सभी मानकों का पालन करती हैं, क्योंकि वहाँ की सरकारें और एजेंसियां खाद्य सुरक्षा के मामले में कोई समझौता नहीं करतीं।
भारतीय खाद्य सुरक्षा के लिए सुधार की आवश्यकता
हमारे देश में खाद्य सुरक्षा और मानकों को लेकर जो ढीला-ढाला रवैया अपनाया जा रहा है, उसे बदलने की सख्त जरूरत है। इसके लिए सबसे पहले FSSAI की जवाबदेही तय करनी होगी। FSSAI को एक स्वतंत्र और पारदर्शी संस्था के रूप में कार्य करना चाहिए, न कि उद्योगपतियों के प्रभाव में आकर। इसके लिए ज़रूरी है कि इसकी संचालन व्यवस्था में सुधार हो और किसी भी प्रकार की धांधली या पक्षपात के मामलों की सख्ती से जाँच की जाए।
इसके अलावा, केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि खाद्य सुरक्षा के सभी मानकों का पालन हर स्तर पर हो, चाहे वह घरेलू बाजार हो या अंतरराष्ट्रीय निर्यात। इसके लिए स्थानीय स्तर पर निरीक्षण और निगरानी को और अधिक प्रभावी बनाने की आवश्यकता है। जो भी कंपनियां इन नियमों का उल्लंघन करती हैं, उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए, ताकि उन्हें यह समझ आ सके कि वे उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकते।
आज भारत में खाद्य सुरक्षा और मानकों की स्थिति बेहद चिंताजनक है। FSSAI जैसी संस्थाओं को सशक्त और जवाबदेह बनाकर, और खाद्य सुरक्षा कानूनों का सख्ती से पालन करवाकर ही इस स्थिति में सुधार लाया जा सकता है। इसके लिए सरकार, मीडिया, और जनता को मिलकर काम करना होगा, ताकि हर नागरिक को सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण भोजन मिल सके। जब तक हम सभी इस दिशा में एकजुट होकर कदम नहीं उठाएंगे, तब तक हमारे खाद्य उत्पादों में मिलावट और गुणवत्ता की कमी का सिलसिला चलता रहेगा। मोदी जी को इस ओर तत्काल ध्यान देकर आवश्यक कदम उठाने चाहिए, ताकि देश की खाद्य सुरक्षा को और अधिक मज़बूत बनाया जा सके।
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क्या FSSAI की चाबी उद्योगपतियों के हाथ में ? A1-A2 मिल्क लेबलिंग में दर्शाने पर प्रतिबन्ध लगाया था।

किस दबाव में FSSAI मिल्क लेबलिंग पर A1-A2 मिल्क लिखने का आदेश वापस लिया।
FSSAI या खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण अपनी शुरुवात से ही बड़े उधोगपतियो के हित में नीतिया बनाने को लेकर आलोचनाओं के घेरे में रहा है। हाल ही में FSSAI द्वारा दूध की बिक्री और लेबलिंग को लेकर आदेश पारित किये थे कि दूध की बिक्री में दूध की लेबलिंग पर A1-A2 मिल्क लिखना प्रतिबंधित किया जाता है। यानि की A1-A2 मिल्क को लेकर उपभोक्ता भ्रांतियों से निकल पाए इसलिए दूध बिक्री में दूध की लेबलिंग में A1-A2 मिल्क लिखना प्रतिबंधित किया था।
जो की सही भी था।फ़ूडमेन ने भी इसका समर्थन किया है।दरअसल में A2 मिल्क के नाम पर कई दूध उत्पादक उपभोक्ताओं को कोई भी दूध बेच कर बहुत ज्यादा लूट रहे है । शहरी बाजार में A2 दूध 100 रु प्रतिलीटर से 200 रु तक में बेचा जा रहा है। ऐसे में A 2 दूध के अन्य उत्पादों जैसे घी मक्खन पनीर आदि की कीमत मुंहमांगी हो जाती है। A1-A2 मिल्क में क्या फर्क होता है या कैसे पता करे की दूध A1या A2 है इसका कोई घरेलु या प्रोफेशनल टूल किट अभी बाजार में उपलब्ध नहीं है। मात्र DNA टेस्ट के जरिये ही A1-A2 मिल्क की पुष्टि हो सकती है।
ऐसे में जहां भारत में नकली दूध का बाजार इतना बड़ा है लेकिन A2 मिल्क के नाम पर उपभोक्ताओं को दूध मोटे मुनाफे में बेचा जा रहा है।ऐसे में A1-A2 मिल्क पर फैली भ्रांतियों को और बाजार में A2 मिल्क की ठगी को रोकने के लिए FSSAI यह कदम उठाया था।
यह पहली बार हुवा है कि जब FSSAI ने अपने लिए फैसलों और आदेशों को वापस लिया है। आमतौर पर FSSAI अपने ऐसे आदेशों को ठन्डे बस्ते में डाल देती है।FSSAI खाद्य उधोग में ऐसे चौकीदार का काम करता है जो रात को “जागते रहो” कहता रहता है। ताकि लोगो को लगे की कोई काम तो कर ही रहा है। FSSAI भी हर साल किसी न किसी रूप से कोई आदेश प्रेस रिलीज से जारी करती है। ताकि सरकार और जनता को लगे की काम तो हो रहा है। लेकिन FSSAI अपने ही आदेशों का कोई अनुसरण नहीं करवा पाती। और आदेश ठन्डे बास्ते में चले जाते है
इससे पूर्व भी 2023 में FSSAI पैकेज फ़ूड लेबलिंग पर हेल्थ स्टार रेटिंग (HSR )जिसमे उत्पाद का मनुष्यो की हेल्थ के प्रभावों को देखते हुवे पांच सितारा रेंज को लेकर रणनीति को सार्वजानिक किया था। जिसमे उत्पाद की स्वास्थ्य पर प्रभावों को देखते हुवे एक स्टार से 5 स्टार तक की रेंज में उत्पादों को सूचीबद्ध करना था। लेकिन इसे ठन्डे बास्ते में दाल दिया गया।
ऐसे ही पान मसाला उधोग के लिए पानमसाला पैकिंग में फ्रंट में 50 % तक की जगह में पान मसाला चबाने से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जैसी चेतावनी लिखने के आदेश दिए थे जो एक साल बाद भी पूरी तरह से लागु नहीं हुवा। और अब जब हुवा है तो FSSAI के आदेशों का गोलमोल तरीके से पालन किया गया है। कई बड़े पान मसाला उत्पादक 50% को ऐसे लिखा है जो की दिखायी भी दे और नहीं भी।
ऐसे ही Fssai द्वारा FocTac नाम से एक ट्रेनिंग स्कीम भी लागु की जिसमे छोटे बड़े खाद्य व्यापर से जुड़े लोगो को अच्छी तरह से ट्रेंड करना व खाद्य सुरक्षा को लेकर ट्रेनिंग देना था। जिसके तहत देश भर से फ़ूड टेक से जुड़े लोगो को ट्रेनर के रूप में ट्रेनिंग दी गयी ताकि वो दूसरे छोटे बड़े खाद्य उधोग से जुड़े लोगो को खाद्य सुरक्षा ट्रेनिंग दे पाए। इस ट्रेनिंग के बाद ट्रेनिंग लेने और देने वालो को यह भी बताया गया की यह ट्रेनिंग खाद्य उधोग व लाइसेंस के लिए अनिवार्य की जाएगी। लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हुवा और धांधली अभी तक चालू है।

ट्रांस फेट को कम करने के WHO के फरमान के बाद भी अभी तक FSSAI ने अभी तक कोई रणनीति नहीं बना पायी है।
पिछले साल मिठाइयों को लेकर दिशानिर्देश दिए गए थे कि मिठाई के डब्बो पर बनाने की तारीख और बेस्ट यूज़ लिखना जरुरी था। लेकिन ऐसा कुछ हुवा नहीं।
होटल्स रेस्टोरेंट में मेन्यू कार्ड पर लिखी डिसीज की मुख्य सामग्री लिखने के दिशानिर्देश भी ठन्डे बस्ते में है।
दूध में विटामिन डी का फोर्टिफिकेशन और इसी तरह खाद्य तेलों में भी फोर्टिफिकेशन के लिए दिशानिर्देश जारी किये गए थे लेकिन अब तक हुवा कुछ नहीं।
इसी साल बोर्नविटा प्रकरण में FSSAI के आदेश थे की बोर्नविटा या अन्य ऐसे उत्पादों को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से हेल्थ ड्रिंक सेगमेंट से हटाया जाये।लेकिन अभी तक ऐसा कुछ धरातल पर देखने को नहीं मिला।
डब्बा बंद फ्रूट जूस पर 100% फ्रूट जूस व दूध व ज्यूस पर फ्रेस लेकर भी दिशा निर्देश दिए गए है।
2016 से 2018 तक चीन से डेयरी उत्पाद के आयत पर प्रतिबन्ध था जो की बिना किसी सुचना के शुरू हो चूका है। एक वेबसाइट वोल्ज़ (www.volza.com)के अनुसार फरवरी 2024 तक चीन से 301 डेयरी प्रोडक्ट के शिपमेंट भारत में आयात हो चुके है।
A1-A2 मिल्क पर दिया आदेश वापस होना वैसे ही है जैसे हफ्ता लेने के लिए किसी को एक बार डरा दो और बाद में हफ्ता मिलते ही उसको आराम से धंधा करने के लिए और बंदी जारी रखने के लिए एक मोन समझौता। FSSAI पर हमेशा बड़े उधोगपतियो के लिए नीतिया बनाने के लिए मशहूर है। और छोटे व्यापारियों के लिए मुश्किलें खड़े करने के लिए बदनाम।
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फूड टेस्टिंग लैब ,एक अलग विभाग हो।

फूडमेन की परिकल्पना FSSAI से अलग हो फूड टेस्टिंग लैब विभाग।
भारत में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना FSSAI की जिम्मेदारी है। FSSAI ने देश भर में 224 खाद्य प्रयोगशालाओ को खाद्य परीक्षण के लिए अधिसूचित किया है। जिनमे प्राथमिक परीक्षण के लिए 53 राज्य सरकार की प्रयोगशालाएं 145 निजी प्रयोगशालाओं ,26 अन्य सरकारी प्रयोगशालाएं तथा रेफरल खाद्य परीक्षण के लिए 20 प्रयोगशालाएं है। गौरतलब है की FSSAI द्वारा खाद्य वस्तुओं के अलावा न्यूट्रास्यूटिकल ,शराब ,गुटखा व पान मसाला व कई तरह के आयुर्वेदिक FMCG उत्पादों का नियमन किया जाता है। जो की प्रयोगशालाओं को देखते हुए बहुत विशाल है।
त्योहारों के आसपास शहरों में नकली दूध ,पनीर मावा आदि पकडे जाने व खाद्य नमूनों को लैब भेजने के समाचार छपते ,दिखते रहते है। लेकिन कार्यवाही के समाचार नहीं आते और ना ही नमूनों के परिक्षण की सुचना आम लोगो को दी जाती है। नमूनों को परिक्षण के लिए भेजने और परिक्षण में लगने वाले समय में ही नमूने ख़राब हो जाते है। या जानबूझ कर करवा दिए जाते है।
अब तक के FSSAI के इतिहास में मैगी के अलावा कोई बड़ा रिकॉल नहीं किया गया है। ऐसे में FSSAI की कार्यशैली पर सवाल उठता है। तथा हालिया में वायरल होते खाद्य पदार्थो में लापरवाही के विडिओ भी FSSAI की कार्यशैली को और भी संदिग्ध बनाती है।
एक आम नागरिक को पता ही नहीं होता है की खाद्य परीक्षण कहाँ करवाये यहाँ तक की छोटे व्यापारी को भी पता नहीं होता की उसके दुकान से लिए नमूने कौनसी लेब में गए है। और परीक्षण रिपोर्ट कब तक आएगी।
एक खाद्य सुरक्षा अधिकारी का काम खान पान की दुकानों और प्रतिष्ठानों पर जा कर होने वाली गतिविधियों पर नजर रखना और उसके उत्पादों की जांच करने के लिए खाद्य नमूनों को जांच के लिए सरकारी प्रयोगशाला में भेजना होता है । जांच के लिए खाद्य उत्पाद के नमूने भी भेजने के लिए खाद्य सुरक्षा विभाग में ये खाद्य नमूने बिना किसी रखरखाव के कई दिनों तक पड़े रहते हैं. खाद्य व्यापारी घबराकर इस जांच को रोकने के लिए कुछ भी करने को राजी हो जाता है।

भ्रष्ट अधिकारी इसी बात का फायदा उठाकर अपने इंस्पेक्टर राज को कायम रखते हैं. खाद्य पदार्थों की सुरक्षा का जिम्मा और जांच का जिम्मा एक प्राधिकरण पर होने में घालमेल ही हो सकता है. रिपोर्ट में अधिकारी खाद्य नमूनों से छेड़छाड़ करके मिलावटी न सही लेकिन घटिया बना कर उसे दोषी साबित भी कर सकते हैं। राज्य भर से खाद्य परीक्षण के लिए आने वाले खाद्य नमूनों की अत्यधिक मात्रा में आने से और स्टाफ की कमी भी एक कारण है कि रिपोर्ट में देरी का।
अतः निरीक्षण और परीक्षण एक ही मंत्रालय की संस्था देखे ये व्यापारियों को भी उचित नहीं लगता क्योंकि बाजार की आज की स्थिति में खाद्य अधिकारियों की मनमानी से व्यापार करना मुश्किल होता जा रहा है। इसमें शुद्ध वस्तुओं के व्यापारी पिसते हैं जो कि जांच के हथकंडों में फंसकर अपने व्यापार को बंद कर लेते हैं।
जांच एवं परीक्षण को FSSAI से हटा कर ही उत्पादों पर भरोसा यदि बनाना है तो एक अलग नियामक संस्था को जिम्मेदार बनाया जाए, जैसे कि QCI है जो कि उपभोक्ता मंत्रालय की संस्था है और देश भरे में होने वाले व्यापार वस्तुओं के लिए मानक तय अपनी अधिमान्य प्रयोगशालाओं के जरिए करती है। सरकारी व्यवस्था में जब जिम्मेदारी इस प्रकार बांटी जाय कि एक हाथ को दूसरे हाथ के काम का पता न चले और गोपनीयता के तहत कार्य संपादन किया जाएगा तब जनता भी जांच पर भरोसा करेगी। इस पूरे जांच और परीक्षण के प्रोटोकॉल को भी निर्धारण करने का जिम्मा स्वतंत्र संस्था पर होना चाहिए।
फ़ूडमेन अपनी एक राय प्रस्तुत करता है। की फ़ूड टेस्टिंग लैब का विभाग FSSAI से अलग हो ,एक अलग से विभाग बनाया जाये जो खाद्य पदार्थो की जाँच करे।
जिससे खाद्य परीक्षण और अनुसंधान के क्षेत्र में विशेषज्ञता और ध्यान की आवश्यकता होती है। एक अलग विभाग इस पर अधिक ध्यान केंद्रित कर सकता है, जिससे खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता और सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। अलग विभाग होने से उत्तरदायित्व और जवाबदेही में वृद्धि होती है। यदि खाद्य सुरक्षा में कोई समस्या होती है, तो इसे विशेष विभाग द्वारा जल्दी और प्रभावी तरीके से संबोधित किया जा सकता है।
स्वतंत्र फ़ूड लैब निरंतर सुधार और अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित कर सकती है। इससे खाद्य सुरक्षा के नए तरीकों और तकनीकों का विकास हो सकेगा, जो अंततः उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य और सुरक्षा को बढ़ावा देंगे। और देश में खाद्य सुरक्षा व खाद्य पदार्थो की गुणवत्ता पर पैनी नजर रखी जा सके।
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बिसलेरी ब्लंडर ,नकली जीरा फ्लेवर

फलता फूलता नकली जीरा फ्लेवर का बाजार।
बिसलेरी इंडस्ट्री बिकने की खबर ने बाजार को गरमाये रखा .तथा बाद में कंपनी अपनों के हाथो में ही रही। अब हाल ही में बिसलेरी भी सोडा इंडस्ट्री में भी अपना पांव रखा है।बिसलेरी सोडा के कई फ्लेवर के साथ बाजार में उतरी। लेकिन बिसलेरी स्पाइसी जीरा सोडा के लेबलिंग में FSSAI के नियमो और दिशानिर्देशों की अनदेखी पायी गई है।
सबसे जबरदस्त अनदेखी यह रही की लेबल के फ्रंट में जहा बड़े बड़े अक्षरो में स्पाइसी जीरा लिखा है। और लेबलिंग के पीछे की तरफ इंग्रीडिएंट्स की सूची में जीरा है ही नहीं। जो की FSSAI के नियम के अनुसार भ्रामक है। साथ ही foodइंग्रीडिएंट्स लिस्ट में कॉमन साल्ट यानी की साधारण नमक लिखा पाया गया। जबकि साधारण नमक प्रोसेस फ़ूड में उपयोग करना तथा बेचना भारत में प्रतिबंधित है। सिर्फ आयोडाइज नमक ही बेचा या प्रोसेस फ़ूड में उपयोग लाया जा सकता है।
ऐसा नहीं है की सिर्फ बिस्लेरी स्पाइसी जीरा सोडा में ही यह भ्रामक लेबलिंग देखी गई है। लगभग सभी एक दो ब्रांड को छोड़ कर सभी जीरा सोडा में जीरा न हो कर जीरे के फ्लेवर काम में लिया गया है। तथा बेचा जीरा सोडा के नाम से ही है।
हाल ही में देश भर में खाद्य सुरक्षा एजेंसियों ने छापे मार कर नकली जीरा बरामद किया।
ये नकली जीरा भी इसी सिंथेटिक जीरा फ्लेवर से बनाया गया था जो की नकली जीरे में असली जीरे की खुशबू देता है।गौरतलब है की नकली जीरा जिस जीरा फ्लेवर से बनता है। ये फ्लेवर FSSAI द्वारा मान्यता प्राप्त है। हाल ही में कीटनाशक व नकली मसालों को लेकर देशव्यापी अभियान चलाया गया था। इसी अभियान में नकली मसालों में जो भी सिंथेटिक फ्लेवर काम में थे वो सभी फ्लेवर FSSAI द्वारा मान्यता प्राप्त है। तथा आसानी से बाजार या ऑनलाइन उपलब्ध भी है। आप भी चाहे तो ऑनलाइन किसी भी नकली फ्लेवर को आर्डर कर सकते है व नकली मसालों के बाजार में कूद सकते है।
विडम्बना ये है की फ्लेवर को किसी भी प्रकार के फ़ूड कोड या अंतरास्ट्रीय खाद्य पहचान नहीं दी गई है। फ्लेवर को लेकर सिर्फ तीन ही श्रेणी है (1 ) नेचरल फ्लेवर जो सम्बंधित फल सब्जी या फूलो से प्राप्त हो (2 ) आइडेंटिकल जो प्राकृतिक या प्राकर्तिक जैसे स्रोत से लिया गया हो ,जैसे वनीला फ्लेवर के लिए ऊदबिलाव के गुद्दा के पास की ग्रंथि के स्त्राव को आइडेंटिकल वनीला फ्लेवर कहा जाता है। (3) आर्टिफिशल फ्लेवर यानि की शुद्ध रूप से कैमिकल से तैयार फ्लेवर जैसे डाइसीटल जिसकी खुशबु घी की तरह होती है जिसके चलते बाजार में नकली घी मख्खन आदि की भरमार है। अधिकतर सड़क किनारे रेहड़ी पर और होटल्स में ऐसे ही नकली मक्खन का इस्तमाल कर ग्राहकों की सेहत के साथ खिलवाड़ किया जाता है।
नकली फ्लेवर के चलते नकली मसालों और अन्य खाद्य व पेय सामग्रियों का बाजार बहुत बड़ा है। आम उपभोक्ता मात्र FSSAI और खाद्य नियमों के चलते ही सुरक्षित है। लेकिन कितना सुरक्षित है। ये नहीं कहा जा सकता है। नकली फ्लेवर के बाजार का अंदाजा इसी बात से लगा सकते है। की आइसक्रीम इंडस्ट्री और सोडा इंडस्ट्री बिना नकली फ्लेवर के कल्पना भी नहीं की जा सकती है। नकली फ्लेवर को लेकर सरकार और FSSAI को संयुक्त रूप से कोई ठोस कानून या प्रावधान लाने के बारे में सोचना चाहिए। मात्र टैक्स कलेक्शन से जनहित की उम्मीद नहीं की जा सकती।
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चाइना गर्ल और अमेरिका का नर्क।

विश्व शक्ति अमेरिका का सच। चाइना गर्ल।
डाॅ. कौशल किशोर मिश्र
“चाइना गर्ल “शब्द से चीन की लड़कियों के लिए नहीं अपितु कुख्यात चीन में बनायीं गई नशील दवा से है। जिसे पश्चिमी नशेड़ियों की आम भाषा में “चाइना गर्ल “कहा जाता है।
एल.ए. और फ़िलाडेल्फ़िया संयुक्त राज्य अमेरिका के विख्यात महानगर हैं जो अपनी कई विशेषताओं के बाद भी अमेरिका के नर्क को अपने भीतर समेटे हुये हैं। इस नर्क का नाम है “जॉम्बी ड्रग महामारी”। इस महामारी के उत्पन्न होने में जितना योगदान वैज्ञानिकों और उच्च-शिक्षितों का है उतना ही स्थानीय शासन-प्रशासन का भी रहा है।
कुछ दशक पहले परड्यू फ़ार्मेसी के मालिक रिचर्ड सैकलर ने पीड़ा-निवारण के लिए सिंथेटिक ऑपियोइड से Oxicodone नामक एक औषधि बनायी जो बाद में OxyContin एवं Roxicodone के ब्रांड नाम से बाजार में प्रस्तुत की गयी। रिसर्च ट्रायल में 82% लोगों को इसके कई साइड-इफ़ेक्ट्स का सामना करना पड़ा जिसे फ़ार्मेसी के मालिकों और वैज्ञानिकों द्वारा छिपाया ही नहीं गया बल्कि इसकी भूरि-भूरि प्रशंसा भी की गयी।
बाजार में उतारने के लिए प्रारम्भ में 500 डॉक्टर्स के साथ फार्मेसी के लोगों द्वारा मीटिंग की गयी जिसमें से केवल 380 डॉक्टर्स ही इसे प्रिस्क्राइब करने के लिए तैयार हुए, पर शीघ्र ही इस औषधि ने बाजार में अपने पैर पसार लिए। यह बहुत ही हानिकारक पीड़ाशामक सिद्ध हुयी क्योंकि इसके सेवन से लोग इसके अभ्यस्त होने लगे थे।
आगे चलकर जब इस औषधि पर प्रतिबंध लगाया गया तो इसके अभ्यस्त हो चुके लोगों ने हेरोइन और मॉर्फ़ीन लेना प्रारम्भ कर दिया। फ़िर आयी ज़ाइलाज़िन जिसके बाद तो लॉस-एंजेल्स और फ़िलाडेल्फ़िया के लोग झुके हुये स्टेच्यू होने लगे। जॉम्बी-ड्रग-महामारी इसी ज़ाइलाज़िन का परिणाम है।
सिंथेटिक ओपियोइड बनाने में अग्रणी चीन ने चाइना गर्ल के नाम से फ़ेंटानिल का उत्पादन किया जिसे अमेरिकी लोगों ने पसंद किया। ‘चाइना गर्ल’ इस ओपियोइड का छद्म नाम है जो मॉर्फ़ीन से एक-सौ गुना और हेरोइन से पचास गुना अधिक मादक होता है। भारत में भी युवाओं को नर्क में धकेलने के लिए मारीजुआना और कोकीन का प्रचलन रहा है। उड़ता पञ्जाब अफीम और सुरा के लिये कुख्यात रहा है जबकि तेलंगाना में अल्प्राज़ोलम वहाँ के युवाओं की पसंद मानी जाती है।
तुरंत प्रभाव के लिये जिस पीड़ाशामक औषधि की खोज की गयी उसने निर्माताओं और डॉक्टर्स को मालामाल किया किंतु युवाओं को नर्क में धकेल दिया। अब तनिक बाबा रामदेव प्रकरण में अदालत के वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर भी विचार कर लिया जाय। मीलॉर्ड मानते हैं कि कई रोगों का चिकित्सा जगत में कोई उपचार नहीं है जबकि बाबा उनके उपचार का आश्वासन देते हैं, यह बाबा का भ्रामक प्रचार है जिसके लिये चार बार क्षमायाचना करने पर भी अदालत ने उन्हें क्षमा का पात्र नहीं माना।
क्या अदालत एलोपैथी और आयुर्वेद के विद्वान हैं? अदालत ने वही स्वीकार किया जो एलोपैथी वालों ने बताया है। एलोपैथी वालों ने अमेरिका को यह बता कर कि ऑक्सीकोन्टिन बहुत अच्छी और प्रभावकारी पीड़ाशामक औषधि है, युवाओं को जॉम्बी-ड्रग-महामारी में धकेल दिया।
जबकि आयुर्वेद का तो सिद्धांत ही है “प्रयोगः शमेद् व्याधिं योऽन्यमन्यमुदीर्येत्” अर्थात् “वही चिकित्सा प्रशस्त है जो व्याधि का तो शमन करे पर किसी अन्य व्याधि को उत्पन्न न करे”। पर यह संस्कृत में लिखा है और आयुर्वेद का सिद्धांत है इसलिए आप चिकित्सा के इस उत्कृष्ट सिद्धांत को स्वीकार नहीं करेंगे।
एलोपैथ दवाओं के नशे और साइड इफेक्ट को हमेशा से कम करके ही बताया जाता है। जबकि इनके साइड इफेक्ट मरीजों द्वारा भारी मात्रा में भुगते जाते है।कई शोधो में साबित हुवा डाइबिटीज की दवाओं से ब्लड कोलेस्ट्रॉल बढ़ता है। और कई दवाओं से लीवर और किडनी का जबरदस्त रूप से नुकसान होता है। देश में बढ़ रहे डायलेसिस और लीवर ट्रांसप्लांट के बढ़ते मामले जीवन शैली रोगो और उनके ईलाज के लिए उपयुक्त दवाओं के साइड इफेक्ट को लेकर सार्वजानिक मंचो पर कोई चर्चा नहीं की जाती है।
कंज्यूमर कार्नर
प्रोसेस फ़ूड लेबलिंग भ्रामक। ICMR जारी की अपनी रिपोर्ट।

ICMR ने कई चौंका देने वाले खुलासे किये।
हालही में ICMR ( Indian Council of Medical Research ) ने ये माना है। की प्रोसेस फ़ूड व कॉस्मेटिक की लेबलिंग भ्रामक हो सकती है। उनमे गलत सूचनाएं हो सकती है। जो की ग्राहक को भरमा सकती है। व उसके क्रय करने या खरीदने को प्रभावित कर सकती है।
ICMR ने अपनी रिपोर्ट में कहा है की बाजार में उपलब्ध ग्राहकों को रिझाने के लिए अपने कई दावों को उत्पाद पर इस तरह प्रदर्शित करता है। जिससे ग्राहक उत्पाद को खरीद ले। जैसे शुगर फ्री,प्रोटीन ,या कई तरह के पोषक तत्वों या कुछ पोषक खाद्य जैसे काजू ,बटर ,बादाम आदि को उत्पाद के ऊपर प्राथमिकता दर्शाया जाता है। जबकि उनकी उपस्थिति नाम मात्र ही होती है। इन्हीं बिंदुओं को लेकर एक सर्वे में ICMR ने यह रिपोर्ट जारी की है।
ICMR ने कई चौंका देने वाले खुलासे तो किये है। लेकिन इन खुलासों के बाद भी FSSAI द्वारा कोई सफाई या FSSAI द्वारा कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं की गई।
जबकि FSSAI के लेबलिंग को लेकर एक सख्त कानून है व साफ साफ दिशानिर्देश है।हालही में विदेशों में भारतीय मसाला कंपनी एवरेस्ट व एमडीएच के मसालों के रिकॉल होने के बाद FSSAI की नीतियों और जिम्मेदारियों पर उंगलियां उठी। जिसे लेकर FSSAI ने आनन फानन में सभी मसाला कंपनियों के लिए जांच और सैम्पलिंग करना शुरू कर दिया। यानी के सैकड़ों चूहे खा कर बिल्ली हज जाने की इच्छा मात्र ही रखती है।
ये मानने में कोई हर्ज नहीं की FSSAI के कानून व प्रावधान साफ साफ विदेशी व अंतरास्ट्रीय फ़ूड कानूनों की नक़ल मात्र है। फर्क सिर्फ पालना करवाने और बड़े निर्माताओं के लिए कानूनों में ढील व बचाव के प्रावधानों को कानून में शामिल करना है।
जैसा की आप देख सकते है की FSSAI के लेबलिंग के कानूनों के तहत किसी भी खाद्य प्रदार्थ पर जिसमे प्रिजर्वेटिव व अन्य संरक्षक पदार्थ मिले होते है उनके लिए ताजा या फ्रेस नहीं लिखा जा सकता है। तो इसके कानून से बचाव के लिए निर्माता अपने उत्पाद का नाम ही ताजा या फ्रेश मुख्य नाम के आगे पीछे लगा कर अपने उत्पाद की लेबलिंग बनाता है। जैसे किसान फ्रेश या ताजा चाय ,तथा ताजा फलों या सब्जियों को फोटो लगा कर फोटो के नीचे या कहीं किसी कोने में सांकेतिक या प्रतीकात्मक फोटो लिख कर FSSAI के उत्पाद संबंधी भ्रामक तस्वीरों न लगाने के कानून से भी बचा जाता है। जो आप लोग कई उत्पादों विशेषकर फ्रूट ज्यूस व फलो संबंधी उत्पादों पर देखे जा सकते है।
इसी तरह किसी भी FSSAI प्रिज़र्वेटिव ,एसिड रेगुलेटर आदि उत्पाद संरक्षकों की मात्रा सीमा तय है। लेकिन ऐसे पदार्थो की संख्या कितनी होनी चाहिए यह तय नहीं है। यानि की किसी एक प्रिज़र्वेटिव की मात्रा तो तय है लेकिन कितने तरह के प्रिजर्वेटिव उपयोग किये जा सकते है। यह तय नहीं है। ऐसे खाद्य पदार्थों के सेवन की सीमा भी तय होती है। जो की उत्पाद के लेबलिंग पर एक सर्विंग की मात्रा में दर्शाया जाता है। लेकिन बड़ी ही चालाकी से उसी के साथ 100 ग्राम की न्यूट्रिशनल इन्फॉर्मेशन के साथ दर्शा कर भ्रमित कर दिया जाता है।
इन लेबलिंग छलावरण को लेकर फ़ूडमेन प्रखरता व प्रमुखता से अपने पाठको को बताता आया है। अब ICMR ने भी इन्ही फ़ूड प्रोडक्ट की लेबलिंग में भ्रामकता और पर्देदारी को लेकर अपनी राय प्रकट की है। हालाँकि FSSAI ने इसको लेकर कोई जवाब नहीं दिया है। भविष्य में आने वाली केंद्र सरकार की और ही देखा जा सकता है।
वैसे सोचने की बात है। आज हर घर में जीवनशैली सम्बन्धी रोगो के रोगी मिल जाते है। जिनके रोगो का प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से प्रोसेस फ़ूड से सम्बन्ध है। व हजारो रूपए की दवा आज हर घर के राशन की लायी जाती है। फिर भी जनता का ध्यान पैकेज प्रोसेस फ़ूड व फ़ूड सेफ्टी की तरफ शून्य है।
ब्लॉग
कभी हाँ कभी ना।

सोते देश को मत जगाओ यारो।
संपादक की कलम से।
हम तो चुपचाप से हाँ हाँ कर के बेबी फ़ूड, हेल्थ ड्रिंक मसाले ले ले कर शादी पार्टी बनाये जा रहे थे और विज्ञापन एजेंसी और कंपनी ने दिन भर हमें यही समझती रहीं कि हाँ हाँ यही बेस्ट फिर है तभी तो मस्त रहेगा अपना इंडिया और हम को हमारी सरकारी मशीन के सील सिक्के का ज्यादा कुछ पता भी नहीं था किन्तु अब ऐसा क्या हो गया कि किसी विदेशी धरती से न ,न की आवाज आयी कि हमको तो शक्कर खिलाई जा रही है कीट नाशको के डोज़ दिए जा रहे हैं।
और हाँ हमको तो विदेशी वैक्सीन फार्मूले ने मार डाला अब तो सब को हृदय रोग होने ही वाला है।
तो हम जो रोजमर्रा के जीवन को खा पी कर डेली हमारे विज्ञापनों में सेलिब्रिटी की हाँ से हाँ मिला कर प्रसन्न थे अब हमको किसी ने डरा दिया कि भारत में तो जहर थाली में आ गया है।
खैर अब जैसे कि हम इतना जग गए हैं कि दूध और मसाले बिल्कुल छोड़ देंगे।
न ,न हमारे घर में हमने कबसे कूटे मसाले छोड़ दिए और ये सब ख़बरें तो जैसे एक घटना होती है वैसे ही जान कर हमारे घर में पहले भी और आगे भी मसालों का खूब इस्तेमाल होगा ही। हम तो ये भी कहते हैं कि इंडिया गेट पर भी यदि ज्ञान दिया और वीडियो चलाये जाएँ तो हम तो घर के बाहर अपने चाट पकोड़ी वाले का जायका लेने जाना तो छोड़ने वाले नहीं है।
फिर हम भारत की फ़ूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री में विदेशो में प्रतिबंधित जो फ़ूड एडेटिव्स मिलाये जाते है जिनकी सुरक्षित सीमा तो कागजो में तो तय है, लेकिन वास्तविकता में अंधाधुन्द इमल्सीफायर , एडेटिव्स और आर्टिफीसियल कलर व फ्लेवर काम में लिए जाते है। उसका क्या करें। उस पर जब कोई विदेशी धरती से बोलेगा तो सुन लेंगे और कोई घटना समझ कर फिर से सेवन करने लगेंगे।
भारतीय स्ट्रीट वेंडर्स में इन जहरीले तत्वों को लेकर कोई नियम नहीं है। इतनी अधिक मात्रा में ट्रांसफेट और नकली व हानिकारक फेट का उपयोग किया जा रहा है। अब हम तो किसी बात पर हाँ हाँ ही करेंगे क्योंकि प्रजा तंत्र जो है जब जनता ठेलों पर ऐसे टूटती है जैसे कि फ्री में ठेले वाले भैया पानी पूरी खिला रहे हों। शादी समारोह का तो क्या कहना, पंडित जी के दो मुहूर्त महीने में मिलावटखोरों और जमाखोरी के लिए जैसे वरदान होते हैं।
12 से 18 साल के बच्चे एनर्जी ड्रिंक और कोल्ड ड्रिंक बिना किसी अंकुश के पी रहे है।यूरोपियन संघ और अमेरिका की ही माने तो भारत के बाजारों में प्रोसेस फ़ूड में डाले जाने वाले केमिकल्स और कई दवाएं आसानी से उपलब्ध है जो कि वहां पर प्रतिबंधित है।
क्या ये माना ही न जाए की आज के खानपान में प्रोसेस फ़ूड और पैकेज फ़ूड में मिलाये गए फ़ूड एडिटिव आपके लिए हार्ट अटैक ,ब्रेन स्ट्रोक ,और कैंसर तथा जीवनशैली रोगो को बढ़ावा नहीं दे रहे ?क्या ये माना ही न जाये की जीवन भर जिस बीमारी के ईलाज के लिए जो दवा आप खा रहे है। उसके साइड इफ़ेक्ट से भी आपको हार्ट अटैक या दिमाग में स्ट्रोक नहीं हो सकता ?
हमारे देश भोजन,दवा ,और नशा दोनों ही सरकार द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रित है। और जनता अपने में ही व्यस्त है,तो ऐसे में घबराना व्यर्थ है।
सच ये है की जनता इतनी गहरी नींद या नशे में है की सिर्फ राजनीतिक मुद्दों के अलावा स्वास्थ्य पर किसी का ध्यान ही नहीं है। बोर्नविटा में जरूरत से ज्यादा चीनी है ,लेकिन कितने लोगो ने अपने बच्चो को बोर्नविटा या अन्य पैकेज हेल्थ ड्रिंक देना बंद किया ? 4 मई 2024 हिंदुस्तान अख़बार में दिल्ली हाई कोर्ट में दिल्ली में सप्लाई दूध की रिपोर्ट को लेकर खुलासा हुआ की दिल्ली में सप्लायी दूध सुरक्षित नहीं है। क्या दिल्ली वालो ने दूध पीना बंद कर दिया? हालाँकि यह खुलासा चौका देना वाला नहीं है। क्यों की यह खबर भी अख़बार में राशिफल देखने जैसे है।पढ़ता हर कोई है लेकिन मानता कोई नहीं।
जनता का खाद्य सुरक्षा के मामले में उदासीन और लापरवाह होना आने वाली दो से तीन पीढ़ियों के लिए जानलेवा संकट उत्पन्न कर सकता है। क्या अब भी आग लगने के बाद कुआँ खोदना शुरू करेंगे ?