समाचार (देश/विदेश)
दिल “अफजा ” पर रूह “अफजा ” की जीत
शरबत के जाने माने ब्रांड “रूह अफजा ” और उसी के नाम से मिलता जुलता “दिल अफजा ” का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। जिस पर जिरह के बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट का फैसला में बिना किसी परिवर्तन के बरक़रार रखा। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को सही माना
मामला समझे
हमदर्द फार्मेसी 1907 से रूह अफजा नाम से शरबत बना कर बेच रही है। एक शतक से भी पुराने ब्रांड की भारतीयों में लोकप्रियता बनी हुई है व विदेशो तक में हमदर्द रूह अफजा की मांग है। वही दिल अफजा नाम से शरबत बनाने वाली कम्पनी सदर लेबोरेट्रीज ने 2020 से बेचना शुरू किया है। जिसको लेकर हमदर्द फार्मेसी को आपत्ति हुई और उसने सदर लेबोरेट्रीज पर नक़ल करने और हमदर्द फार्मेसी के रूह अफजा की बिक्री पर असर डालने को लेकर हाईकोर्ट में मुकदमा दायर किया। उधर सदर लैबोरेट्रीज का कहना था की वो 1976 से ही दिल अफजा नाम से दवा बना रही है अब शरबत का नाम दिल अफजा रखने से उसे नहीं रोका जाना चाहिए।
हालांकि हाईकोर्ट के दो जजों की बेंच में हुई बहस और जिरह के बाद हाई कोर्ट ने हमदर्द फार्मेसी के पक्ष में फैसला दिया।इससे पूर्व हाईकोर्ट की ही सिंगल बेंच दिल अफजा के पक्ष में फैसला दिया था। जिसे हाईकोर्ट की डबल बेंच ने पलटते हुवे फैसला रूह अफ्जा के पक्ष में लेते हुए सदर लैबोरेट्रीज को दिल अफ्जा नाम के साथ शरबत के उत्पादन और विपणन पर रोक लगा दी थी। फैसले से असंतुष्ट सदर लैबोरेट्रीज ने सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी।
सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने मामला सुना। तीन जज, चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ,जस्टिस पि एस नरसिम्हा और जे बी पारडीवाला ने दोनों शरबत की बोतल का मुआयना किया तथा कहा की हाईकोर्ट के फैसले में कोई कमी नजर नहीं आती है। अतः हाईकोर्ट के आदेशों को बरक़रार रखते हुवे सदर लेबोरेट्रीज के दिल अफजा नाम से शरबत की बिक्री व उत्पादन पर रोक बरक़रार रखी गई है।
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भारतीय ” वनदेवी हींग ” ब्रांड को अमेरिका में एलर्जीन चेतावनी के चलते रिकॉल किया।
“वनदेवी हींग” में पाया गया अधोषित गेंहू के अंश।
US. FDA ने किन्जिन फ़ूड प्रा की “वनदेवी हींग “को रिकॉल किया।
किन्जिन फ़ूड प्रा (महाराष्ट्र ) के उत्पाद वनदेवी हींग को अमेरिका की स्टैंडर्ड ऑफ़ फ़ूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA ) ने फ़ूड रिकॉल किया है।
अमेरिका के बाजार में किन्जिन फ़ूड प्रा की वनदेवी हींग पीला पाउडर की बिक्री के लिए भेजी गई थी। लेकिन उत्पाद की जाँच में FDA ने गेहू के अंश होने की सम्भावना व लेबलिंग नियमन उलंघन के जिसके चलते “वनवासी हींग” को 10 जनवरी 2024 को रिकॉल की घोषणा की गई तथा 17 जनवरी को इसे प्रकाशित किया गया है।
दरअसल में किन्जिन फ़ूड प्रा के जिस फैक्ट्री मेंवनदेवी हींग का उत्पादन व पैकिंग की जाती रही है उसी फेक्ट्री में गेहु के उत्पादों को भी प्रोसेस किया जाता है। जिसके चलते हींग में गेहूं के अंश आने की सम्भावना बनी रहती है। यह जानकारी FDA को पता चलते ही FDA ने वनदेवी हींग को बाजार से रिकॉल के आदेश दे दिए है। तथा उपभोक्ताओं से भी उत्पाद वापस करने का आग्रह किया गया है की वे उत्पाद खरीद की दुकानों पर वनदेवी हींग को जमा करवाये। वनवासी हींग से किसी ग्राहक को एलर्जी के चलते कोई समस्या अभी तक सामने नहीं आये है। लेकिन ग्राहक सुरक्षा हेतु FDA ने यह कदम उठाना पड़ा है
कैसे बनती है हींग ?
हींग एक प्रकार के पौधे की जड़ो से निकलने वाला सफ़ेद व चिपचिपा प्रदार्थ होता है। ताजा व शुद्ध हींग बहुत ही तेज होता है जिसे सीधा उपयोग में नहीं लाया जा सकता है। इस लिए हींग प्रोसेस की जाती है। शुद्ध हींग में अरारोट या मक्की के मेदे ,चावल के आटे व गेहूं के आटे साथ मिला कर संतुलित किया जाता है। व पैकिंग कर बाजार में बिकने भेज दिया जाता है।
भारत में भी किन्जिन फ़ूड की हींग भारत में भी किन्जिन फ़ूड की हींग वनदेवी हींग ,लक्ष्मीनारायण हींग ,व गौरी हींग के नाम से ब्रांड बाजार में उपस्थित है विशेषकर महाराष्ट्र व कर्णाटक राज्यों में किन्जिन फ़ूड की हींग का अच्छा बाजार है।
हमारे देश में मिलने वाले अधिकतर कंपाउंड हींग येलो पाउडर (बांधानी हींग )में अरारोट या चावल के आटे का उपयोग किया जाता है। कुछ सस्ते ब्रांड इसमें गेहूं के आटे का उपयोग करते है।जिसे स्ट्रांग हींग के नाम से बेचा जाता है। जो की गेंहू से एलर्जी वाले मरीजों को दिक्कत दे सकता है। लेकिन हींग बहुत ही कम मात्रा में खाना पकाने में उपयोग होती है तो गेहू की एलर्जी वाले मरीजों के लिए यह घातक नहीं होतीं है। लेकिन लगातार उपयोग से समस्या हो सकती है।भारतीय हींग उत्पादों में अधिकतम में गेहू से एलर्जी को लेकर हींग की लेबलिंग पर किसी भी तरह की चेतावनी नहीं लिखी पायी गई है।
इसलिए हींग खरीदते समय हींग का प्रकार व हींग के लेबलिंग को भी जरूर पढ़े की उसमे क्या मिलाया गया है।
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अमेजॉन पर फर्जी प्रसाद। श्री राम मंदिर के नाम का उपयोग।
उपभोक्ता प्राधिकरण ने अमेजॉन पर फर्जी प्रसाद बिक्री पर थमाया नोटिस।
22 जनवरी को श्री राम मंदिर का उद्घाटन कार्यक्रम है। और अमेजॉन पर फर्जी प्रसाद बेचा जा रहा है। आश्चर्य नहीं होना चाहिए। हमारे देश के व्यापारियों में कुछ ऐसे असामाजिक तत्व है। जिनका मकसद मात्र लाभ कमाने के लिए बड़े से बड़ा झूठ बोलने को तैयार रहते है। ऐसे में अमेजॉन जैसे बड़े ऑनलाइन प्लेटफॉर्म इनको स्थानीय से ग्लोबल मौका देते है।
22 जनवरी श्री राम मंदिर के उद्धघाटन में व्यस्त केंद्र सरकार के अधिकारी उस समय अचंभित रह गए जब उनको ऑनलाइन श्री राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का प्रसाद ऑनलाइन बिक्री की सबसे बड़ी कम्पनी अमेजॉन पर फर्जी प्रसाद बेचते पाया गया। हैरान कर देने वाली इस खबर का संज्ञान लेते हुवे केंद्रीय उपभोक्ता सरक्षण प्राधिकरण (CCPA ) ने अमेजॉन पर फर्जी प्रसाद बेचने के नाम पर भ्रामक विज्ञापन कर मिठाई बेचने के लिए अमेजॉन को नोटिस दिया है।यह कार्यवाही कार्न्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) की एक शिकायत के आधार पर केंद्र सरकार के तहत आने वाले नियामक प्राधिकरण की ओर से की गई है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि अमेजॉन पर फर्जी प्रसाद राम मंदिर के प्रसाद के नाम से मिठाइयों की बिक्री कर रहा है।
आस्था के नाम पर इस देश में पहले से ही लूट और धोखेबाजी चल ही रही है। अब अमेजॉन जैसे बड़े ऑनलाइन मार्किट पर भी आस्थागत धोकेबाजी होती जा रही है। ऐसा पहली बार नहीं है की अमेजॉन पर धोका धड़ी के आरोप लगे है। वास्तविकता में अमेजॉन जैसे ऑनलाइन मार्किट मात्र ग्राहक और दुकानदार की बीच की कड़ी का काम करती है। जहां अमेजॉन अपनी नीतियों और जिम्मेदारी पर विक्रेताओं को अपना ऑनलाइन प्लेटफॉर्म इस्तेमाल करने देता है।
अमेजॉन पर फर्जी प्रसाद बेचने का यह पहला मामला नहीं इससे पूर्व भी अमेजॉन के बायर्स पर मोबाइल के नाम पर साबुन टिकिया ,पत्थर ,या खाली डब्बे आदि व नकली सामान भेजने की ग्राहकों से शिकायते मिलती रहती है। यह पहली बार है की केंद्र सरकार के कार्यक्रम व आस्था के नाम पर ग्राहकों को अमेजॉन के सहारे धोखा दिया जा रहा है।
सूत्रों के अनुसार उपभोक्ता प्राधिकरण ने अमेजॉन पर फर्जी प्रसाद बिक्री पर सात दिनों में जवाब मांगा है. साथ ही चेतावनी दी है कि जवाब देने में विफल रहने पर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के प्रावधानों के तहत कंपनी के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. इस बीच, कंपनी ने कहा कि वे इस बारे में उचित कार्रवाई कर रहे हैं. सीसीपीए की ओर से बताया गया है, अधिकारियों ने देखा कि विभिन्न मिठाइयां/खाने की वस्तुएं अमेजॉन पर फर्जी प्रसाद पर बिक्री के लिए हैं, जिन्हें श्री राम मंदिर अयोध्या प्रसाद होने का दावा किया गया है. आरोप है कि ग्राहकों को भ्रमित किया जा रहा है।
बिक्री के लिए अमेजॉन पर फर्जी प्रसाद पर लिमिटेड प्रोडक्ट्स पर ‘श्री राम मंदिर अयोध्या प्रसाद- रघुपति घी लड्डू’, ‘अयोध्या राम मंदिर अयोध्या प्रसाद- खोया खोबी लड्डू’, ‘राम मंदिर अयोध्या प्रसाद – देसी गाय के दूध का पेड़ा’ लिखा हुआ है।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ‘भ्रामक विज्ञापन’ पर प्रतिबंध लगाता है, जो ऐसे प्रोडेक्ट या सर्विस की गलत जानकारी देता है. उधर, अमेजॉन ने एक बयान में कहा कि कंपनी अपनी नीतियों के अनुसार उचित कार्रवाई कर रही है. अमेजॉन के प्रवक्ता की ओर से कहा गया है कि हमें कुछ विक्रेताओं की ओर से भ्रामक उत्पाद दावों और उनके उल्लंघन की जांच के संबंध में केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) से कहा गया है।
केंद्रीय प्राधिकरण ने कहा कि इस तरह की भ्रामक जानकारी और सूचना ग्राहकों को प्रभावित करती है. उल्लेखनीय है कि उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम, 2020 के नियम 4(3) के तहत, कोई भी ई-कॉमर्स इकाई अनुचित व्यापार व्यवहार नहीं कर सकता है।
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डाबर इंडिया की विदेशी सहायक कम्पनी पर अमेरिका ,कनाडा में मामले दर्ज।
डाबर इंडिया के हेयर आयल में कैंसर कारी तत्व होने का दावा।
डाबर इंडिया की सहायक कम्पनीज ने खड़े किये वकील।
भारत में आयुर्वेदिक उत्पादों की सबसे बड़ी कम्पनी डाबर इंडिया पर फिर से उत्पाद के मिश्रण और लेबलिंग को लेकर विवाद हो गया है। इसबार ये विवाद भारत में न हो कर विदेशी जमीन पर हुवा है। अमेरिका और कनाडा के कई डाबर इंडिया के उपभोक्ताओं ने डाबर के हेयर रिलैक्सर उत्पाद में कैंसर करि तत्व होने के दावे क लेकर कई उपभोक्ताओं ने डाबर पर मुकदमा दायर करवा दिया है।
प्राप्त जानकारी व सूत्रों के अनुसार डाबर इंडिया की तीन विदेशी सहायक कम्पनी डाबर इंटरनेशनल लिमिटेड ,डार्मो वीवा स्किन एसेंशियल इंक ,व नमस्ते लेबोरेटरीज अमेरिका व कनाडा के राज्य अदालतों में मुकदमों का सामना कर रही है। इन कंपनियों के कई उत्पादों में कैंसर कारक तत्व शामिल होने का आरोप लगाया गया है।
सूत्रों के अनुसार इन कम्पनियो पर इनके द्वारा निर्मित हेयर रिलेक्सर उत्पादों में ऐसे रासायनिक तत्व पाए गए है। जिनसे अंडाशय ,व गर्भाशय जैसे जननांगो का कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है। व अन्य स्वास्थय समस्या भी हो सकती है। अमेरिका और कनाडा की कई अदालतों में उपभोक्ताओं द्वारा यह शिकायत दर्ज की गई है।
कुल मिला कर अब तक दोनों संघीय राज्यों में 5400 मामले प्रकाश में आये है जिन्हे स्थानीय कानून के अनुसार बहु जिला क़ानूनी मुकदमो के अंतर्गत ( Multi District litigation ) के रूप में समाहित किया जा रहा है। जिसे MDL ( Multi District litigation) के तौर पर समझा जा सकता है।
हालाँकि डाबर इंडिया ने भी इन मुकदमो की स्वीकार करते हुवे कोर्ट में उपभोक्ताओं की शिकायत का पुरजोर विरोध करते हुवे अपने वकील खड़े किये है।
डाबर इंडिया और उसकी सहायक विदेशी कम्पनी ने दावा किया है की। जो दावा उपभोक्ताओं द्वारा लगाया गया है वो किसी भी रूप से वैज्ञानिक नहीं है आधी अधूरी रिसर्च रिपोर्ट के हवाले से यह मुक़दमे दर्ज किये गये है।
डाबर भारतीय कम्पनियो में गर्व के साथ लिए जाने वाला नाम है। लेकिन ऐसा नहीं है की विदेशी भूमि पर डाबर इंडिया के उत्पादों को लेकर विवाद हुवे है। इससे पहले भी भारत में ही डाबर के शहद को लेकर विवाद हो चूका है और साबित भी हो चूका है की डाबर शहद में मिलावट है।
अगस्त 03/2023 इसी साल ज़ी न्यूज़ बिहार झाड़खंड ने अपने समाचार में डाबर शहद को जहर जैसा बता कर अपनी न्यूज़ को छापा।
हालाँकि ये सच्चाई थी की डाबर का शहद मिलावटी पाया गया लेकिन इसे जहरीला कह देना जल्दबाजी होगी। अगस्त महीने में डाबर के शहद की रिपोर्टिंग के साथ यह तो बताया गया की शहद में संभावित कैंसर करि तत्व पाए गए लेकिन यह नहीं बताया गया की कौन से तत्व पाए गए और वो कितने प्रभावी है कैंसर को लेकर या बस थ्योरी को लेकर ही हंगामा किया जा रहा है।
डाबर से पूर्व सफोला हन्नी और वेदनाथ व पतंजलि के शहद पर भी चीनी की मिलावट के आरोप सिद्ध किये गए है। लेकिन अभी तक FSSAI द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गई है। ऐसे में सवाल तो ये उठता है की क्या हमारे देश में एक सक्षम खाद्य कानून होते हुवे भी एक भी मुकदमा किसी भी कम्पनी के विरुद्ध क्यों दर्ज नहीं हुवा है। जबकि भारत के बाहर भारतीय कम्पनी के एक उत्पाद की गड़बड़ी पर 5400 मुक़दमे दर्ज हो गए।
यहाँ पर सवालिया निशान हमारी प्रशासनिक व्यवस्थाओ पर उठती है। क्या धारा तेल से हुवे खाद्य आधात का इंतजार हो रहा है। या FSSAI की कार्यप्रणाली रिश्वत और भ्रष्टाचार में लिप्त है। अमेरिका और कनाडा में डाबर इंडिया पर लगे आरोपों पर नजर रहेगी। लेकिन यह भी सोचना होगा हमारे देश में ऐसी वयवस्था है भी की नहीं। या व्यवस्था को रिश्वत और भ्रष्टाचार ने इतना भयभीत कर रखा है की एक आम आदमी अपने साथ हुवे छल के विरुद्ध लड़ भी नहीं पा रहा है।
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फल और सब्जियों को खाने के लिए सुरक्षित रखने उपायों की समीक्षा बैठक
फल और सब्जियों के उत्पादन में सुरक्षा पर एफएओ और डब्ल्यूएचओ ने व्यापक रिपोर्ट जारी की
एफएओ (संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन) और डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) ने हाल ही में एक पूरी रिपोर्ट जारी की है जो ताजे फल और सब्जियों को खाने के लिए सुरक्षित बनाने के तरीकों की जांच करती है। इन दो अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने विभिन्न प्रकार के फल और सब्जियों जैसे पत्तेदार साग, जड़ी-बूटियाँ, जामुन, उष्णकटिबंधीय फल, तरबूज,सब्जियां पेड़ के फल और जड़ वाली सब्जियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, उपज सुरक्षा के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन किया है।
यह रिपोर्ट माइक्रोबायोलॉजिकल रिस्क असेसमेंट (एमआरए) श्रृंखला के एक भाग के रूप में आती है, जिसका उद्देश्य हमारे भोजन में रोगाणुओं से जुड़े जोखिमों का आकलन और प्रबंधन करना है। पिछले साल, माइक्रोबियल जोखिम मूल्यांकन (जेईएमआरए) पर संयुक्त एफएओ/डब्ल्यूएचओ विशेषज्ञ बैठक ने अपने निष्कर्षों का सारांश दिया था, और अब पूरी रिपोर्ट जनता के लिए उपलब्ध है।
रिपोर्ट -देखने के लिए यहाँ क्लिक करे
2019 में, खाद्य सुरक्षा मानकों को निर्धारित करने वाली एक अंतरराष्ट्रीय संस्था, कोडेक्स एलिमेंटेरियस कमीशन ने पत्तेदार सब्जियों और अंकुरित अनाजों में शिगा(Shiga ) टॉक्सिन पैदा करने वाले ई. कोली (STEC) नामक एक प्रकार के हानिकारक बैक्टीरिया को नियंत्रित करने के लिए दिशानिर्देशों को बनाने की मंजूरी दी।
इस प्रयास के समर्थन में, JEMRA ने सितंबर 2021 में बैठक की, जिसमें पत्तेदार साग सहित खाने के लिए तैयार और न्यूनतम प्रसंस्कृत फल और सब्जियोंको उपभोग के लिए सुरक्षित बनाने पर ध्यान केंद्रित किया गया। एक अन्य बैठक में बीज उत्पादन के चरण से लेकर बिक्री के स्थान तक अंकुरों की सुरक्षा पर ध्यान दिया गया।फसलों के भण्डारण और रसायन लगा कर सुरक्षित करने की तकनीकों में कई रसायनो को हटाने की सिफारिश की गई है।
इस शोध में शामिल वैज्ञानिकों ने फल और सब्जियों में हानिकारक रोगाणुओं के जोखिम को कम करने के लिए विभिन्न तरीकों का मूल्यांकन किया। उन्होंने संपूर्ण उत्पादन प्रक्रिया की जांच की, जिसमें फसल उगाने से लेकर उपभोक्ताओं को बेचे जाने तक की प्रक्रिया शामिल थी। चूंकि ये खाद्य पदार्थ आमतौर पर कच्चे खाए जाते हैं और इनकी शेल्फ लाइफ कम होती है, इसलिए उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है।
विशेषज्ञों ने पाया कि फल और सब्जियों में हानिकारक रोगजनकों के जोखिम को कम करने के सबसे प्रभावी तरीके प्राथमिक उत्पादन चरण के दौरान अच्छी कृषि पद्धतियाँ (जीएपी) और अच्छी स्वच्छता पद्धतियाँ (जीएचपी) हैं। कटाई के बाद की गतिविधियों के लिए, उन्होंने माइक्रोबियल संदूषण को रोकने, क्रॉस-संदूषण के जोखिम को कम करने और रोगजनकों को बढ़ने से रोकने के लिए अच्छी विनिर्माण प्रथाओं (जीएमपी) और खतरा विश्लेषण और महत्वपूर्ण नियंत्रण बिंदु (एचएसीसीपी) नामक प्रणाली का उपयोग करने की सिफारिश की। इन्ही सिफारिशों को लेकर फ़ूडमेन अपने कई लेखो में बताता आया है।
दुनिया भर के विभिन्न क्षेत्रों में पत्तेदार सब्जियां उगाने के लिए विविध उत्पादन प्रणालियाँ हैं, जो जलवायु, जैव विविधता और पर्यावरणीय परिस्थितियों जैसे कारकों से प्रभावित हैं। ये फसलें विभिन्न बाजार चैनलों के माध्यम से उपभोक्ताओं तक भी पहुंचती हैं।
एक महत्वपूर्ण जोखिम सिंचाई के पानी की गुणवत्ता थी, जो कभी-कभी खराब सूक्ष्म जीवो की वजह से संक्रमित हो जाता है। इन फसलों के प्रसंस्करण में उपयोग किए जाने वाले पानी की गुणवत्ता भी महत्वपूर्ण थी।
हमारे देश में लगभग हर जिले में सीवर के पानी से सीधे ही कृषि व सब्जियां उगाई जाती रही है। जिनको समय समय पर प्रशासन द्वारा हटाया भी जाता है। आज बाजार में उपलब्ध अधिकतर सब्जिया सीवर व नहर नालो के पानी से बिना पानी को किसी भी साफ सफाई के उगाई जा रही है। जो सरकार और प्रशासन दोनों के लिए ही चिंता का विषय होना चाहिए। लेकिन जनता में ही कोई जागरूकता नहीं है,तो सरकार को क्यों होगी ?
प्रसंस्करण में उपयोग किए जाने वाले पानी को सुरक्षित बनाने के लिए, यूवी उपचार, प्लाज्मा उपचार, स्पंदित प्रकाश और अल्ट्रासाउंड जैसी विभिन्न विधियों का पता लगाया गया है। हालाँकि, खाद्य उद्योग में उनके उपयोग के सीमित प्रमाण हैं। वैज्ञानिकों ने कहा कि इन नई प्रौद्योगिकियों की व्यावहारिकता को समझने के लिए और वास्तविक दुनिया के उत्पादन और प्रसंस्करण की नकल करने वाली परिस्थितियों में वे कितनी अच्छी तरह काम करती हैं, इसे समझने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है।
जब सब्जियों पर रोगज़नक़ों को खत्म करने के लिए कटाई के बाद के उपचार की बात आती है, तो विकिरण सबसे प्रभावी तरीका है, लेकिन लागत और उपभोक्ता चिंताओं के कारण इसे चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। अन्य उपचार, जैसे इलेक्ट्रोलाइज्ड पानी या बैक्टीरियोफेज का उपयोग, आशाजनक दिखते हैं लेकिन उनकी सीमाएं भी हैं।
जामुन को खुले खेतों या नियंत्रित वातावरण में उगाया जा सकता है, जिसमें इनडोर और ऊर्ध्वाधर खेती भी शामिल है। इन नाजुक फलों को धोना आम बात नहीं है क्योंकि यह उन्हें नुकसान पहुंचा सकता है और फफूंदी के विकास को बढ़ावा दे सकता है। इसके बजाय, शोधकर्ता यूवी और स्पंदित प्रकाश जैसे जल-सहायता उपचारों के साथ-साथ नियंत्रित-रिलीज़ पैड जैसे गैस-आधारित तरीकों की खोज कर रहे हैं।
सेब और नाशपाती जैसे फलों के लिए, सुरक्षा की प्राथमिक रणनीति में वातावरण को नियंत्रित करना और उनके शेल्फ जीवन को बढ़ाने के लिए ठंडे तापमान पर भंडारण करना शामिल है।
खरबूजे और पेड़ के फलों के लिए, छंटाई और पैकिंग के दौरान स्वच्छता बनाए रखना महत्वपूर्ण है। यह सुनिश्चित करना कि पैकिंग वातावरण और उपकरण संदूषण से मुक्त रहें, सुरक्षा के लिए भी आवश्यक है।
रिपोर्ट इस बात पर प्रकाश डालती है कि हालांकि इन फल और सब्जियों पर महत्वपूर्ण शोध किया गया है, लेकिन इसमें से अधिकांश सीमित संख्या में जीवाणु खाद्य जनित रोगजनकों पर केंद्रित है। वैज्ञानिकों के अनुसार, जब इन खाद्य पदार्थों से जुड़े प्रोटोजोआ या वायरल जोखिमों को संबोधित करने की बात आती है तो हमारे ज्ञान में अभी भी कमियां हैं।
संपादकीय
अन्नपूर्णा फ़ूड पैकेट फ्री राशन योजना के मसालों की गुणवत्ता पर संदेह – आरोप
अन्नपूर्णा फ़ूड पैकेट फ्री राशन योजना की मसालों की गुणवत्ता पर वायरल हो रहे वीडियो।
राजस्थान सरकार ने जारी किये संभाग स्तर पर हेल्प लाइन नंबर।
राजस्थान की कांग्रेस सरकार द्वारा 15 अगस्त 2023 को जारी अन्नपूर्णा फ़ूड पैकेट फ्री राशन योजना अपने शुरुआती चरण में ही विवादों से घिर गई। कई लोगो ने अन्नपूर्णा फ़ूड पैकेट फ्री राशन योजना के तहत मिले पैकेट की क्वालिटी को लेकर वीडियो सोशल मिडिया पर डाले है जिसमे मसलो की क्वालिटी बहुत ही निम्न स्तर की दिखाई दे रही है।
अभी हाल ही में राजस्थान की गहलोत सरकार ने अपनी योजनाओं के लाभार्थियों को योजना से हुए लाभ का वीडियो शेयर करने के लिए एक लॉटरी स्कीम चलाई है। शायद अन्नपूर्णा फ़ूड पैकेट फ्री राशन योजना के लाभार्थियों को ये समझ में नहीं आया के लाभ बताने है या कमियां ?
बरहाल स्थिति जो देखते हुवे राजस्थान सरकार ने संभागीय स्तर पर हेल्पलाइन नंबर जारी कर इस योजना के तहत ख़राब या तय वजन से कम सामान के पैकेट की जानकारी इस नंबर पर दे कर संबंधित दुकान व सामान की शिकायत की जा सकेगी।
राजस्थान सरकार द्वारा आननफानन में लागु की गई इस योजना पर सरकार द्वारा व अधिकारियो द्वारा खाद्य सुरक्षा के कोई तो मानक व प्रमाणिकता तय की गई होगी। और आहार मानक और मापदंड स्थापित किये गए है तो ये वायरल वीडियो क्या है ?
ऐसा नहीं है सरकार द्वारा जनहित में प्रसारित यह कोई इकलौती योजना है। इससे पहले मोदी सरकार की कोरोना काल के दौरान भी गरीब कल्याण योजना और 2014 में कांग्रेस द्वारा लाई गई खाद्य सुरक्षा योजना और सरकारी सस्ते दामों की दुकान योजना आदि चल रही है और चलती आई है।
इन योजनाओं में हमेशा नैतिकता का अभाव रहा है। आज जो वीडियो राजस्थान की अन्नपूर्णा फ़ूड पैकेट फ्री राशन योजना के तहत बांटे गए मसालों के सन्दर्भ में है। गुणवत्ता के विषय में है। सच्चाई यही है की गरीबों को सस्ता और निम्न स्तर के खाद्य प्रदार्थ उपभोग करने की आदत हो चुकी है।
इसी आदत के जिम्मेदार अफसर और व्यापारी यही सोच कर उन गरीबो को वही खाद्य सामग्री देना चाह रहे है जो वो देते आये है। लेकिन विपक्ष की राजनीति कहे या स्वार्थ की राजनीति ऐसे विडियो सोशल मिडिया पर वायरल किए जा रहे है। जबकि गरीब के पास 4g मोबाइल और इतना डेटा उपलब्ध भी न होगा।
कोई बिड़ला ही होगा जिसे सरकारी सस्ते अनाज की सच्चाई का पता न हो या मिड डे मिल में परोसे जाने वाले खाने की जानकारी न हो। ऐसे में सरकारों की नियत और नियति में फर्क करना जनता को आना चाहिए।
आज जरूरत खाद्य सुरक्षा की नहीं बल्कि खाद्य की गुणवत्ता की सुरक्षा को लेकर प्रथम है। हो सकता है की लापरवाही या गरीबो की आदतन सोच को ध्यान में रखते हुवे मसालों का ऐसे ही पैक कर दिया गया हो। जो की ये खाद्य व्यापारी बाजार में उतरने पहले खाद्य व अखाद्य रंगो की डाई लगा कर बेचा करते है। सरकारी मसालों और बाजार के मसालों में सिर्फ रंग का ही महत्व है। गुणवत्ता सिर्फ विज्ञापनों में ही कथित रहती है।
ऐसे में सिर्फ दिखने और लगने के आधार पर अन्नपूर्णा फ़ूड पैकेट फ्री राशन योजना के अधिकारी निर्माता और ठेकेदार करोडो परिवारों स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ ही कर रहे है।
2024 के लोकसभा और राजस्थान के विधानसभा चुनाव सर पर है। ऐसे में जनता आरक्षण और अपने हक़ और अधिकार के साथ साथ खाद्य सुरक्षा और खाद्य तत्वों की सुरक्षा और मानक प्रमाणीकरण को भी अपना मुद्दा बना कर। भविष्य की पीढ़ियों के रोग और बीमारियों को लेकर गंभीर हो सकती है।
खेती में बढ़ रहे रासायनिक कीटनाशकों और जहर के उपयोग को लेकर लेकर वर्तमान सरकार को घेर सकती है ,और आगामी सरकारों को सोचने पर मजबूर भी कर सकती है लेकिन इस के लिए धार्मिक ,जातिगत राजनीती से ऊपर उठाना पड़ेगा
कंज्यूमर कार्नर
“कोका कोला अल्टीमेट जीरो शुगर ” की बाजार से वापसी (Recall )
शुगर फ्री जैसे भ्रामक लेबलिंग की वजह से बाजार से वापस लिया गया
विश्व विख्यात पेय सोडा बनाने वाली कम्पनी कोका कोला को अमेरिका के जॉर्जिया से अपना उत्पाद कोका कोला अल्टीमेट जीरो शुगर बाजार से वापस लेना पड़ा है। जिसका मुख्य कारण भ्रामक रूप से शुगर फ्री की लेबलिंग का होना बताया जा रहा है।
कोका कोला हमेशा से विवादों में रही है। अलग अलग देशो में अलग अलग विवाद और विवादों के साथ भी जबरदस्त कमाई कोका कोला ने की है। विश्व भर में प्लास्टिक बोतल में सोडा पैक करके कई ब्रांड कोका कोला ने अपने झंडे तले बेच रही है। हाल ही में ही कोका कोला ने गेमर को ध्यान में रखते हुवे कोका कोला अल्टीमेट नाम से एक सोडा लॉन्च किया।जिसमे शुगर फ्री की लेबलिंग की गई थी। याद रहे ये गेमर वर्ग 10 साल के बच्चे से लेकर 25 साल तक या उससे भी अधिक उम्र वाले नौजवान है।
कोका कोला अल्टीमेट जीरो शुगर का शुगर फ्री होने का दावा FDA की जाँच में गलत पाया गया जिसके चलते अमेरिकी खाद्य सुरक्षा एजेंसी ने इसे बाजार से वापसी के आदेश दे दिए है।
FDA ने जुलाई की शुरुवात को ही आदेश पारित कर दिए तथा अभी तक बाजार से कोका कोका अल्टीमेट ज़ीरो शुगर की वापसी जारी है। यह प्रोडक्ट जॉर्जिया में वितरित किया गया था जहाँ से अब इसे बाजार से वापस मंगाया जा रहा है।
कोका कोला अल्टीमेट ज़ीरो शुगर अभी तक भारतीय बाजार में लॉन्च नहीं हुवा है। लेकिन ऐसे कई शुगर सोडा के ब्रांड उपलब्ध है। जिनमे शुगर तय मनको से भी अधिक है।लेकिन लेबलिंग पर तय मानक ही छपे है।
नोट – शुगर से मतलब साधारण चीनी नहीं है। शुगर यानी कृत्रिम मिठास जिसका मीठापन साधारण चीनी के परिमाप में रख कर मापा जाता है।
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डब्ल्यूएचओ की कैंसर अनुसंधान शाखा(JECFA ) द्वारा एस्पार्टेम को ‘ कैंसरकारी’ घोषित किया जा सकता है
14 जुलाई को इस सम्बन्ध में फैसला सार्वजानिक किया जायेगा
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक शाखा, इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (IARC ) द्वारा जुलाई में लोकप्रिय कृत्रिम स्वीटनर एस्पार्टेम को “संभवतः मनुष्यों के लिए कैंसरकारी” के रूप में लेबल करने की उम्मीद है।
क्या होता है एस्पार्टेम
एस्पार्टेम एक कृत्रिम स्वीटनर है जिसका उपयोग 1980 के दशक से चीनी के विकल्प के रूप में व्यापक रूप से किया जाता रहा है। 1965 में रसायनज्ञों द्वारा इसकी खोज की गई, इसने अपनी तीव्र मिठास और नगण्य कैलोरी सामग्री के कारण चीनी के कम कैलोरी विकल्प के रूप में लोकप्रियता हासिल की। एस्पार्टेम दो अमीनो एसिड, फेनिलएलनिन और एसपारटिक एसिड के साथ-साथ थोड़ी मात्रा में मेथनॉल से बना होता है। हालाँकि, इसके संभावित दुष्प्रभावों के बारे में चिंताएँ व्यक्त की गई हैं।
एस्पार्टेम, जो आहार कोका-कोला, अतिरिक्त च्यूइंग गम और कुछ स्नैपल पेय जैसे उत्पादों में पाया जाता है I RAC द्वारा सभी प्रकाशित साक्ष्यों के आधार पर संभावित खतरों के लिए मूल्यांकन किया जा रहा है। हालाँकि, खाद्य योजकों पर WHO की अलग समिति, JECFA, इस वर्ष एस्पार्टेम की भी समीक्षा कर रही है। 1981 से, JECFA ने यह सुनिश्चित किया है कि एस्पार्टेम का कुछ दैनिक सीमाओं के भीतर उपभोग करना सुरक्षित है।
इस दोहरी प्रक्रिया ने जनता के बीच भ्रम की चिंताओं को जन्म दिया है। 14 जुलाई को घोषित होने वाली दोनों समितियों के निष्कर्ष पूरक हैं, लेकिन उनके फोकस में अंतर से गलतफहमी पैदा हो सकती है। आईएआरसी मूल्यांकन कैंसरजन्यता को समझने में पहला कदम है, जबकि एडिटिव्स समिति विशिष्ट परिस्थितियों और जोखिम के स्तर के तहत नुकसान के जोखिम का आकलन करती है।
एस्पार्टेम का बड़े पैमाने पर अध्ययन किया गया है, और कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि कृत्रिम मिठास के अधिक सेवन से कैंसर का खतरा थोड़ा अधिक होता है। हालाँकि, इन अध्ययनों से यह निर्णायक रूप से सिद्ध नहीं हुआ है कि एस्पार्टेम कैंसर के खतरे को बढ़ाता है। IRAC का यह फैसला इस मामले पर और अधिक शोध को बढ़ावा दे सकता है, लेकिन इससे आईएआरसी की भूमिका और मिठास की सुरक्षा पर फिर से बहस शुरू होने की संभावना है।
हालाँकि कहा जा सकता है की विश्व स्वास्थ्य संगठन एस्पार्टेम पर अपना फैसला टाल सकता है या लंबित कर सकता है। क्योकि अरबो-खरबो रुपयों का वैश्विक बाजार जिसमे बड़े बड़े ब्रांड के सोडा ,फ्रूट ज्यूस ,चॉकलेट ,केन्डी ,शुगर फ्री टेबलेट व दवाइयों का व्यापार सभी प्रभावित होंगे। विश्व स्वास्थ्य संगठन दिखने को स्वास्थय के साथ लगता है। लेकिन हमेशा से पूँजीपतिवाद के आगे झुकता रहा है। क्योंकी खुद विश्व स्वास्थ्य संगठन की फंडिंग इन्ही बहुराष्ट्रीय कम्पनियो द्वारा की जाती रही है। ऐसे में एस्पार्टेम पर W.H.O. का क्रियाकलाप संदेह के घेरे में है। जिसमे यह सम्भावना भी जतायी जा सकती है की किसी नए कृत्रिम मिठास वाले तत्व को लाया जा सकता है। या पहले से मौजूद कृत्रिम मिठास वाले तत्व को बाजार में खपाने की तैयारी भी मानी जा सकती है। फ़िलहाल 14 जुलाई की घोषणाओं पर फ़ूडमेन की नजर रहेगी।
ब्लॉग
विटामिन A की डोज के बाद बच्चे की तबियत बिगड़ी
विटामिन A की डोज से लकवा होने का खतरा
नियमित रूप से लगाए जाने वाले टीकाकरण कार्यकर्म के अंतर्गत बच्चे को विटामिन A की खुराक दी गई
बीकानेर (राजस्थान) के गाँव श्री डूंगरगढ़ तहसील के बिग्गा गाँव में एक 9 महीने के बच्चे को विटामिन A की डोज देने के बाद बच्चे की तबियत बिगड़ गई। प्राप्त जानकारी के अनुसार बिग्गा गाँव के आंगनबाड़ी केंद्र में बच्चो को नियमित रूप से लगाए जाने वाले टीकाकरण कार्यकर्म के अंतर्गत बच्चे को विटामिन A की खुराक दी गई।
घर वापसी पर बच्चे को उल्टी व दस्त शुरू हो गई। एक दिन पश्चात् स्थानीय चिकित्सक को दिखाया। चिकित्सक ने भी बच्चे को सामान्य ही बताया। लेकिन तबियत ज्यादा बिगड़ने और बच्चे की आँखों में विकृति दिखने पर घर वालो ने उसे बीकानेर के एक निजी चिकित्सक को दिखाया।
जाँच के बाद बच्चे की रीढ़ में पानी होने का पता चला जो संभवतया विटामिन A की डोज देने के कारण हो सकता है।तथा देर से इलाज होने की स्थिति में बच्चे को लकवा भी हो सकता था। ज्ञात रहे की राजस्थान सर्कार द्वारा 5 से 9 माह के बच्चो को विटामिन A की कमी से दुष्प्रभावों से बचने हेतु ये योजना चलायी जा रही है।
फ़ूडमेन हमेशा से पोषण तत्वों को प्राकृतिक व जैविक लेने के पक्ष में रहा है। विटामिन को लेकर पहले से कई लेख फ़ूडमेन छाप चूका है।
जिनमे विटामिन के दुष्प्रभाव तथा एंटी विटामिन व सुडो विटामिन के बारे में सरल भाषा में समझाया गया है। आज भी हमारे देश में विदेशी रिसर्च के आधार पर विटामिन दिए जा रहे है। ऐसा नहीं है की बीकानेर का यह मामला दुर्लभ है।
कई बार विटामिन की डोज और वेक्सिनेशन के दौरान बच्चो की तबियत बिगड़ी भी है। कई मामलों में गंभीर परिणाम देखने को मिले है। लेकिन मिडिया द्वारा इन खबरों को प्रमुखता से नहीं दिखाया जाता है। ये खबर बीकानेर दैनिक भास्कर ने प्रमुखता से छापी है। लेकिन प्रशासन में इस को लेकर कोई हलचल नहीं है।
समाचार (देश/विदेश)
केंद्र सरकार ने पशुधन उत्पाद व परिवहन बिल अभी के लिए वापस लिया
कई पशु प्रेमी संगठन ,समाज व सेलिब्रिटी के विरोध को देखते हुए अभी के लिए वापस लिया गया बिल
पशु कल्याण मंत्रालय ने इसे महज प्रस्तावना बताते हुए जनता के फैसले के साथ होने का दावा किया।
भारत सरकार ने अपने लाइव स्टॉक बिल 2023 को फ़िलहाल के लिए वापस ले लिया गया है। ऐसा नहीं है की ये पहली बार हुवा है। इससे पहले भी सरकार ने अपने फैसले वापस लिए है या जिनको अभी तक के लिए ठन्डे बस्ते में डाल दिया गया हो। लेकिन यह फैसला भाजपा सरकार के चरित्र को लेकर आने वाले चुनाव में भारी नुकसान दे सकता है। इस लिए इस फैसले को तुरंत ही वापस ले लिया गया। केंद्र सरकार के अब तक वापस लिए बिलो में इस बिल की वापसी रिकॉर्ड तोड़ रही है। भारत सरकार ने अंग्रेजों के पशु परिवहन कानून का संशोधन करते हुवे जनता के विरोध को देखते हुए इस बिल को वापस लिया है।स्थानीय व राष्ट्रीय अखबारों में इस खबर को अलग अलग सांचो में ढाल कर जनता को समझने और सरकार की छवि क्षति प्रबंधन का नमूना आप महसूस कर सकते है।
बिल में क्या है ?क्यों सरकार के गले की फ़ांस बना यह बिल।
लाइव स्टॉक बिल 2023 में पशु धन को “कमोडिटी” शब्द का उपयोग किया हुवा है जिसके चलते धीरे धीरे पशुधन भी मात्र विनिमय की वस्तु बन कर रह जाएगी। विशेषज्ञों की माने तो ऐसे में भारत की संस्कृति पर ही बुरा असर देखने को मिलेगा। भारत में पशु मेलो के आयोजनों पर फर्क पड़ेगा और मांस के लिए पशुओ का वध और भी आसान हो जायेगा। वही इस बिल में पशुओ के यातायात करने की भी छूट मिल जाएगी।
लाइव स्टॉक बिल 2023 में पशुओ के निर्यात में जिन्दा पशुओ के निर्यात की भी बात कही गई है। साथ ही लाइव स्टॉक में कुत्ते बिल्ली घोड़े व अन्य कई किस्मो के पशुओ को जिन्दा निर्यात करने की बात कही गई है। जो पशु प्रेमी समाज में रोष का कारण बनी।
जिन्दा पशु का निर्यात करना मृत पशुओ के मांस को निर्यात करने की तुलना में सस्ता पड़ता है। क्योकि इसमें न ही प्रिजर्वेटिव मिलाने पड़ते है। न ही उपयुक्त पैकिंग का खर्चा और ना ही ठंडा रखने का खर्चा।
कुछ आदिवासी इलाको को छोड़ कर भारत में बंदरो घोड़ो और कई तरह के वन्य जीव किसी भी सामाजिक व्यवस्था में नहीं खाये जाते है।
लेकिन ताइवान चीन और अन्य एशियाई देशो में इनकी मांग है। चाइना में तो कुछ भी खा लेना वहां की संस्कृति है। ऐसे में भारत द्वारा और विश्व व्यापार संगठन (WTO) द्वारा अनुमोदित इस बिल का विरोध हर कोई कर रहा है। भारत के कई सेलिब्रिटी खिलाड़ी व कलाकारों ने भी इसका विरोध किया है।
भारत में दो तरह के पशु प्रेमी होते है। एक जो जिन्दा पशु के अधिकारों और उनके प्रति व्यवहार के लिए सक्रिय होते है। लेकिन किसी खास मौके पर ही बाहर निकलते है। दूसरे तरह के पशु प्रेमी पशुओं को मृत और भोजन के लिहाज से प्रेम करते है। उनको सिर्फ इस बात से ही फर्क पड़ता है की चिकन बिरयानी की जगह उन्हें कोई कौवा बिरयानी न खिला दे। एक तीसरे तरह के भी पशु प्रेमी होते है। जो इन दोनो तरहों का मेल यानी हाइब्रिड है। ये वो लोग होते है जो समय और मौके के हिसाब से पहले या दूसरे किस्म के पशु प्रेमी हो जाते है। इनका रेस्टोरेंट और होटल में अलग तरह का प्रेम व सार्वजनिक मंचों पर अलग तरह पशु प्रेम होता है।
देश भर में पहले से मांस व्यापार बहुत बदनाम है। कभी मटन के नाम पर कुत्ते का मांस तो कही गधे ,ऊँट आदि का मांस छोटे रेस्टोरेंट से लेकर अंतरास्ट्रीय नॉन-वेज रेस्टोरेंट तक में बेचा गया है।फ़िलहाल के लिए ये कहा नहीं जा सकता की किस तरह के पशु प्रेमी संगठन इस विरोध में ज्यादा सक्रीय है।
अभी के लिए लाइव स्टॉक बिल 2023 को वापस ले लिया गया है।