कंज्यूमर कार्नर
भोजन में छुपे जहर : अफ्लाटॉक्सिन (माइकोटॉक्सिन )फफुंदीय जहर
अफ्लाटॉक्सिन सूक्ष्म फफूंद या फफूंद अदि के बारे में आपने सुना होगा या पुरानी ब्रेड ,या रोटी व सड़े फल सब्जियों पर भी आपने इसे देखा होगा। इन्ही जमीनी सूक्ष्म फफूंद( fungus ,mold ) द्वारा उत्पादित उन जहरीले तत्वों को अफ्लाटॉक्सिन कहा जाता है जिनसे कैंसर व फ़ूड पॉइजनिंग , लिवर व जींस तक की सरचना को प्रभावित हो सकते है । ऐसे तत्व सभी खाने पीने की वस्तुओ में पाये जाते है जैसे दूध , अनाज ,दाले ,तिलहन सभी पर स्वतंत्र रूप से फफूंद व उनके द्वारा निर्मित फफुन्दीयविष अफ्लाटॉक्सिन सूक्ष्म व सिमित मात्रा में पाया जाता है।
आमतौर पर मानव व जंतु शरीर इनको झेल जाते है व इनके विरुद्ध प्रतिरक्षा प्रणाली विकसित है लेकिन आज के आधुनिक व अंधाधुंध रसायनो के इस्तमाल से इन फफूंद व इनके अफ्लाटॉक्सिन भी बदल गए है और घातक हो गए है एक सीमित सीमा से ज्यादा होते ही या शरीर के अंगो प्रभाव डालना शुरू कर देते है। कुछ खास फफूंद कुछ खास जगहों पर ही पाए जाते है। अफ्लाटॉक्सिन से दूषित भोजन को देख के या सूघ कर पहचाना जा सकता है लेकिन अगर उसमे कृत्रिम फ्लेवर हो तो वो आपके नाक और आंख दोनों को धोखा दे सकते है प्रोसेस फ़ूड कम्पनी वैसे तो बहुत ख्याल रखती है की अफ्लाटॉक्सिन न आये लेकिन इंसान तो गलतियों का पुतला है
अफ्लाटॉक्सिन को खाने से अलग करना बेहत ही मुश्किल व हाल फ़िलहाल में बहुत ही खर्चीली व लगभग असंभव जैसा ही है। इससे बचा जा सकता है।
अफ्लाटॉक्सिन का विज्ञान बहुत ही जटिल है हजारों तरह की फफूंद की किस्में हैं , कुछ का इस्तेमाल एंटी बॉटिक्स में कुछ का इस्तेमाल खेती में किया जाता रहा है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की पहली एंटीबायोटिक सन 1923 में पेनिसिलिन भी पेनिसिलियम मोल्ड की एक प्रजाति से ही विकसित की गई थी। आज भी पेनिसिलिन,सेफालोस्पोरिन ,ईरिथ्रोमाइसिन ,टेट्रासीक्लीन जैसी एंटीबायोटिक्स इन्ही सुक्ष्म फ़फ़ूँदो से संश्लेषित की जाती है फफूंद प्राकृतिक रूप से मृत जैविक प्रदार्थो के अपघटन का काम करता है खेती में इस्तमाल होने वाला ट्राईकोडरमा भी एक प्रकार की फफूंद ही है
अफ्लाटॉक्सिन जानलेवा भी हो सकता है 2003 में केन्या में 120 लोग मरे गए वही 2021 में अमेरिका में 70 से ज्यादा पालतू कुत्तो की मौत का कारण अफ्लाटॉक्सिन से दूषित पेट फ़ूड था जानवरो से मिलने वाले खाद्य प्रदार्थ अफ्लाटॉक्सिन से ज्यादा प्रभावित होते है जिसका मुख्य कारण उनको खिलाये जाने वाला भोजन ही है जानवरो के भोजन को लेकर अक्सर लोग ला परवाह और सस्ते के चलते न सिर्फ उनके स्वास्थ्य बल्कि हमारे स्वास्थय के लिए भी खतरनाक हो जाते है अफ़ला टोक्सिन से प्रभावित जानवर से प्राप्त दूध अंडे मांस आदि में मानक से अधिक अफ्लाटॉक्सिन पाया गया है।
FSSAI के द्वारा समय समय पर अफ्लाटॉक्सिन के लिए ग्राहक व निर्माता दोनों को दिशानिर्देश दिए है।
फ़ूड सेफ्टी स्टेंडर्ड रेगुलेशन 2011 में अलग अलग खाद्य प्रदार्थो में अफ़लाटोक्सिन की मात्रा की सीमा तय की गई है अधिक मात्रा में पाए जाने पर उस खाद्य प्रदार्थ को नष्ट करने का प्रावधान है । अफ्लाटॉक्सिन की सिमित मात्रा से अधिक मात्रा में खाद्य प्रदार्थ बेचने वालो के लिए जुर्मना या सजा या दोनों का भी प्रावधान किया गया है।
खाद्य शृंखला में माफिया और बड़ी बड़ी कम्पनियो की मनमानी के चलते कोई भी इन टोक्सिन का शिकार हो सकता है। इसलिए सजकता ही सार्थक है प्रोसेस फ़ूड विशेष टेट्रा अल्मुनियम पेकिंग में पैक पेय प्रदार्थ जिसको देखा न जा सके उसका उपयोग सावधानी से करना चाहिए। लिक या खुले पेकिंग के सामान खरीदने से बचे तथा पैक फ़ूड के स्वाद और गंध में थोड़ा भी फर्क महसूस करे तो उसे उपयोग में न ले।
कंज्यूमर कार्नर
तो क्या अब होटल रेस्टोरेंट में खाना खाने की पूरी वीडियोग्राफी जरुरी हो गई है ?
क्या हर पैकेज फ़ूड को अनपैक करते वीडियोग्राफी जरुरी हो गई है ?
तो क्या अब हर खाने पीने से पहले खाने की वीडियोग्राफी जरुरी हो गई है? ये बात हम इस लिए पूछ रहे है। क्यों की देश भर में पिछले कई महीनो से पैक्ड प्रोसेस फ़ूड और होटल रेस्टोरेंट आदि से खाने में जिन्दा कीड़े ,मरे हुवे कीड़े कॉकरोच ,चूहे ,छिपकली ,यहाँ तक की इंसानी उंगली तक के निकलने के विडिओ सोशल मिडिया में वाइरल हो रहे है। कुछ को फेक माना जा सकता है। या जानबूझ कर डॉक्टर्ड वीडिओ माना जा सकता है।लेकिन हर एक को नहीं।
वंदेभारत जैसी आधुनिक ट्रेनों के खाने में भी कॉकरोच ,कीड़े मिल रहे है। 18 जून 2024 भोपाल से आगरा जाने वाले भारत एक्सप्रेस में IRCTC द्वारा परोसे खाने में कॉकरोच निकला जिस पर रेलवे ने माफ़ी जरूर मांगी लेकिन कार्यवाही क्या हुई ?पता नहीं। पुणे में एक डॉक्टर की आइसक्रीम में इंसानी ऊँगली निकली। मामला हैरान करदेने वाला था। ऐसे ही गुजरात से कई विडिओ वायरल हुए जिनमे होटल रेस्टोरें के खाने में छिपकली और जिन्दा कीड़े खाने में पाए गए है।
लेकिन हर सच्चाई से मुँह नहीं मोड़ा जा सकता है।ऐसे में FSSAI पर उंगली उठना तथा स्थानीय खाद्य सुरक्षा विभाग पर उंगली उठाना जायज है। लेकिन उपभोक्ता विशेष कर पीड़ित उपभोक्ता क्या कर रहा है ? क्या रील बना कर सम्बंधित होटल रेस्टोरेंट या प्रोडक्ट का नाम रील में लेकर न्याय मिल जाता है। सम्बंधित होटल रेस्टोरेंट की पीड़ित उपभोक्ता को तुरंत क्षतिपूर्ति और माफीनामा न्याय है? रेस्टोरेंट कर्मचारियों द्वारा मारपीट ?
ये उपभोक्ता कानून व अधिकारों और खाद्य कानूनों की अवहेलना है। ऐसी घटनाओ में पीड़ित उपभोक्ता को मिली तुरंत क्षतिपूर्ति व माफीनामा संबंधित होटल और रेस्टोरेंट को भविष्य में भी ऐसी लापरवाहियां करने की छूट देती है। जिससे कोई सुधर की उम्मीद नहीं की जा सकती बल्कि यह ऐसी लापरवाही करने वालो के होंसले और बुलंद कर देती है। लेकिन क़ानूनी झमेले में कौन फंसना चाहता है। भारत का नागरिक न्याय के मुकाबले समझौता करना ज्यादा पसंद करता है।
दूसरा खाद्य सुरक्षा व उपभोक्ता कानून के लूपहोल्स होने की वजह से भी उपभोक्ता कोर्ट में चला भी जाये तो ठगा सा ही महसूस करता है। पैकेज फ़ूड का खुल्ला पैकेट सबूत नहीं माना जाता है। और न ही होटल रेस्टोरेंट के दूषित भोजन को कोर्ट में साबुत माना जाता है।
ऐसे में हर पैकेट की अनबॉक्सिंग और होटल रेस्टोरेंट में खाते समय पूरी वीडियोग्राफी की आवशयकता पड़ेगी। सरकार और FSSAI ने ऑनलाइन शिकायत की व्यवस्था तो की है लेकिन कोई त्वरित कार्यवाही नहीं होती है।और कोर्ट में सबूत के तौर पर वह संबंधित खाना या उत्पाद सुरक्षित नहीं रखा जा सकता। सिवाय FSL रिपोर्ट पर ही मुकदमा चलता है। जिसे आने में महीनों लग जाते है और अधिकतर मामलों में समझौता कर,डरा कर ,या लालच दे कर केस रफा दफा कर दिया जाता है।
ऐसे में उपभोक्ता अपनी शिकायत के साथ उपभोक्ता अदालतों में जाना नहीं चाहता है। और सरकार और जिम्मेदार खाद्य सुरक्षा विभाग अपनी तरफ से कोई खास कदम नहीं उठाते। हां ऐसे विडिओ वायरल करके उपभोक्ता मात्र संतुष्ट हो जाता है की उसने कुछ तो किया।
कंज्यूमर कार्नर
प्रोसेस फ़ूड लेबलिंग भ्रामक। ICMR जारी की अपनी रिपोर्ट।
ICMR ने कई चौंका देने वाले खुलासे किये।
हालही में ICMR ( Indian Council of Medical Research ) ने ये माना है। की प्रोसेस फ़ूड व कॉस्मेटिक की लेबलिंग भ्रामक हो सकती है। उनमे गलत सूचनाएं हो सकती है। जो की ग्राहक को भरमा सकती है। व उसके क्रय करने या खरीदने को प्रभावित कर सकती है।
ICMR ने अपनी रिपोर्ट में कहा है की बाजार में उपलब्ध ग्राहकों को रिझाने के लिए अपने कई दावों को उत्पाद पर इस तरह प्रदर्शित करता है। जिससे ग्राहक उत्पाद को खरीद ले। जैसे शुगर फ्री,प्रोटीन ,या कई तरह के पोषक तत्वों या कुछ पोषक खाद्य जैसे काजू ,बटर ,बादाम आदि को उत्पाद के ऊपर प्राथमिकता दर्शाया जाता है। जबकि उनकी उपस्थिति नाम मात्र ही होती है। इन्हीं बिंदुओं को लेकर एक सर्वे में ICMR ने यह रिपोर्ट जारी की है।
ICMR ने कई चौंका देने वाले खुलासे तो किये है। लेकिन इन खुलासों के बाद भी FSSAI द्वारा कोई सफाई या FSSAI द्वारा कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं की गई।
जबकि FSSAI के लेबलिंग को लेकर एक सख्त कानून है व साफ साफ दिशानिर्देश है।हालही में विदेशों में भारतीय मसाला कंपनी एवरेस्ट व एमडीएच के मसालों के रिकॉल होने के बाद FSSAI की नीतियों और जिम्मेदारियों पर उंगलियां उठी। जिसे लेकर FSSAI ने आनन फानन में सभी मसाला कंपनियों के लिए जांच और सैम्पलिंग करना शुरू कर दिया। यानी के सैकड़ों चूहे खा कर बिल्ली हज जाने की इच्छा मात्र ही रखती है।
ये मानने में कोई हर्ज नहीं की FSSAI के कानून व प्रावधान साफ साफ विदेशी व अंतरास्ट्रीय फ़ूड कानूनों की नक़ल मात्र है। फर्क सिर्फ पालना करवाने और बड़े निर्माताओं के लिए कानूनों में ढील व बचाव के प्रावधानों को कानून में शामिल करना है।
जैसा की आप देख सकते है की FSSAI के लेबलिंग के कानूनों के तहत किसी भी खाद्य प्रदार्थ पर जिसमे प्रिजर्वेटिव व अन्य संरक्षक पदार्थ मिले होते है उनके लिए ताजा या फ्रेस नहीं लिखा जा सकता है। तो इसके कानून से बचाव के लिए निर्माता अपने उत्पाद का नाम ही ताजा या फ्रेश मुख्य नाम के आगे पीछे लगा कर अपने उत्पाद की लेबलिंग बनाता है। जैसे किसान फ्रेश या ताजा चाय ,तथा ताजा फलों या सब्जियों को फोटो लगा कर फोटो के नीचे या कहीं किसी कोने में सांकेतिक या प्रतीकात्मक फोटो लिख कर FSSAI के उत्पाद संबंधी भ्रामक तस्वीरों न लगाने के कानून से भी बचा जाता है। जो आप लोग कई उत्पादों विशेषकर फ्रूट ज्यूस व फलो संबंधी उत्पादों पर देखे जा सकते है।
इसी तरह किसी भी FSSAI प्रिज़र्वेटिव ,एसिड रेगुलेटर आदि उत्पाद संरक्षकों की मात्रा सीमा तय है। लेकिन ऐसे पदार्थो की संख्या कितनी होनी चाहिए यह तय नहीं है। यानि की किसी एक प्रिज़र्वेटिव की मात्रा तो तय है लेकिन कितने तरह के प्रिजर्वेटिव उपयोग किये जा सकते है। यह तय नहीं है। ऐसे खाद्य पदार्थों के सेवन की सीमा भी तय होती है। जो की उत्पाद के लेबलिंग पर एक सर्विंग की मात्रा में दर्शाया जाता है। लेकिन बड़ी ही चालाकी से उसी के साथ 100 ग्राम की न्यूट्रिशनल इन्फॉर्मेशन के साथ दर्शा कर भ्रमित कर दिया जाता है।
इन लेबलिंग छलावरण को लेकर फ़ूडमेन प्रखरता व प्रमुखता से अपने पाठको को बताता आया है। अब ICMR ने भी इन्ही फ़ूड प्रोडक्ट की लेबलिंग में भ्रामकता और पर्देदारी को लेकर अपनी राय प्रकट की है। हालाँकि FSSAI ने इसको लेकर कोई जवाब नहीं दिया है। भविष्य में आने वाली केंद्र सरकार की और ही देखा जा सकता है।
वैसे सोचने की बात है। आज हर घर में जीवनशैली सम्बन्धी रोगो के रोगी मिल जाते है। जिनके रोगो का प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से प्रोसेस फ़ूड से सम्बन्ध है। व हजारो रूपए की दवा आज हर घर के राशन की लायी जाती है। फिर भी जनता का ध्यान पैकेज प्रोसेस फ़ूड व फ़ूड सेफ्टी की तरफ शून्य है।
कंज्यूमर कार्नर
फ़ूड डिलीवरी एप्प जोमेटो से आये दूषित केक से मासूम की मौत।
चेक करें आप क्या आर्डर दे रहें है। कही आप भी तो नहीं मंगवा रहे है दूषित केक ऑनलाइन।
पटियाला (पंजाब ): एक 10 साल की बच्ची की अपने ही जन्मदिन पर दूषित केक खाने से हुई फ़ूड पॉइजनिंग के चलते मौत हो गई।
परिवार के अन्य लोगो को भी फ़ूड पॉइज़निंग हुई लेकिन मासूम 10 दस वर्षीय बच्ची ही मौत का शिकार बनी। परिवार वालो का कहना है की उन्होंने ऑनलाइन फ़ूड डिलीवरी एप्प जोमेटो से केक का आर्डर दिया था, जो कि “केक कान्हा” नाम की दुकान से आया था।
हालाँकि पुलिस कार्यवाही में जोमैटो पर दिए केक कान्हा का एड्रेस गलत पाया गया। लेकिन एक बार फिर से केक ऑर्डर करने पर सही एड्रेस का पता चला तथा पुलिस ने बैकरी में कामगार तीन लोगो को गिरफ्तार है। बेकरी मालिक अभी तक फरार बताया जा रहा है। ये जोमेटो द्वारा घर पर खाना पहुंचने और फ़ूड पॉइज़निंग का यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी जोमेटो के अधिकृत फ़ूड सप्लायर या वेंडर्स के खाने से फूड पॉइज़निंग और मौतों की खबरे आ चुकी हैं ।
लेकिन खास कारणों के चलते इन्हे देश व्यापी विशेष हिंदी मीडिया संस्थान ऐसी खबरों को प्रकाशित नहीं करता। ये खबर सिर्फ पंजाब के अखबारों तक ही सीमित रहती ,लेकिन सोशल मीडिया के चलते यह खबर देश भर में वायरल हो गई तथा केक खाने वालो में एक बार सनसनी ही छूट गयी।
केक आज कल हर उत्सव को मानने का एक नया सा फैशन बन गया है। भारतीय परम्पराओं में मुंह मीठा करवाने की परम्परा रही है इसी को लेकर केक व चॉकलेट आज बाजार में विज्ञापित किये जाते है। आज जन्मदिन ,शादी की सालगिरह ,या सक्सेज पार्टी आदि में जम कर केक काटने खाने और खिलाने और लगाने का फैशन बना हुआ है।
हालाँकि पटियाला पुलिस और बच्ची के घरवालों का केक पर फूडपॉइज़निंग का आरोप फ़िलहाल जाँच का विषय है। वैसे जन्मदिन में केक के अलावा और भी बहुत कुछ खाया गया होगा। या बाहर से मंगवाया भी गया होगा। या घर में ही कुछ बनाया होगा जिसको लेकर भी जांच होनी चाहिए। इसमें सिर्फ “केक कान्हा” के साथ साथ जोमैटो को भी जांच के दायरे में लेना चाहिए।
पुलिस ने साफ साफ बताया कि जोमैटो पर दिए पते पर केक कान्हा की दुकान नहीं मिली। फिर दूसरा ऑर्डर करने पर डिलीवरी में से पूछे जाने पर एड्रेस का पता चला। ये जोमैटो की जिम्मेदारी है की वो अपने वेंडर की पूरी तरह से छानबीन करे तथा साफ सफाई और हाइजीन का भी ध्यान रखे । पिछले साल ही जोमैटो ने आदर्श खाद्य प्रदार्थ के लिए अपनी शर्ते रखी थी।
लेकिन वो भी FSSAI की तरह सिर्फ एक समाचार और इवेंट ही साबित हुआ ।
बरहाल एक बच्ची की जान ऑनलाइन फ़ूड सप्लाई एप्प जोमैटो से आये केक के खाने हो चुकी है। पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार है। अब ये देखना होगा कि आम आदमी पार्टी की सरकार क्या कदम उठाती है।केरल सरकार ने कॉटन कैंडी पर प्रतिबंध लगाया है। वैसे भी हर साल देश में जंहा सेंकडो लोगो की मौत फ़ूड पॉइज़निंग से हो जाती है। लेकिन ये वाकया भी हमारे सरकारी तंत्र को कुछ सीखा के नहीं जायेगा।
जोमाटो भी अपनी सेवा में कमी के चलते जब बच्ची के परिवार से ये जिरह भी कर सकता है कि केवल केक से ही बच्ची मरी है क्योंकि फ़ूड संदूषण में बीमारी या मौत को साबित करना इतना आसान नहीं है।
कंज्यूमर कार्नर
प्रसाद। सनातन परम्परा की एक अटूट आस्था।
आशीर्वाद स्वरूप प्रसाद आपके लिए जानलेवा न हो जाये।
डॉ भोज राज सिंह ,वरिष्ठ वैज्ञानिक, IARI, बरेली
प्रसाद सनातन धर्म के अनुसार भगवान व देवताओ को पूजा पद्धति में भेंट में चढ़ाये चढ़ावे को कहते है। और हर भारतीय प्रसाद के बारे में जनता है। प्रसाद सिर्फ सनातन धर्म तक ही सिमित नहीं है। बल्कि हर धर्म में प्रसाद को लेकर मान्यता है।
भारतीय मंदिरों व अन्य धार्मिक स्थलों पर प्रसाद तीन तरह के होते है।
(1 ) चढ़ावा -खरीद कर चढ़ाया गया चढ़ावा। इस तरह का चढ़ावा ज्यादा चलन में है। इसमें भक्त अपनी क्षमता के अनुसार प्रसाद सामग्री बाजार से खरीद कर चढ़ा देता है। जिसमे से पुजारी या मंदिर कर्मी उसे उसी के द्वारा लायी गई सामग्री को चढ़ा कर बाकी सामग्री वापस दे देता है।
(2 )भोग -भोग भगवान को समर्पित मंदिर की रसोई घर में बने भोजन व खाद्य सामग्री को कह सकते है। जिसमे मंदिर कर्मचारी व स्वयंसेवी भगवन के लिए बड़ी मात्रा में भोजन तैयार करते तथा बाद में जनता को खिला दिया जाता है। इस तरह के भोग का चलन दक्षिण भारतीय मंदिरो में ज्यादा देखा गया है।
(3 )भंडारा –
इस तरह के भंडारा आयोजनों में भक्तों द्वारा ही मंदिर परिसर या आस्था के नाम पर आम जनता को दावत दी जाती है। जिसकी व्यवस्था किसी एक व्यक्ति या ज्यादा व्यक्तियों या चंदे आदि से आयोजन होता है।
ये ही भोज्य आयोजन होते है जहाँ प्रसाद दूषित या संक्रमित होने की सम्भावना बनी रहती है।
हर साल ऐसे सैंकड़ो आस्था आयोजन होते रहते है जहां फ़ूड पोइज़निंग के मामले देखे गए है। जिसकी मुख्य वजह किसी एक व्यक्ति का जिम्मेदार ना होना होता है। अधिकतर सामूहिक लोगो ऐसे आयोजन किये जाते है। जो चंदा एकत्र कर आयोजन करवाते है। तथा प्राय पैसे बचाने के चक्कर में भोजन की सामग्री की गुणवत्ता के साथ समझौता कर लेते है। और परिणाम स्वरूप सामूहिक फ़ूड पॉइज़निंग के मामले सामने आते है
साल 2023 में सामूहिक फ़ूड पॉइज़निंग के मामले
30 दिसंबर पश्चिम बंगाल के कूंच बिहार के एक धार्मिक समारोह में प्रसाद खाने के बाद 65 लोगो को फ़ूड पॉइज़निंग हो गई। रात 9 बजे के आसपास भक्तो को खिचड़ी और पोहा (चिरा ) परोसा गया था।
25 दिसंबर -बेंगलुरु ,ग्रामीण सीमा के होसकोट में प्रसाद के सेवन के बाद हुई फ़ूड पॉइज़निंग से 70 लोगो को अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा जिसमे एक महिला की जान चली गई। स्थानीय प्रशासन ने जांच करने को लेकर आश्वासन दिया है।
24 मई राजस्थान के अलवर जिले के खेड़ली थाना क्षेत्र में एक कुआ पूजन कार्यकर्म में 150 से ज्यादा लोगो को फ़ूड पॉइज़निंग हो गई। बताया जा रहा है की इस पूजन कार्य कर्म में दाल बाटी चूरमा जैसे पारम्परिक व्यंजनों को परोसा गया था।
18 मई यूपी के फर्रुखाबाद में श्रीमद्भागवत कथा के भंडारे में खीर व पंचामृत व प्रसाद बनता गया। कुछ ही देर बाद कई ग्रामीणों को उल्टी दस्त जैसी शिकायते होने लगी। करीब 70 से अधिक लोगो को भर्ती करवाया गया है। जांच जारी है ?
3 अगस्त छत्तीसगढ़ के कांकेर जिला के सबलपुर में एक मंदिर में प्रसाद स्वरूप हलवा व ठंडाई के कारन लगभग 170 से अधिक श्रद्धालुओ को फूडपॉइज़निंग हो गई। सुचना मिलते ही प्रशासन में स्वस्थ्य शिविर लगा कर पीड़ितों का ईलाज किया। जांच जारी है ?
7 जुलाई असम के धेमाजी जिले के जोनाई इलाके के एक धार्मिक समारोह में प्रसाद खाने के बाद 80 से ज्यादा लोगो को फ़ूड पॉइज़निंग हो गई। जाँच जारी है ?
8 मई पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले में बुद्ध पूर्णिमा के आयोजन में प्रसाद खाने से 60 लोग बीमार हो गए तथा एक की मौत हो गई।
उपरोक्त ऐसी घटनाये है जिसको लेकर अखबारों में समाचार छपे थे। ऐसे बहुत से भंडारे देश भर में लगाए जाते रहते है। जहां किसी की लापरवाही दर्जनों लोगो का स्वास्थ्य व जान संकट में आ सकती है।
ऐसे खुले आयोजनों में किसी की जिम्मेवारी तय नहीं होती है। भक्त अपनी आस्थाओं के जिम्मे ही रहता है। व सरकार व प्रशासन द्वारा भी ऐसे आयोजनों पर कोई नियमन नहीं है।
हालाँकि FSSAI द्वारा भोग BHOG (Blissful Hygienic Offering to God ) प्रमाणपत्र जारी किया जाता है। जो सिर्फ उन्ही मंदिर या ट्रस्ट व संस्थाओ को दिया जाता है। जो खुद के परीसर की रसोई में भगवान व भक्तों के लिए खाद्य पदार्थ बनाते हो। अब तक सबसे ज्यादा दक्षिण भारत में भोग प्रमाणपत्रों का वितरण किया गया है।तथा भारत के कई मठ ,मंदिर ,व गुरुद्वारो को भी भोग प्रमाणपत्र दिए गए है।
लेकिन भंडारों व सामूहिक भोज आदि में आम जनता व भक्तों की खाद्य सुरक्षा के लिए FSSAI द्वारा व सरकार व प्रशासन द्वारा कोई कदम नहीं उठाये गए है। और ना ही भविष्य में ऐसे कोई नियमन लागू किये जायेंगे। ऐसे में अपनी आस्थाओं के बल पर ही भण्डारो का खाना राम भरोसे ही रहेंगे।
कंज्यूमर कार्नर
खतरनाक होती खांसी की दवा।
खांसी की दवा लेते समय सावधानी जरुरी है।
भारत में खांसी की दवा चिकित्सीय सलाह से ज्यादा विज्ञापन व खुद से ही खरीदी जाती है। कुछ खांसी की दवा तो नशे के लिए भी काम में ली जाती है। दवा की मात्रा एक समय के लिए हमेशा निश्चित होती है। लेकिन कई कारणों या नशे के लिए कई दवाओं की निश्चित मात्रा से चार से 8 गुणा तक ली जाती है। जो हमेशा से ही जानलेवा व स्वास्थ्य के लिए खतरनाक रही है।
भारत सबसे ज्यादा जेनरिक दवाओं का निर्यातक है। हाल ही के दो वर्षो में विदेशो में निर्यात की गई खांसी की दवा से कई बच्चो के मरने के चौंका देने वाले समाचार आये जिसे लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भारत को तथा भारत से निर्यात होने वाली दवाओं पर चेतावनी जारी कर दी थी।
जिसमे दक्षिण अफ्रीका के गाम्बिया में खांसी की दवा से 66 बच्चो के कथित रूप से मरने का आरोप भारतीय कम्पनी पर लगाया गया था। तथा इसी साल जनवरी में उज्बेकिस्तान सात बच्चो की मौत के लिए भारतीय कंपनी की खांसी की दवा पर आरोप लगाए गए थे। हालाँकि भारत ने इन आरोपों से इंकार किया है। लेकिन अब भारत खुद अपने निर्यात होने वाली दवाओं विशेष कर खांसी की दवा के लैब टेस्ट अनिवार्य कर दिया है। जिसके चलते हालही में 54 निर्माताओं के खासी की दवाओं के नमूने निर्धारित गुणवत्ता में विफल पाए गए।
केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO)ने कई राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में सरकारी लेब में लगभग 2014 नमूनों की जांच की गई। जिसमे से 128 यानी 6 % नमूने गुणवत्ता में विफल हो गए।
सरकारी रिपोर्ट के अनुसार फार्माकोपिया आयोग ,गाजियाबाद (यूपी ) में 502 नमूनों का परीक्षण किया गया जिसमे से 29 नमूने विफल रहे। गुजरात लेब में हुवे 385 नमूनों में से 51 नमूने विफल हुए। यह टेस्ट देशभर की सरकारी लैब जिसमे केंद्रीय औषधि प्रयोगशाला ,कोलकाता, चेन्नई ,हैदराबाद ,चंडीगढ़ ,गुवहाटी ,आदि में परीक्षण के लिए खांसी की दवा के नमूने भेजे गए। इन नमूनों में से लगभग 6 प्रतिशत नमूने विफल हुवे।
हालाँकि अभी तक दवा के नमूने फ़ैल करने के कारण सार्वजानिक नहीं किये गए है।
विडम्बना ये है की भारत से निर्यात किये जा रही खांसी की दवा को ही इस परीक्षण के दायरे में लाया गया है। भारत अपने घरेलू उपभोक्ता के लिए ऐसे लैब टेस्ट गंभीरता से नहीं करवा रहा है। या लापरवाही ,उदासीनता और मिली भक्ति से देश के नागरिक दवा मानक से कम या घटिया दवाओं के सेवन के लिए मजबूर है। इसी साल नकली दवाओं बनाने और बेचने वालो पर छापे मारी में करोडो की नकली व घटिया दवाये जप्त की गई। बाजार में हर 10 दवाओं में से एक दवा के नकली होने की आशंका बनी रहती है।
खांसी की दवा एक सामान्य दवा है जो सीधे ही दुकान से कोई भी खरीद और बेच सकता है। वही आयुर्वेदिक और होमियोपैथिक ,वा यूनानी दवाओं के नाम पर भी कई नशीली जड़ीबूटियों का उपयोग लम्बे समय से हो रहा है। तथा आम जनता में भी खांसी के इलाज को लेकर गंभीरता नहीं है। और न ही खांसी की दवा की मात्रा व लेने के तरीके को लेकर कोई विशेष ज्ञान है। चम्मच या ढक्कन व पानी में घोल कर दवा लेने का तरीका ही विलुप्त हो चूका है।
अब हर कोई दवा की बोतल से ही दवा लेना पसंद करता है। ऐसे में दवा की मात्रा और दवा लेने का समय को ध्यान में ही नहीं रखा जाता है। ऐसे में खांसी के दवा के दुष्प्रभाव होना एक सामान्य घटना है जो कई लोगो को महसूस होती है और कई लोगो को नहीं होती है। बाजार में उपलब्ध खांसी की दवा में मुख्य औषधीय तत्वों की मात्रा बताई जाती है।खांसी की दवा या अन्य लिक्विड दवा में फ्लेवर व मिठास के लिए तत्वों की जानकारी फ्लेवर्ड शुगर बेस ((Flavoured syrupy base) लिख कर छिपा दी जाती है।तथा दवा में उपयोग हुवे अन्य अवयवों की भी जानकारी नहीं होती है।
खांसी की दवा को हमेशा चिकित्सकों की देखरेख में ही लेवे ,विशेषकर बच्चो की दवा। रेडीमेड आयुर्वेदिक नुस्खों की दवा लेने से बचे। घरेलू व प्राकृतिक नुस्खों को काम में लेवे।
कंज्यूमर कार्नर
FSSAI ने जारी किये बारकोड में सूचना देने के दिशानिर्देश।
डिजिटल इंडिया में कस्टमर पढ़ेंगे बारकोड वाले फ़ूड लेबल
अब बारकोड में ही पैकेज्ड फ़ूड के निर्माता की सुचना।
बारकोड यानी किसी भी उत्पाद की सघन जानकारी जो खड़ी लकीरो में देखी जा सकती है। इसे विशेष स्कैनर से स्कैन उत्पाद की सभी जानकारियाँ प्राप्त की जा सकती है। जैसे उत्पाद में क्या क्या सामग्री है। कब बनी है। कब इसके उपयोग की अंतिम तारीख है। इसे कौन मार्केटिंग कर रहा है। व कौन इसका निर्माता है। हालाँकि बारकोड के अलावा यह जानकारियां उत्पाद के पीछे लिखी जाती रही है अब तक।
अब FSSAI ने एक नया संशोधन करते हुवे कई जानकारियों को जो पहले उत्पाद के पीछे लिखा होना जरुरी था। उन्ही जानकारियों को बारकोड में सिमित करने जा रही है। मतलब ये की खाद्य उत्पाद के पीछे लिखे निर्माता की जानकारी अब आपको बारकोड में मिलेगी।
FSSAI व स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ( MOHFW ) अब यह मानने लगा है। की सभी भारतीय स्मार्ट फोन व सभी स्मार्ट फोन स्मार्ट बारकोड स्कैनर से सुसज्जित हो चुके है। जिससे उनको किसी भी खाद्य व पैकेज्ड खाद्य उत्पाद की जानकारी के लिए बारकोड को स्कैन कर जानकारी प्राप्त कर सकते है। और ये सभी अंग्रेजी भाषा को पढ़ लिख और समझ भी सकते है।
ऐसे में उत्पाद पर लिखी सूचनाओं को छिपाने की कोशिश की जा रही है। जो कही न कही से उपभोक्ता के साथ छल है।
ऐसे में प्रश्न ये भी उठता है। की जो खाद्य प्रदार्थ छोटी पैकिंग में आते है। क्या उनका बारकोड काम करेगा। या आपके मोबाइल से उसे स्कैन किया जा सकता है। एक बार फिर से FSSAI का ये संशोधन कॉर्पोरेट के हितो को लेकर लिया गया लगता है। क्यों की यह किसी भी तरह से उपभोक्ता जागरूकता का मामला नहीं लगता। बल्कि यह तो उपभोक्ताओं को और भी अँधेरे में रखेगा।
विडम्बना ये है की यह नियम या संशोधन सिर्फ भारत के अंतर्गत बिक्री के खाद्य पदार्थों पर ही लागू रहेगा। और निर्यात के लिए इन सभी निर्माताओं को पहले की तरह ही अपने उत्पाद की जानकारी पूर्ण रूप से उत्पाद की पैकिंग पर छापनी होगी। ऐसे में FSSAI के अधिकारियो की नियत पर शक होना लाजमी हो जाता है।
फ़िलहाल पैकेज्ड खाद्य उत्पादों की पैकिंग से उत्पाद के निर्माता की जानकारी ही हटा कर बारकोड तक सिमित की गई है। जो भविष्य में और भी कई जानकारियों पर लागु हो जाएगी।
आज भी उपभोक्ता अपने उत्पाद की जानकारी के लिए विज्ञापनों पर ही निर्भर रहता है। ऐसे में बारकोड में जानकारी देना। उपभोक्ता को और भी अँधेरे में ले जायेगा। तथा ऐसे संसोधनो से उपभोक्ता और उत्पाद की जानकारी के बिच की खाई और बढ़ेगी।
फ़िलहाल पैकेज्ड खाद्य उत्पादों की पैकिंग से उत्पाद के निर्माता की जानकारी ही हटा कर बारकोड तक सिमित की गई है। जो भविष्य में और भी कई जानकारियों पर लागु हो जाएगी।
आज भी उपभोक्ता अपने उत्पाद की जानकारी के लिए विज्ञापनों पर ही निर्भर रहता है। ऐसे में बारकोड में जानकारी देना। उपभोक्ता को और भी अँधेरे में ले जायेगा। तथा ऐसे संसोधनो से उपभोक्ता और उत्पाद की जानकारी के बिच की खाई और बढ़ेगी। तथा और भी कई नई तरह के दिशा निर्देशों से मौजूदा खाद्य सुरक्षा नियम व सविधान को बदला जायेगा।
जो की किसी भी उपभोक्ता के लिए विशेषकर जागरूक उपभोक्ताओं के लिए एक नई समस्या को उत्पन्न करेगा। और इसी तरह के दिशा निर्देश अन्य उत्पादों पर भी लागु किये जा सकते है। जिसमे इलेक्ट्रॉनिक्स ,हर्ड वेयर आदी पर भी ऐसे ही दिशानिर्देशों के नाम पर नियम तंत्र को उदासीन किया जायेगा।
ऐसे में खाद्य जनचेतना ,उपभोक्ता जागृति मंचो और उपभोक्ता संरक्षण करने वाले लोगो ,NGO ,व संस्थाओं को आगे आ कर ऐसे संसोधनो को वापस लेने और इन संशोधनों पर प्रतिक्रिया देते हुवे। आम नागरिकों को भी अवगत करवाना चाहिए। की कैसे आम नागरिकों से उनके उपभोक्ता अधिकारों की दबाया जा रहा है।
फ़ूडमेन हमेशा से खाद्य उत्पादों की पैकिंग पर स्थानीय भाषा या हिंदी भाषा के उपयोग को लेकर वकालत करता आया है। और FSSAI के इस संसोधन पर कड़ी आपत्ति व्यक्त करता है।
कंज्यूमर कार्नर
फ़ूड रिकॉल क्या होता है। और क्यों जरुरी है।
फ़ूड रिकॉल और खाद्य सुरक्षा में भारत फिसड्डी क्यों है।
फ़ूड रिकॉल का मतलब होता है की किसी भी फैक्ट्री मेड या पैक्ड या कोई भी खाद्य सामग्री जो किसी भी रूप से दूषित हो गई तथा किसी भी रूप से मानव जीवन के लिए खतरनाक हो गई हो सकती है। उस खाद्य पदार्थ को बाजार से वापस लाने की प्रक्रिया को फूड रिकॉल या उत्पाद वापसी कहते है।बाजार में उपलब्ध पैकेज फ़ूड और प्रोसेस फ़ूड जो फैक्ट्रीज में बड़ी मात्रा में उत्पादित होते है। वो किसी भी वजह से दूषित हो सकते है। जिनमे ख़राब क्वालिटी के कच्चे माल ,या मशीन में किसी पुर्जे या कोई बाहरी तत्व या खाद्य संदूषको से प्रदूषित होने का खतरा बना रहता है। और कई बार मानवीय भूल या मशीनों की गड़बड़ी से भी खाद्य प्रदार्थ दूषित हो सकते है। जो मानव उपयोग के लिए सुरक्षित नहीं होते है।
हालाँकि प्रोसेस और नॉन प्रोसेस खाद्य पैकेट में पैक करने वाली फैक्ट्री में खाद्य सुरक्षा का ध्यान अनिवार्य रूप से रखना होता है। लेकिन किसी भी कारण खाद्य पदार्थों में कोई अतिरिक्त सामग्री हो जाने से खाद्य पदार्थ खाने लायक नहीं रहता तो इसकी जानकारी होते ही खाद्य प्रदार्थ का रिकॉल किया जाना चाहिए। जो स्वयं कोई फैक्ट्री या कंपनी कर सकती है या खाद्य विभाग द्वारा अनिवार्य रूप से करवाई जा सकती है। अधिकतर मामलों में खाद्य सुरक्षा एजेंसियों द्वारा ही यह अनिवार्य प्रक्रिया काम में ली जाती है।
भारत में फ़ूड रिकॉल के लिए FSSAI नियुक्त है। फ़ूड प्रोडक्ट्स के नियमन व रिकाल करने के लिए FSSAI स्वतंत्र एजेंसी है। फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI) ने फूड बिजनेस ऑपरेटर को लिखित में बताया गया है। कि अगर कोई फ़ूड निर्माता कंपनी रिकॉल ऑर्डर मानने से इनकार करती है तो संबंधित फूड अथॉरिटी उसके खिलाफ एक्शन ले सकती है।
कंपनियों को भेजे गए नोट में FSSAI ने लिखा है, ‘रिकॉल ऑर्डर के उल्लंघन के लिए जवाबदेह फूड बिजनेस ऑपरेटर होंगे।’ रेगुलेटर ने इस मामले में कंपनियों से उनकी सलाह और प्रतिक्रिया भी मांगी थी। रेगुलेटर ने कहा, ‘रिकॉल प्लान लिखित में होना चाहिए और फूड अथॉरिटी के मांगे जाने पर इसे उपलब्ध भी कराया जाना चाहिए।तथा यह फूड बिजनेस के वार्षिक ऑडिट का हिस्सा होगा।’
FSSAI ने अपने दिशानिर्देश कहा कि एक बार रिकॉल शुरू होने के बाद रिटेलर्स को तुरंत दुकान से वह प्रॉडक्ट हटा लेना चाहिए और मैन्युफैक्चरर, इम्पोर्टर या होलसेल को रिटर्न करना चाहिए। वहीं, कंपनियों को कंज्यूमर्स को इस बारे में प्रेस रिलीज, लेटर और विज्ञापनों के जरिए जानकारी देनी होगी । कंपनियों को संबंधित अथॉरिटी को ‘रिकॉल स्टेटस रिपोर्ट’ देकर उसे ताजा हाल की जानकारी देते रहना होगा । यह कम से हफ्ते में एक बार किया जाए।
फ़ूड रिकॉल सरकार और खासतौर पर इसके कंज्यूमर्स के हित में है। क्यों की किसी बड़ी कम्पनी के खाद्य उत्पाद अपनी सप्लाई चैन द्वारा बहुत जल्दी ही देश के कोने कोने तक पहुंच जाते है। ऐसे में अगर किसी खाद्य पदार्थ में कोई बड़ी लापरवाही हो जाये तो फ़ूड रिकॉल करना थोड़ा मुश्किल रहता है। ऐसे में फ़ूड रिकॉल की प्रक्रिया अपनानी ही पड़ती है।
फ़ूड रिकॉल यूरोपियन देशो में होना आम बात है। यहाँ पैक्ड फ़ूड को लेकर खाद्य सुरक्षा एजेंसिया बहुत सतर्क रहती है। निर्माता कितना भी बड़ा हो या छोटा पैक्ड फ़ूड में जरा सी गड़बड़ पाये जाने पर तुरंत फ़ूड रिकॉल कर लिया जाता है।
भारत में फ़ूड रिकॉल के गिने चुने केस मिलते हैं। मैग्गी के रिकॉल के बाद से फिर कोई बड़ी घटना नहीं घटी। कंपनी रेगुलेटर को रिकॉल का ड्रामा जरूर करती हुई जरूर नज़र आ सकती है। किन्तु असल में वो अपना व्यापार वैसे ही करना जारी रखती है।
भारतीय खाद्य सुरक्षा एजेंसियों ,स्थानीय अधिकारियो खुद ही खाद्य सुरक्षा को लेकर गंभीर नहीं है। सिर्फ त्योहारी सीजन में छोटी छोटी दुकानों या फैक्ट्री पर छापेमारी की जाती है। और दूषित खाद्य को नष्ट करवा दिया जाता है। कार्यवाही के नाम पर जुर्माना लगा दिया जाता है। और कोई विशेष कार्यवाही नहीं की जाती है। ऐसे में बड़े कॉरपोरेट हॉउस जिनके सम्बन्ध बड़े अधिकारियो और मंत्रियो तक होते है। वो अपने उत्पादों का रिकॉल होने ही नहीं देते है। और उपभोक्ता ठगा सा ही रह जाता है।
कंज्यूमर कार्नर
हिन्दू आस्थाओ पर चोट करती पैकेट बंद उपवास सामग्री
पैकेट बंद उपवास सामग्री से दूषित होता सनातन उपवास
पैकेट बंद उपवास सामग्री आज हमारे देश में फैशन या मज़बूरी हो गया है। उपवास सनातन धर्म में और विशेषकर महिलाओ में सामान्य एक धार्मिक कार्यक्रम है जिसे महिलाये अपनी श्रद्धा और परिवार की सुख सुविधा के लिए ईश्वर के प्रति धन्यवाद व आस्था जताने और धार्मिक पर्वो में किया करती है। सिर्फ महिलाये ही नहीं पुरुष और बच्चे भी बड़े त्योहारों में एक समय का अन्न त्याग कर भगवान और धर्म के प्रति अपनी भूमिका निभाते है।
बाजारवाद के इस युग में मानवता को ताक पर रख कर शिशुओं के डब्बा बंद भोजन में हानिकारक तत्व खाद्य संरक्षण के नाम पर मिला कर बेचे जाते है। वहा धर्म और धार्मिक कार्यो में शुद्धता को कौन पूछता है। हालाँकि सनातन धर्म अनुयायियों को प्रोसेस फ़ूड को लेकर संवेदनशील होने की जरुरत है। क्यों की उनके धार्मिक मान्यताओ को प्रोसेस फ़ूड विज्ञापनों के माध्यम से नुकसान पहुंचाया जा रहा है।
हाल ही के कुछ सालो में अलग अलग खाद्य निर्माता या कम्पनी उपवास के लिए पैकेट बंद उपवास सामग्री फलाहारी बाजार में बेची जा रही है।
मजे की बात ये है की किसी भी निर्माता या कंपनी के पैकेट पर उपवास या व्रत में उपयोग की कोई दिशा निर्देश नहीं दिए है। किसी भी तरह से ऐसे उत्पादों पर सनातन की व्रत परम्परा में इन उत्पादों की महत्वता को लेकर कोई जानकारी होती ही नहीं है। लेकिन दुकानों पर पैकेट बंद उपवास सामग्री की मार्केटिंग उपवास या व्रत में काम में आने को लेकर की जाती है।
पैकेट बंद उपवास सामग्री फलाहारी यानी फल आहार के नाम पर बेचे जाने वाले उत्पादों में पाम आयल ,बीटी कॉटन सीड व कई तरह की फैट या वसा का उपयोग होता है। जिसकी कोई भी जानकारी उत्पाद के पैकेट पर उपलब्ध नहीं होती है। इनको ई-कोड ( E-Code ) में लिख दिया जाता है।
जो सिर्फ कंपनी वाले या FSSAI वाले ही समझ सकते है। आम इंसान और पढ़े लिखे लोग भी इन E-कोड की सामग्री का विवरण नहीं समझ सकते। ऐसे उत्पाद छोटे स्तर से लेकर कई नामी ब्रांड के होते है। जिसमे कई बड़ी बड़ी कम्पनी के उत्पाद भी शामिल है। तथा ऐसे उत्पादों में भी सरक्षक और स्वाद बढ़ाने के लिए जो तत्व काम में लिए जाते है। उनकी व्रत में उपयोग की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। आलू चिप्स हो या मिक्स।
अगर आप भी पैकेट बंद उपवास सामग्री पर लिखे तत्वों और उपवासिय उत्पाद में मिलाये जाने वाले तत्व पढ़े तो पाएंगे की उसके मक्के के मैदे ( Corn /Maize starch ) का उपयोग किया गया है। जो की व्रत ,उपवास की नियमावलियों के विरुद्ध है। तथा कुछ स्थानीय निर्माताओं के पेकिंग पर बहुत से तत्वों की जानकारी ही नहीं होती है।
कुछ निर्माता पैकेट बंद उपवास सामग्री उत्पाद में एलर्जी के लिए चेतावनी भी पैकेट के पीछे लिखते है जिसमें गेहूं जैसे तत्वों के बारे में आगाह किया जाता है। उपवास में एक समय के अन्न की मनाही होती है और उपवास पूर्ण होने से पहले अन्न का कण भी उपवास भंग कर सकता है ऐसी मान्यता है।
फ़ूडमेन ने अपनी जाँच पड़ताल में पाया कि स्थानीय बाजार में पैकेट बंद उपवास सामग्री फलाहारी में बहुत से ऐसे तत्व पाए गए है जो स्वास्थय के लिए सही हो या न हो ये जाँच का विषय है लेकिन अंग्रेजी में उन तत्वों के बारे में जरूर लिखा होता है। ऐसे उत्पादों की उपभोक्ता या अधिकतम उपवास करने वाला वर्ग यानी महिलाये होती है। जिनको इन तत्वों के बारे में ज्यादा पता ही नहीं होता है ।
इन उत्पादों में ऐसे तत्व होते है। जो उपवास में उपयोग किये जाने योग्य नहीं है।लेकिन टीवी विज्ञापनों के साथ साथ महिलाओ को दैनिक सीरियल के नाटकों में भी जाने अनजाने में ऐसे उत्पादों की मार्केटिंग की जा रही है।
ऐसी परिस्थिति में फ़ूडमेन की सलाह है की सनातनी महिलाये व अन्य सनातन उपासक जब भी उपवास करे ताजे फलों का ही फलाहार करे या घर में ही चिप्स व मूंगफली को तैयार कर के उपयोग में लाये। खाद्य उत्पादक व निर्माताओं को उत्पाद की सेल्फ लाइफ को लेकर गंभीरता है ना कि आपके स्वास्थ्य और धार्मिक भावनाओं की।अपनी धार्मिक आस्थाओ का निर्वाह करना हर भारतीय के अधिकार में है। जिसे कोई धोखा दे नहीं सकता है। और देता है तो उसके लिए पर्याप्त कानूनी प्रावधान भी हमें संविधान देता है।
कंज्यूमर कार्नर
खाद्य अवयवों की जानकारी छुपा रहे है निर्माता।
FSSAI ही खाद्य अवयवों की जानकारी छुपाने की दे रही है छूट।
खाद्य अवयवों की जानकारी होना और देना निर्माता की जिम्मेदारी है। और ग्राहक का अधिकार है। खाद्य सुरक्षा के लिए जिम्मेदार सरकारी संस्थान निर्माताओं का भला देख रहे है। और जनता को मुर्ख या अज्ञानता में धकेला जा रहा है।
आजकल हमारे भोजन या खाद्य स्त्रोत किसी न किसी प्रोसेस फ़ूड उधोग के उत्पादों के आधीन ही होते है। चाहे वो ब्रेड हो या सॉस ,मक्खन,या रेडीमेड मसाले लगभग सभी का प्रसंस्करण किसी न किसी बड़ी छोटी फैक्टरी में किया जाता है। भारत में ऐसे उत्पादों पर पर निगरानी और नियमन के लिए खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण की स्थापना की गई थी। लेकिन जब से प्राधिकरण की स्थापना हुई है तब से प्रोसेस फ़ूड की सामग्री सूची में जानबूझ कर खाद्य अवयवों की जानकारी को छिपाया जा रहा है।
छिपाया पहले भी जा रहा था जब कोई नियमन नहीं था। लेकिन अब जब FSSAI होने के बावजूद अब भी खाद्य अवयवों की जानकारी को छिपाया ही जा रहा है। आम जनता जो किसी भी रूप से प्रोसेस फ़ूड में मिलाये जाने वाले तत्वों की जानकारी नहीं होती है।
प्रोसेस फ़ूड की पैकिंग के लेबल पर खाद्य अवयव के नाम या ई-कोड़ तो लिखे जाते है लेकिन उनकी मात्रा छिपा दी जाती है।और बहुत से उत्पाद अलग अलग होते हुवे भी सामग्री सूची ही कॉपी पेस्ट कर दी जाती है।
फ़ूडमेन आपका ध्यान सामग्री( ingredients ) सूची पर लिखे जाने वाले प्रिजर्वेटिवस ,कलर ,फ्लेवर आदि की मात्रा को छुपाये जाने या न लिखने की और ले जाना चाहता है।FSSAI की स्थापना का मूल आधार जनता के स्वास्थ्य व उनके खाद्य गुणवक्ता के अधिकारों को लेकर हुवा था।
आज भी FSSAI द्वारा खुल्ले में पड़े भोजन और रात के बासी खाने को नहीं खाने और फ़ूड पॉइजनिंग से बचने के आधारभुत जानकारियों के साथ आधे घंटे के भाषण के बाद सोशल मिडिया के लिए फोटो और कोई न कोई प्रमाणपत्र या प्रशस्ती पत्रों का वितरण कर जिम्मेदारियों का निर्वाह हो रहा है।
जबकि ऐसे में कई उत्पादों की सामग्री सूची से खाद्य अवयवों की जानकारी गायब है। विशेष कर खाद्य अवयव जैसे परिरक्षक ,पायसीकारक ,एंटीबायोटिक ,आदि को ई-कोड में ही दर्शाया जाता है लेकिन इनकी मात्रा को नहीं दर्शाया जाता है।
खाद्य सुरक्षा के नाम पर FSSAI द्वारा हर साल काफी इवेंटबाजी होती है जिसमे आज भी हाथ धो कर खाना खाना सिखाया जाता है। लेकिन किसी भी तरह प्रोसेस फ़ूड में मिलाये जाने वाले खाद्य अवयव या उनके सम्बन्ध में मात्रा व सावधानी को लेकर एक छोटी सी कोशिश भी नहीं की गई है।
यानी की जिन तत्वों की उपस्थिति खाद्य उत्पादों को जनसाधारण की बीमारियों की वजह बन रही है उस पर चर्चा भी नहीं कहा जा रहा है।
प्राधिकरण के प्रबंधन में व्याप्त ब्यूरोक्रेसी और कार्पोरेटोक्रेसी के चलते मनमर्जियो का दौर प्रारम्भ हो गया है।खाद्य सुरक्षा में नवाचार के विचारों पर बनी समितियां ठन्डे बस्ते में या सहमति नहीं बनने के नाम पर महीनों सालो से लंबित संसद द्वारा पारित नियमों/ कानूनों को लागू नहीं किया जा रहा है।
खाद्य अवयवों की जानकारी होना हर ग्राहक का अधिकार है। FSSAI किसी भी खाद्य अवयव की अधिकतम से न्यूनतम मात्रा तो तय करती है। लेकिन ग्राहक को कितनी मात्रा में दैनिक मात्रा का ज्ञान नहीं होता है। जो की भविष्य में ग्राहक के लिए बीमारियों व कैंसर तक का कारण हो सकता है।
जैसे खाद्य रंग या फ़ूड डाई जिसकी मात्रा एक उत्पाद तक तो निश्चित है। लेकिन एक व्यक्ति के लिए कितनी होनी चाहिए यह अभी तक तय नहीं है। जैसे किसी विशेष पदार्थ की अधिकतम दैनिक मात्रा 5 mg ही है और वो किसी भी उत्पाद में उतनी ही हो लेकिन ग्राहक ऐसे उत्पाद का उपभोग दिन में दो बार ही कर ले तो उसने दैनिक सीमा से दो गुणी मात्रा में उस खाद्य अवयव को ग्रहण किया है जो उसकी बीमारियों का कारण हो सकता है।
खाद्य अवयवों की जानकारी होना बहुत ही जरुरी जानकारियों में से एक है। विडम्बना ये भी है की वैश्विक संसथान विश्व स्वास्थ्य संगठन ( WHO ) भी इस मामले में चुप है। और हर देश की खाद्य सुरक्षा संस्थान भी इस मामले में चुप है। खाद्य अवयवों की उत्पाद में अधिकतम सीमा तय है।
लेकिन खाद्य अवयव की कितनी मात्रा किसी व्यक्ति के लिए कितनी होनी चाहिए ये तय नहीं है। इसी के लिए खाद्य अवयवों की जानकारी होना जरुरी है। लेकिन बड़े बड़े ब्रांड खाद्य अवयवों की मात्रा की जानकारी छुपा रहे है। जो किसी भी लोकतांत्रिक देश के सामूहिक स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकती है।