सम्पादकीय
अमूल दूध के कर्नाटक में प्रवेश पर विवाद बढ़ा
बाहरी और घरेलू के बीच दूध कोआपरेटिव कंपनीयां लड़ रहीं कॉर्पोरेट की तरह
अमूल दूध के कर्नाटक में प्रवेश पर विवाद बढ़ा
कर्णाटक में अमूल के प्रवेश को लेकर राजनैतिक सरगर्मिया तेज हो गयी है अभी हाल ही में कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने इसे स्थानीय भाषा और बाहरी के नाम पर अमूल के प्रवेश को अलग ही राजनैतिक रूप देने की कोशिश की है। अमूल चूँकि गुजरात मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन का ही ब्रांड है।और नन्दनी कर्नाटक मिल्क फेडरेशन का ब्रांड है। तो स्पष्ट है की व्यापारिक प्रतिस्पर्धा से बचने के लिए इसे स्थानीय व भाषायी रंग दे कर विपक्ष सहानुभूति की राजनीति कर रहा है।और इसको इसी साल 10 मई को होने वाले चुनावो में मुद्दा बनाने की कोशिश होगी।
विवाद गृह मंत्री अमित शाह के उस बयान के बाद से शुरू हुआ जिसमें अमूल को नन्दनी मिल्क ( कर्नाटक मिल्क फेडरेशन ) को साझेदार के रूप में स्थापित करने की बात कही थी। हालांकि ऐसा ही असम चुनाव के समय भी गृहमंत्री अमित शाह ने अमूल को असम में स्थापित करने को भी कहा था। लेकिन अभी तक कोई नीति या निर्देश केंद्रीय भाजपा सरकार ने नहीं बनायी ।
विपक्ष का आरोप है की ये कर्नाटक मिल्क फेडरेशन के अधिग्रहण जैसा है। जिससे धीरे धीरे नंदनी ब्रांड के स्थान पर अमूल को स्थापित करने का एजेंडा है। इस मुद्दे में स्थानीय भाषा को खूब भुनाया गया है।
स्थानीय भाषाओ व सरल व समझ में आने वाली भाषाओ का पैकेज फ़ूड पर होना की मांग को लेकर फ़ूडमेन ने हमेशा समर्थन किया है। व भविष्य में भी करता रहेगा। देखना ये होगा की क्या केंद्र सरकार के अमूल को कर्णाटक में उतारने की रणनीति चुनाव में उनके लिए लाभ या हानी का विषय ना बन जाये
आजादी के बाद हर किसी को अपना व्यापार करने व फ़ैलाने का अधिकार सविधान देता है। इसी अधिकार के तहत अमूल को भी कोई प्रदेश या राज्य व्यापार बढ़ाने से रोक नहीं सकता है।
लेकिन इसके लिए केंद्र सरकार का सामने आना सरकार और अमूल की नियत को लेकर शंका पैदा करता है।
हालाँकि ये भी देखा जाना चाहिये की दशकों से चल रहे सहकारी व्यवस्थाओ में राजनैतिक और माफिया जैसे लोग अपने पांव पसार कर जमे हुये है। अब दो प्रदेशो के सहकारी व्यावसायिक टकराव से देखना होगा कि कइयों के जमे जमाये पीढ़ियों का धंधा और पशुपालको के शोषण में कमी आयेगी।
वैसे तो अमूल ने ख़ामोशी से दूसरे राज्यों की कोआपरेटिव कंपनियों के व्यापार को निगल ही लिया है और फ्री इकॉनमी में प्राइवेट प्लेयर्स अपनी रणनीति ही बदल कर कुछ तो अमूल के सहभागी हो गए और कुछ ने जो ठीक लगा वो किया।
गौर करने वाली बात ये भी है की एक किलो नन्दनी दूध की कीमत अमूल दूध से कम है। ऐसे में अमूल के दूध के क्या भाव होंगे व उसके कर्नाटका के भाव से दिल्ली में दूध के भावो पर क्या प्रभाव पड़ेगा। ये सब निकट भविष्य में देखने को मिलेगा।
विपक्ष द्वारा इस मुद्दे को चुनावी ,भाषाई व बाहरी का बताया जा रहा है। जो की संविधान की मुक्त व्यापार के ही कानून की अवहेलना है। और यह इस बात का सबूत है की किस तरह से राजनीति दूध के व्यापार को प्रभावित करती है। किस तरह से भाव बढ़ाये जाते है या चुनावी समय में स्थिर कर दिए जाते है। और किस तरह से नकली दूध को जनता को चिपका दिया जाता है।
दूध माफिया राजनीतिक छत्रछाया में कैसे सरकारी तंत्र और खाद्य सुरक्षा के साथ खेला करते है। यह आपको कर्नाटक में अमूल के प्रवेश और चुनावी साल में दूध बाजार के मुद्दे को बाहरी और भाषाई मुद्दा कैसे बनाया जाता है देखने को मिलेगा।
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क्या FSSAI की चाबी उद्योगपतियों के हाथ में ? A1-A2 मिल्क लेबलिंग में दर्शाने पर प्रतिबन्ध लगाया था।
किस दबाव में FSSAI मिल्क लेबलिंग पर A1-A2 मिल्क लिखने का आदेश वापस लिया।
FSSAI या खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण अपनी शुरुवात से ही बड़े उधोगपतियो के हित में नीतिया बनाने को लेकर आलोचनाओं के घेरे में रहा है। हाल ही में FSSAI द्वारा दूध की बिक्री और लेबलिंग को लेकर आदेश पारित किये थे कि दूध की बिक्री में दूध की लेबलिंग पर A1-A2 मिल्क लिखना प्रतिबंधित किया जाता है। यानि की A1-A2 मिल्क को लेकर उपभोक्ता भ्रांतियों से निकल पाए इसलिए दूध बिक्री में दूध की लेबलिंग में A1-A2 मिल्क लिखना प्रतिबंधित किया था।
जो की सही भी था।फ़ूडमेन ने भी इसका समर्थन किया है।दरअसल में A2 मिल्क के नाम पर कई दूध उत्पादक उपभोक्ताओं को कोई भी दूध बेच कर बहुत ज्यादा लूट रहे है । शहरी बाजार में A2 दूध 100 रु प्रतिलीटर से 200 रु तक में बेचा जा रहा है। ऐसे में A 2 दूध के अन्य उत्पादों जैसे घी मक्खन पनीर आदि की कीमत मुंहमांगी हो जाती है। A1-A2 मिल्क में क्या फर्क होता है या कैसे पता करे की दूध A1या A2 है इसका कोई घरेलु या प्रोफेशनल टूल किट अभी बाजार में उपलब्ध नहीं है। मात्र DNA टेस्ट के जरिये ही A1-A2 मिल्क की पुष्टि हो सकती है।
ऐसे में जहां भारत में नकली दूध का बाजार इतना बड़ा है लेकिन A2 मिल्क के नाम पर उपभोक्ताओं को दूध मोटे मुनाफे में बेचा जा रहा है।ऐसे में A1-A2 मिल्क पर फैली भ्रांतियों को और बाजार में A2 मिल्क की ठगी को रोकने के लिए FSSAI यह कदम उठाया था।
यह पहली बार हुवा है कि जब FSSAI ने अपने लिए फैसलों और आदेशों को वापस लिया है। आमतौर पर FSSAI अपने ऐसे आदेशों को ठन्डे बस्ते में डाल देती है।FSSAI खाद्य उधोग में ऐसे चौकीदार का काम करता है जो रात को “जागते रहो” कहता रहता है। ताकि लोगो को लगे की कोई काम तो कर ही रहा है। FSSAI भी हर साल किसी न किसी रूप से कोई आदेश प्रेस रिलीज से जारी करती है। ताकि सरकार और जनता को लगे की काम तो हो रहा है। लेकिन FSSAI अपने ही आदेशों का कोई अनुसरण नहीं करवा पाती। और आदेश ठन्डे बास्ते में चले जाते है
इससे पूर्व भी 2023 में FSSAI पैकेज फ़ूड लेबलिंग पर हेल्थ स्टार रेटिंग (HSR )जिसमे उत्पाद का मनुष्यो की हेल्थ के प्रभावों को देखते हुवे पांच सितारा रेंज को लेकर रणनीति को सार्वजानिक किया था। जिसमे उत्पाद की स्वास्थ्य पर प्रभावों को देखते हुवे एक स्टार से 5 स्टार तक की रेंज में उत्पादों को सूचीबद्ध करना था। लेकिन इसे ठन्डे बास्ते में दाल दिया गया।
ऐसे ही पान मसाला उधोग के लिए पानमसाला पैकिंग में फ्रंट में 50 % तक की जगह में पान मसाला चबाने से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जैसी चेतावनी लिखने के आदेश दिए थे जो एक साल बाद भी पूरी तरह से लागु नहीं हुवा। और अब जब हुवा है तो FSSAI के आदेशों का गोलमोल तरीके से पालन किया गया है। कई बड़े पान मसाला उत्पादक 50% को ऐसे लिखा है जो की दिखायी भी दे और नहीं भी।
ऐसे ही Fssai द्वारा FocTac नाम से एक ट्रेनिंग स्कीम भी लागु की जिसमे छोटे बड़े खाद्य व्यापर से जुड़े लोगो को अच्छी तरह से ट्रेंड करना व खाद्य सुरक्षा को लेकर ट्रेनिंग देना था। जिसके तहत देश भर से फ़ूड टेक से जुड़े लोगो को ट्रेनर के रूप में ट्रेनिंग दी गयी ताकि वो दूसरे छोटे बड़े खाद्य उधोग से जुड़े लोगो को खाद्य सुरक्षा ट्रेनिंग दे पाए। इस ट्रेनिंग के बाद ट्रेनिंग लेने और देने वालो को यह भी बताया गया की यह ट्रेनिंग खाद्य उधोग व लाइसेंस के लिए अनिवार्य की जाएगी। लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हुवा और धांधली अभी तक चालू है।
ट्रांस फेट को कम करने के WHO के फरमान के बाद भी अभी तक FSSAI ने अभी तक कोई रणनीति नहीं बना पायी है।
पिछले साल मिठाइयों को लेकर दिशानिर्देश दिए गए थे कि मिठाई के डब्बो पर बनाने की तारीख और बेस्ट यूज़ लिखना जरुरी था। लेकिन ऐसा कुछ हुवा नहीं।
होटल्स रेस्टोरेंट में मेन्यू कार्ड पर लिखी डिसीज की मुख्य सामग्री लिखने के दिशानिर्देश भी ठन्डे बस्ते में है।
दूध में विटामिन डी का फोर्टिफिकेशन और इसी तरह खाद्य तेलों में भी फोर्टिफिकेशन के लिए दिशानिर्देश जारी किये गए थे लेकिन अब तक हुवा कुछ नहीं।
इसी साल बोर्नविटा प्रकरण में FSSAI के आदेश थे की बोर्नविटा या अन्य ऐसे उत्पादों को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से हेल्थ ड्रिंक सेगमेंट से हटाया जाये।लेकिन अभी तक ऐसा कुछ धरातल पर देखने को नहीं मिला।
डब्बा बंद फ्रूट जूस पर 100% फ्रूट जूस व दूध व ज्यूस पर फ्रेस लेकर भी दिशा निर्देश दिए गए है।
2016 से 2018 तक चीन से डेयरी उत्पाद के आयत पर प्रतिबन्ध था जो की बिना किसी सुचना के शुरू हो चूका है। एक वेबसाइट वोल्ज़ (www.volza.com)के अनुसार फरवरी 2024 तक चीन से 301 डेयरी प्रोडक्ट के शिपमेंट भारत में आयात हो चुके है।
A1-A2 मिल्क पर दिया आदेश वापस होना वैसे ही है जैसे हफ्ता लेने के लिए किसी को एक बार डरा दो और बाद में हफ्ता मिलते ही उसको आराम से धंधा करने के लिए और बंदी जारी रखने के लिए एक मोन समझौता। FSSAI पर हमेशा बड़े उधोगपतियो के लिए नीतिया बनाने के लिए मशहूर है। और छोटे व्यापारियों के लिए मुश्किलें खड़े करने के लिए बदनाम।
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देश में ISO सर्टिफिकेट की धांधली।
ISO सर्टिफिकेट मात्र प्रिंटरों पर तैयार।
एक टिन छप्पर में छोटे से कमरे में चलने वाली कम्पनी को भी ISO सर्टिफिकेट मिल जाता है। जो किसी भी ISO के स्तर की नहीं है। लेकिन मात्र कुछ रुपया दे कर किसी भी ISO सर्टिफिकेट मिल सकता है।
यदि मोदी सरकार की माने तो वो विश्व गुरु बनने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। वो विश्व की ऐसी पहली सरकार बन जाएगी जिसके मंत्री, विधायक, सांसद अंतर राष्ट्रीय संगठन ISO से प्रमाणित होंगे।
विश्व की प्रथम ISO प्रमाणित सरकार , विचार उत्तम ही नहीं अति उत्तम है। इस कड़ी में मोदी जी ने 2011 में ही गुजरात सरकार के मुख्यमंत्री रहते इस सर्टिफिकेट को प्राप्त कर लिया था। सर्टिफिकेट की फोटो फ़ूड मेन को इंटरनेट पर बहुत तलाशने पर भी नहीं मिली। किन्तु हमे इसमें कोई भ्रम नहीं है कि ये सर्टिफिकेट उनके पास नहीं है। ये खबर खुद PUBLIC SECTOR ASSURANCE की वेबसाइट पर उपलब्ध है। अब ये होड़ देश के भ्र्ष्ट नेताओं में मचेगी कि वो मोदी जी से कह कर अंतर्राष्ट्रीय प्रमाणित चोर कहलायेंगे और विश्व में विश्व गुरु की चोरी और उसका डंका प्रमाणित प्रमाणपत्र से बजायेंगे।
इसी सोच को अभी से अमल में तमिलनाडु की बीजेपी विधायक वनथी श्री निवास ने ISO सर्टिफिकेट ले कर बाजी मार ली है। अब सर्टिफिकेट भी उन्होंने बीजेपी की सोशल मीडिया मैनेजर शालू गुप्ता की कंपनी QRO सर्टिफिकेशन से प्राप्त किया है। QRO सर्टिफिकेशन दिल्ली की कंपनी है ,जो कि मिस्र की अंतर्राष्ट्रीय प्रमाणन संस्था EGAC से मान्यता प्राप्त है।
OXEBRIDGE नाम की व्हिस्टलब्लोवर संस्था ने जो कि ISO और ऑडिटर्स की गिरती साख पर हमेशा से काम करती आयी है और जो एलोन मस्क की स्पेस x के लिए भी स्टैण्डर्ड पर काम कर चुकी है ने भारत में हो रहे ISO प्रमाण पत्रों पर सवालिया प्रश्न उठाये हैं। इसको चलाने वाले क्रिस्टोफर पेरिस ने इजिप्ट की संस्था EGAC से सवाल पूछ कर ये जानना चाहा कि भारत की कंपनी QRO और भारतीय कंपनियों की तरह सीधे विदेशी कंपनी से मान्यता ले आयी जबकि इसके एक दर्जन से ज्यादा सर्टिफिकेट जालसाजी में अपनी साख को लड़ रहे हैं।
EGAC ने उलटा ही उनसे पूछ लिया कि उनको किन दर्जनों ने शिकायत की है उनके नाम बताना होंगे। बेकार में ये लोग शिकायत ले कर हमको बदनाम करते हैं। EGAC ने ये भी कहा कि यदि आप ISO 17011 के तहत शिकायत भी करेंगे तो आपको उन CB (Certification Bodies ) का भी जिक्र करना चाहिए जो हमारे बारे में ये झूठ फैला रहे हैं कि हमने ये सर्टिफिकेट स्कोप के बाहर दिए हैं. किन्तु ISO 17011 के विधान में शिकायतकर्ता को अपना नाम देने की बंदिश नहीं है।
यही बहस LinkedIn पर QCI ( NABCB ) के पूर्व सीईओ अनिल जौहरी और Association of Consumer Protection के बीच भी हुई ,विषय था कि IAF (International Accreditation Forum ) की इसमें हमेशा से भूमिका एक वॉचमन की रही है। भारत में केवल 10 % ही CB हैं जिनको IAF से मान्यता मिली है कि वो भरोसेमंद हैं और उन्हें NABCB भी मान्य करता है किन्तु श्री जौहरी जो रिटायर्ड सीईओ ,NABCB रह चुके हैं कि इसका % 10 नहीं 30 होना चाहिए।
क्योंकि यदि IAF ऐसा करता है तो देश की 90 % CBs ही फ्रॉड कर रहीं है जबकि ऐसा नहीं है। फुडमेन ने भी ऐसी पड़ताल के बाद ये पाया है कि ISO सर्टिफिकेट की साख अब केवल एक प्रिंटर की रह गयी है जिसमे पांच सौ से लेकरकुछ हज़ार रु में ये जाली सर्टिफिकेट कमीशन बेस बाजार में उपलब्ध हैं।
क्योंकि उन्होंने तो पूरी दुकान ही चला रखी है और वो दुनिया भर में सर्टिफिकेट देती हैं। वो किधर से गलत हैं वो QCI , NABCB या फिर मोदी जी सोंचे।
हालाँकि भारतीय आम नागरिको को इस ISO प्रमाणपत्र को लेकर कोई खास जानकारी नहीं है। ये मात्र कॉर्पोरेट में काम करने वालो की ही कुछ कुछ समझ में आता है और एक तरह से मृग मरीचिका है।
भारतीय लोग FSSAI ग्रीन डॉट और रेड डॉट को लेकर भी संयन्श में है। भारत में FSSAI प्रमाणपत्र भी मात्र कुछ हजार में बिना किसी गुणवक्ता और उत्पाद परिक्षण के मिल जाता है। और एक ही प्रमाणपत्र से सेंकडो उत्पाद बनाये जा सकते है ,बस सालाना सेटिंग की व्यवस्था होनी चाहिए
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मध्यप्रदेश में खुले में मांस व अंडे की बिक्री प्रतिबंधित।
खुले में मांस व अंडे की बिक्री पर प्रतिबन्ध का फ़ूडमेन स्वागत करता है।
मध्यप्रदेश में अभी अब यूपी की तरह खुले में मांस व अंडे की बिक्री को प्रतिबंधित कर दिया गया है। अब मांस व अंडे की बिक्री सिर्फ लाइसेंस धारी दुकानदार ही कर सकेंगे। तथा ऐसी दुकानों को साफ सफाई हाइजीन व कचरे के निस्तारण की तय प्रक्रिया को भी अपनाना होगा।
अधिकतर देखा गया है की खुले में मांस व अंडे की अवैध बिक्री जहाँ की जाती वहा इनके द्वारा कचरे का निस्तारण ढंग से नहीं किया जाता है।जिससे इस कचरे में संक्रमण फैलना आम बात है। जिससे आसपास के आवारा जानवरो में भी संक्रमण हो सकता है। आमतौर पर रेहड़ी व छोटी दुकानों में अवैध मांस व अंडे के खाद्य पदार्थ बनाये जाते है। वह साफ सफाई का कोई ध्यान नहीं रखा जाता है। चिकन आमलेट आदि की रेहड़ियों पर गंदगी व मच्छर ,मक्खियाँ आदि देखी जा सकती है जो खाद्य संक्रमण को बढ़ावा देती रहती है।
देश में व्याप्त अधिकतर बीमारियों की शुरुवात सड़को चौराहो पर लगने वाली रेहड़ियों के खाने पीने से होती है। यहाँ स्वास्थ्य को लेकर साफ सफाई व हाइजीन का कोई ध्यान नहीं रखा जाता है। सिर्फ स्वाद और स्वाद के लिए कृत्रिम रसायनो का उपयोग धड्ड्ले से किया जाता है। ये सभी रेहड़ी वाले गरीब और मजदुर लोग ही होते है। इनकी गरीबी को माफियाओ द्वारा भुनाया जाता है। देखने में यह गरीब लोगो की रेहड़ी लगती है। जबकि इनका संचालन संगठित माफिया व प्रशासन की मिलीभक्ति से किया जाता है।
मध्यप्रदेश की नवगठित सरकार द्वारा खुले में मांस व अंडे की बिक्री पर लगाए प्रतिबन्ध को आगामी सुधार के आगाज के रूप में भी देखा जा सकता है। हर भारतीय को हर तरह का खाना खाने का अधिकार है। तथा हर खाद्य विक्रेता को शुद्ध व साफ खाद्य प्रदार्थ बेचने का कर्तव्य है। कोई भी आपके खाने के साथ लापरवाही नहीं कर सकता है। और करता है तो उसके लिए खाद्य सुरक्षा कानून में सजा का प्रावधान है है।
भारत में यह दूसरी बार है। जब किसी राज्य सरकार द्वारा खाद्य संबंधित कानून बनाये गए है व खुले में मांस व अंडे प्रतिबंधित किये गए है। इन प्रतिबंधों को किसी धर्म या वर्ग से जोड़ कर देखना जल्दबाजी और राजनीती मात्र है।
एक राय में यह कह सकते है की इससे गरीब तबके पर बुरा असर पड़ेगा रोजगार में कमी आएगी। लेकिन यह भी तो सोचना चाहिए की इसी गरीब तबके को फ़ूड पॉइज़निंग व अन्य खाद्य जनित रोगो से भी बचाया जा सकेगा।
देखा जाये तो खुले में मांस व अंडे खरीद कर खाने वाले लोग गरीब तबके से ही आते है। अधिकतर को यह पता भी नहीं होता के मांस ताजा है या बासी कई बार तो यह तक पता नहीं चल पता की मांस किस जानवर का है।इसी साल तमिलनाडु में रेल से संदिग्ध मांस जप्त किया गया जो की कुत्ते का था। और इसे जोधपुर से भेजा गया था।
खुल्ले में मांस व अंडे की दुकाने या रेहड़ी के पास किसी भी तरह का लाइसेंस व मांस को खाने के लिए योग्य बनाने का कोई प्रशिक्षण या अनुभव नहीं होता ऐसे में फ़ूड पॉइज़निंग होने की संभावना बानी रहती है।यहाँ तक की कसाईखानों में जानवर के अनुपयोगी मांस जिसे खाया नहीं जाता उसे भी इन रेहड़ियों में खपा दिया जाता है। बासी अंडो के आमलेट बनाये जाते है क्यों की मसालों से उसका बासीपन छुप जाता है। शहर की इन्ही रेहड़ियों में कई घृणित पदार्थो का उपयोग होता है।
ऐसे में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा खुले में मांस व अंडे की बिक्री पर प्रतिबंधित किया गया है ना की मांस और अंडे पर। जो भी मांस व अंडे खाने या लाने का इच्छुक है वो लाइसेंस शुदा दुकानों से ले सकता है
असल में यह खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण ( FSSAI ) व राज्य खाद्य सुरक्षा व स्वास्थ्य विभाग पर किसी तमाचे से कम नहीं है। मध्य प्रदेश सरकार के इस प्रतिबन्ध को FSSAI द्वारा लगाया जाना चाहिए था। लेकिन इस बार भी FSSAI मात्र मुँह ताकता रह गया।
FSSAI की परिकल्पना खाद्य अशुद्धियों व मिलावट पर नियमन हेतु किया गया था। लेकिन FSSAI अब उद्योगपतियों के नियमन में है। हर साल देश में खुले में रेहड़ियों पर खाने से हजारो लोगो की मौत हो जाती है। तथा FSSAI द्वारा मूकदर्शक बन कर तमाशा ही देखते रहता है। अपने गठन के बाद से ही FSSAI मात्र लाइसेंस और प्रमाण पत्र बांटने की संस्था बन चुकी है। जिसे हर रोज किसी न किसी अभियान की इवेंट बाजी और सोशल मिडिया में व्यस्त रहती है।
सरकार के खुले में मांस व अंडे बेचने के प्रतिबन्ध के चलते बहुत जल्द ही खुले में और भी खाद्य पदार्थो की बिक्री पर असर देखने को मिल सकता है। जो की आपके और आपके परिवार के लिए किसी वरदान से कम नहीं है।
मध्यप्रदेश सरकार द्वारा खुले में मांस व अंडे की बिक्री को प्रतिबंधित करने के फैसले का फ़ूडमेन स्वागत तथा ऐसे ही बिना लाइसेंस व अवैध रूप से लगने वाली अन्य रेहड़ियों को भी इसी प्रतिबंधन में लाने के लिए निवेदन करता है।
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कंज्यूमर कार्नर
खाद्य अवयवों की जानकारी छुपा रहे है निर्माता।
FSSAI ही खाद्य अवयवों की जानकारी छुपाने की दे रही है छूट।
खाद्य अवयवों की जानकारी होना और देना निर्माता की जिम्मेदारी है। और ग्राहक का अधिकार है। खाद्य सुरक्षा के लिए जिम्मेदार सरकारी संस्थान निर्माताओं का भला देख रहे है। और जनता को मुर्ख या अज्ञानता में धकेला जा रहा है।
आजकल हमारे भोजन या खाद्य स्त्रोत किसी न किसी प्रोसेस फ़ूड उधोग के उत्पादों के आधीन ही होते है। चाहे वो ब्रेड हो या सॉस ,मक्खन,या रेडीमेड मसाले लगभग सभी का प्रसंस्करण किसी न किसी बड़ी छोटी फैक्टरी में किया जाता है। भारत में ऐसे उत्पादों पर पर निगरानी और नियमन के लिए खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण की स्थापना की गई थी। लेकिन जब से प्राधिकरण की स्थापना हुई है तब से प्रोसेस फ़ूड की सामग्री सूची में जानबूझ कर खाद्य अवयवों की जानकारी को छिपाया जा रहा है।
छिपाया पहले भी जा रहा था जब कोई नियमन नहीं था। लेकिन अब जब FSSAI होने के बावजूद अब भी खाद्य अवयवों की जानकारी को छिपाया ही जा रहा है। आम जनता जो किसी भी रूप से प्रोसेस फ़ूड में मिलाये जाने वाले तत्वों की जानकारी नहीं होती है।
प्रोसेस फ़ूड की पैकिंग के लेबल पर खाद्य अवयव के नाम या ई-कोड़ तो लिखे जाते है लेकिन उनकी मात्रा छिपा दी जाती है।और बहुत से उत्पाद अलग अलग होते हुवे भी सामग्री सूची ही कॉपी पेस्ट कर दी जाती है।
फ़ूडमेन आपका ध्यान सामग्री( ingredients ) सूची पर लिखे जाने वाले प्रिजर्वेटिवस ,कलर ,फ्लेवर आदि की मात्रा को छुपाये जाने या न लिखने की और ले जाना चाहता है।FSSAI की स्थापना का मूल आधार जनता के स्वास्थ्य व उनके खाद्य गुणवक्ता के अधिकारों को लेकर हुवा था।
आज भी FSSAI द्वारा खुल्ले में पड़े भोजन और रात के बासी खाने को नहीं खाने और फ़ूड पॉइजनिंग से बचने के आधारभुत जानकारियों के साथ आधे घंटे के भाषण के बाद सोशल मिडिया के लिए फोटो और कोई न कोई प्रमाणपत्र या प्रशस्ती पत्रों का वितरण कर जिम्मेदारियों का निर्वाह हो रहा है।
जबकि ऐसे में कई उत्पादों की सामग्री सूची से खाद्य अवयवों की जानकारी गायब है। विशेष कर खाद्य अवयव जैसे परिरक्षक ,पायसीकारक ,एंटीबायोटिक ,आदि को ई-कोड में ही दर्शाया जाता है लेकिन इनकी मात्रा को नहीं दर्शाया जाता है।
खाद्य सुरक्षा के नाम पर FSSAI द्वारा हर साल काफी इवेंटबाजी होती है जिसमे आज भी हाथ धो कर खाना खाना सिखाया जाता है। लेकिन किसी भी तरह प्रोसेस फ़ूड में मिलाये जाने वाले खाद्य अवयव या उनके सम्बन्ध में मात्रा व सावधानी को लेकर एक छोटी सी कोशिश भी नहीं की गई है।
यानी की जिन तत्वों की उपस्थिति खाद्य उत्पादों को जनसाधारण की बीमारियों की वजह बन रही है उस पर चर्चा भी नहीं कहा जा रहा है।
प्राधिकरण के प्रबंधन में व्याप्त ब्यूरोक्रेसी और कार्पोरेटोक्रेसी के चलते मनमर्जियो का दौर प्रारम्भ हो गया है।खाद्य सुरक्षा में नवाचार के विचारों पर बनी समितियां ठन्डे बस्ते में या सहमति नहीं बनने के नाम पर महीनों सालो से लंबित संसद द्वारा पारित नियमों/ कानूनों को लागू नहीं किया जा रहा है।
खाद्य अवयवों की जानकारी होना हर ग्राहक का अधिकार है। FSSAI किसी भी खाद्य अवयव की अधिकतम से न्यूनतम मात्रा तो तय करती है। लेकिन ग्राहक को कितनी मात्रा में दैनिक मात्रा का ज्ञान नहीं होता है। जो की भविष्य में ग्राहक के लिए बीमारियों व कैंसर तक का कारण हो सकता है।
जैसे खाद्य रंग या फ़ूड डाई जिसकी मात्रा एक उत्पाद तक तो निश्चित है। लेकिन एक व्यक्ति के लिए कितनी होनी चाहिए यह अभी तक तय नहीं है। जैसे किसी विशेष पदार्थ की अधिकतम दैनिक मात्रा 5 mg ही है और वो किसी भी उत्पाद में उतनी ही हो लेकिन ग्राहक ऐसे उत्पाद का उपभोग दिन में दो बार ही कर ले तो उसने दैनिक सीमा से दो गुणी मात्रा में उस खाद्य अवयव को ग्रहण किया है जो उसकी बीमारियों का कारण हो सकता है।
खाद्य अवयवों की जानकारी होना बहुत ही जरुरी जानकारियों में से एक है। विडम्बना ये भी है की वैश्विक संसथान विश्व स्वास्थ्य संगठन ( WHO ) भी इस मामले में चुप है। और हर देश की खाद्य सुरक्षा संस्थान भी इस मामले में चुप है। खाद्य अवयवों की उत्पाद में अधिकतम सीमा तय है।
लेकिन खाद्य अवयव की कितनी मात्रा किसी व्यक्ति के लिए कितनी होनी चाहिए ये तय नहीं है। इसी के लिए खाद्य अवयवों की जानकारी होना जरुरी है। लेकिन बड़े बड़े ब्रांड खाद्य अवयवों की मात्रा की जानकारी छुपा रहे है। जो किसी भी लोकतांत्रिक देश के सामूहिक स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकती है।
कंज्यूमर कार्नर
देश में बढ़ रहे है सामूहिक फ़ूड पॉइज़निंग के मामले।
प्रशासन द्वारा सामूहिक फ़ूड पॉइज़निंग को लेकर उदासीन रवैया।
देश में हर रोज सामूहिक फ़ूड पॉइज़निंग के मामले बढ़ते जा रहे है। सामूहिक फ़ूड पॉइज़निंग से हमारा मतलब शादी समारोह ,दावतों,या हॉस्टल आदि में ज्यादा लोगो का खाना बनता है और खाने में किसी भी तरह से गड़बड़ी सामूहिक फ़ूड पॉइज़निंग का कारण बन जाती है।
हालही में ग्वालियर में लक्ष्मी बाई नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ फिजिकल एजुकेशन (LNIPE ) के हॉस्टल की मैश में खाना खाने से करीब 100 से अधिक स्टूडेंट्स को सामूहिक फ़ूड पॉइज़निंग का शिकार होना पड़ा जिसमे से दर्जन से अधिक स्टूडेंट्स की हालत गंभीर थी। सुचना के अनुसार स्टूडेंट्स ने मंगलवार 3 ऑक्टूबर रात के भोजन में पनीर की सब्जी व चपाती खायी थी। फूड पॉइज़निंग के लिए पनीर का बासी या मिलावटी होना बताया जा रहा है।
ऐसे ही देश के विभिन्न इलाको राज्यों में सामूहिक फ़ूड पॉइज़निंग के मामले सामने आते रहे है। लेकिन अलग अलग जगहों पर हुई सामूहिक फ़ूड पॉइज़निंग की घटनाओ की जाँच स्थानीय प्रशासन तक ही सिमित रहती है। और बाद में मिडिया व जनता दोनों द्वारा ही ऐसी फ़ूड पॉइज़निंग की घटनाओ को भूल जाते है।
प्रशासन भी ऐसी घटनाओ की जाँच ठन्डे बस्ते में फाइल बनाकर अपना पल्ला झाड़ लेते है। जबकि ऐसी घटनाओ में दोषी व्यक्तियों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान है। लेकिन इसके लिए जिम्मेदार केंद्रीय संस्था खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI ) का उदासीन रवैया भी है। FSSAI मात्र लाइसेंस बांटने और इवेंट बाजी में ही व्यस्त देखी जा सकती है।
5 सितंबर 2023 केरल
तिरुवनंतपुरम में संदिग्ध खाद्य विषाक्तता से चार वर्षीय लड़के की मौत हो गई। चार साल के अनिरुद्ध गोवा से विलावूरकाल अपने परिवार के साथ लौट रहा था। लौटते समय मडगांव के रेलवे स्टेशन पर शावरमा खाया था। बच्चे की मौत के साथ साथ और कितने यात्रियों की तबियत ख़राब या अस्पताल जाने की नौबत आयी इसकी जानकारी नहीं है। न ही कोई प्रशासनिक कार्यवाही की सूचना है।
8 मई 2023
यूपी के बदायूं में शादी समारोह में खाना खाने से 10 बच्चे बीमार पड़ गए। उन्होंने बताया कि बच्चों को जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
28 अगस्त 2023 महाराष्ट्र
एक अधिकारी ने सोमवार को कहा कि सांगली जिले में महाराष्ट्र सरकार द्वारा सहायता प्राप्त आवासीय विद्यालय के 160 से अधिक छात्रों को संदिग्ध भोजन विषाक्तता के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
12 सितंबर 2023 तेलंगाना
एक अधिकारी ने मंगलवार को बताया कि राज्य के निजामाबाद जिले में एक आवासीय बालिका विद्यालय की 78 छात्राएं खाना खाने के बाद बीमार हो गईं और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया।
14 सितम्बर 2023
भोजन विषाक्तता के बाद मन्नानूर एसटी गर्ल्स हॉस्टल की 40 छात्राएं बीमार
हैदराबाद: नागरकर्नूल के अमराबाद मंडल के मन्नानूर में एक आदिवासी गर्ल्स हॉस्टल की चालीस छात्राएं दोपहर के भोजन में ‘टमाटर चारू’ खाने के बाद गुरुवार देर रात बीमार पड़ गईं। छात्रों ने सांस लेने में कठिनाई और उल्टी की शिकायत की और उन्हें साथी छात्रों और स्थानीय लोगों ने ऑटोरिक्शा, लॉरी और एम्बुलेंस में पास के एक अस्पताल में पहुंचाया।
19 सितंबर 2023
मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले में एक सरकारी स्कूल के छात्रावास मेस में रात्रि भोजन के बाद भोजन विषाक्तता की शिकायत के बाद लगभग 100 छात्रों को अस्पताल में भर्ती कराया गया।
18 सितम्बर
तमिलनाडु के नामक्कल के एक रेस्तरां से चिकन शावर्मा खाने से 14 वर्षीय लड़की सोमवार, 18 सितंबर को अपने आवास पर मृत पाई गई। पीड़िता के परिवार के चार सदस्यों और 11 मेडिकल कॉलेज के छात्रों सहित कुल 43 लोगों को बुखार हो गया। पकवान खाने के बाद उल्टी, पेट दर्द और दस्त के कारण, उन्हें नमक्कल सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (पीएमसीएच) और निजी अस्पतालों में भर्ती कराया गया और उनका इलाज चल रहा था।हालाँकि इस घटना में स्थानीय प्रशासन मुस्तैद दिखा।
पुलिस अधीक्षक एस. राजेश कन्नन ने कहा कि मालिक नवीन के खिलाफ आईपीसी की धारा 273 (हानिकारक भोजन की बिक्री), 304 (ii) (गैर इरादतन हत्या) और 328 (जहर के माध्यम से चोट पहुंचाना) के तहत मामला दर्ज किया गया है। कुमार, रसोइया, संजय महाकुर और दबाश कुमार, दोनों ओडिशा के मूल निवासी हैं। उन्होंने कहा, “तीनों को गिरफ्तार कर लिया गया।”
खाद्य सुरक्षा विभाग ने जिले भर के रेस्तरां और होटलों में शावरमा और ग्रिल्ड चिकन की बिक्री पर भी अस्थायी रूप से प्रतिबंध लगा दिया है।
देश में हो रही सामूहिक फ़ूड पॉइज़निंग की खबरे अब आम हो गई है। और केंद्रीय संस्थान FSSAI इस स्थिति को लेकर बिलकुल भी सक्रीय नहीं है। ऐसे में आम नागरिको का जीवन कभी भी खतरे में आ सकता है। क्योकि खाना तो जरुरी है। और सामाजिक तानेबाने में हम सामाजिक जीव सामूहिक समारोह और दावतों में या अपने बच्चो की पढ़ायी के लिए हॉस्टलों को नकार नहीं सकते। ऐसे में हमारी सक्रियता का कोई मतलब नहीं जब तक की स्थानीय प्रशासन और केंद्रीय FSSAI सक्रिय न हो।
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क्या फ़ूड रेहड़ी पर फ़ूड माफिया का कब्ज़ा ?
फ़ूड रेहड़ी पर परोसे जा रहे है खतरनाक खाद्य रसायन।
फ़ूड रेहड़ी लगाना भारत में गरीबो के लिए एक प्रचलित रोजगार का तरीका है। बेरोजगारी इस देश की सच्चाई है। लेकिन स्वरोजगार भी इसी देश की सच्चाई है। कभी प्रधानमंत्री के पकोड़े बेचने के रोजगार पर अपनी राय रखी तो विपक्ष और एंटी गोदी मिडिया इस पर आज तक व्यंग्य कसते है।
रेहड़ी पर खाने पीने के सामान को बेचने का रोजगार बहुत पुराना है। फ़ूड रेहड़ी बस और रेलवे स्टेशन और प्लेटफार्म पर दिखने वाले या मंदिर मस्जिद और मेलो में दिखने वाली रेहड़ी गरीब मजदूरों के लिए रोजगार की आखरी उम्मीद होती है।
आप को जानकर ताज्जुब होगा के ये गोलगप्पे या बर्फ का गोला बनाने वाला मजदूर माफिया कैसे हो गया ? ये मजदुर तो आज भी मजदुर है लेकिन अब रेहड़ी पर माफियाओ का कब्ज़ा हो गया है। ये माफिया दूसरे राज्यों से मजदुर लाते है और अपनी रेहड़ी पर काम पर लगा देते है। आपने भी गौर किया होगा के आपको गोलगप्पे खिलाने वाला किसी अन्य राज्य का या ग्रामीण इलाके का होगा।वो इसलिए ताकि इन माफियाओ की कालगुजारी बाहर न आ सके। स्थानीय मजदुर कभी भी कोई चुनौती या समस्या खड़ी कर सकता है।
ऐसा इसलिए भी है क्यों की रेहड़ी पर कोई टेक्स या कोई सरकारी नियंत्रण नहीं है जिसका फायदा उठा कर ये लोग किसी कच्ची बस्ती में अपनी छोटी फेक्ट्री लगाते है। उत्पाद बनाने वाला कारीगर और उत्पाद बेचने वाला मजदुर वही फैक्ट्री में ही रहते है। शहर के अलग अलग इलाको में रेहड़ी भेजी जाती है। और जिन इलाको में ये रेहड़ी लगती है उन इलाको के भी ठेकेदार होते है जो रेहड़ी लगाने का किराया वसूलते है। और पुलिस और प्रशासन से इन रेहड़ी वालो को सुरक्षा देते है।
इन रेहड़ी मजदुर को दैनिक मजदूरी के हिसाब से मजदूरी तय होती है। इन रेहड़ियों पर बिकने वाला सामान जिस फैक्ट्री में तैयार होता है, वंहा भी घटिया तेल और मसालों से नकली या एक्सपायर सामान का इस्तेमाल किया जाता है। रेहड़ी पर बिकने वाला खाद्य या तो पूरी तरह से पका पकाया होता है। जैसे गोलगप्पे ,पोहे ,दही बड़े ,कांजी बड़े , या अधपका या मुख्य भाग पका पकाया होता है जैसे आलू टिक्की में टिक्की सामने पकाई जाती है लेकिन टिक्की की सब्जी पकी पकाई होती है। छोले भटुरे के छोले पहले से ही तैयार होती है। इनके पकाये जाने में केमिकल और बहुत ही ख़राब कच्चे माल का उपयोग होता है।
इन रेहड़ी वालो पर किसी का नियंत्रण या नियमन नहीं है। लेकिन स्वाद का मरता करे क्या? रेहड़ी पर वही बेचा जाता है जिसको घर पर पकाना है किसी के लिए आसान नहीं होता। लेकिन मजा हर कोई लेना चाहता है। अब इन फ़ूड रेहड़ी पर ड्रग्स और नशीले प्रदार्थो की तस्करी भी हो रही है। दवाओं के सस्ते नशे को भी इन्ही फ़ूड रेहड़ी के जरिये माफियाओ द्वारा बेचा जा रहा है।
चाइनीज नमक यानी MSG (Mono sodium glutamate ) का भीषण उपयोग इन्ही फ़ूड रेहड़ी पर किया जा रहा है। चाय और कॉफी के नाम पर अफीम और डोडा पोस्त को मिला कर ग्राहक को अधीन किया जा रहा है। सरकार को चाहिए की इन रेहड़ी वालो के लिए लागु कानूनों को सख्ती से लागु किया जाये। जिसके खाद्य सुरक्षा अधिकारियो लाम बंध जाये तथा पुलिस विभाग को भी इन फ़ूड माफियाओ के लिए विशेष दस्तो का गठन करना चाहिए।
समय रहते इन रेहड़ियों पर नियंत्रण और नियमन करना बहुत जरुरी हो गया है मई महीने में ही कर्नाटका में एक बच्ची की मौत ख़राब खाने से हो गई थी। रोज कही न कही से रेहड़ी के खाने से फ़ूड पॉइजनिंग की खबरे आम हो गई है। ये खबरे भी खबरे तब बनती है जब किसी की जान चली जाये। अब ये आप की ही जिम्मेदारी है कि रेहड़ी पर कुछ भी खाने जाये तो अपना विवेक भी इस्तेमाल करें।
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कचरा -एक ऐसी समस्या जिस पर ध्यान किसी का नहीं
कचरा -जिसको लेकर सिर्फ एक व्यक्ति ही नहीं बल्कि आने वाली पीढ़िया भी भुगतेगी
प्लास्टिक कचरा कम करने के लिए आम जनता को ही कदम बढ़ाने होंगे
कचरा हर कोई फैलता है। प्रकृति भी कचरा फैलाती है। लेकिन उस कचरे को समाप्त करने का भी दम रखती है। लेकिन हम इंसानो के फैलाये कचरे का तोड़ ना तो प्रकृति के पास है और ना ही हम इंसानो के पास है।इंसानो ने जब से प्लास्टिक की खोज की है तब से कचरे के पहाड़ दुनिया भर की जमीनों पर दिन चौगुने की रफ़्तार से बढ़ रहे है।
हालत यहाँ तक आ चुके है , कि अब हमारे खून तक में नेनो प्लास्टिक पहुंच गया है।
दुनिया भर की बात करे तो विकसित देशों की सूची में अमेरिका का स्थान पहला है। एक अमेरिकी साल भर में 130 किलो प्लास्टिक कचरा फैलता है। और ब्रिटेन दूसरा स्थान पर 99 किलो प्रति व्यक्ति प्लास्टिक का कचरा पैदा करता है।
विश्व में 1950 के बाद लगभग 9 बिलियन टन से अधिक प्लास्टिक का उत्पादन किया है जिसमे से आधे से अधिक को जमीन में गाड़ दिया है और सिर्फ 9 प्रतिशत ही रिसाइकल हुवा है।
भारत में भी अब प्लास्टिक कचरे और ई-कचरे की समस्या किसी दैत्य की तरह फ़ैल रही है। साथ ही मिश्रित व मल्टी लेयर पेकिंग ने तबाही मचाई हुई है। उस पर आग में घी का काम भारत कचरा आयात कर के कर रहा है।
आपको भी जानकर आश्चर्य होगा की भारत हर साल 90 हजार से 1 लाख टन प्लास्टिक का कचरा आयात करता है। जिसमे पाकिस्तान बांग्लादेश का भी कचरा भारत में आयात होता है। तथा 21 हजार टन ई-कचरा तथा अवैध रूप से दुनिया भर से डायपर तथा और तरह के कचरे का आयत अवैध रूप से भारत में किया जाता है।
जिनका अधिकांश भाग भारत के ही किसी डम्पिंग यार्ड ने डाल दिया जाता है।इसको लेकर मौजूदा भाजपा सरकार पर उंगली उठा सकते है। लेकिन इस सौदे के पीछे पिछली सरकारों की अंतरराष्ट्रीय संधिया जिम्मेदार है। 2018 एक बार के लिए भाजपा ने इस कचरे के आयात को प्रतिबंधित किया था लेकिन अंतरराष्ट्रीय दबाव वजह से इसे पुनः जारी किया गया।
भारत सरकार अब सिंगल यूज प्लास्टिक के उत्पादन और उपयोग को लेकर नए नियम जारी कर रही है।सरकार द्वारा सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध हुवा है लेकिन कागजी। आज भी प्लास्टिक स्ट्रॉ दूध छाछ और जूस के साथ देखी जा सकती है। भारत में विश्वगुरु या वैश्विक नेता या सूत्रधार बनाने की होड़ में घोषणाएं तो हुवी है।
लेकिन घोषणाओं पर कार्यवाही के नाम पर सिर्फ कागज बाजी ही हुई है। लेकिन इससे कचरे में कमी नहीं आएगी इससे उलट कचरे में और अधिकता आएगी। प्लास्टिक की जगह भरने के लिए मिश्रित या मल्टी लेयर पैकिंग का उपयोग होगा जो की प्लास्टिक के सामान ही खतरनाक है।
प्लास्टिक के कचरे के निस्तारण के लिए नई तकनीकों का विकास हो रहा है। हर रोज कोई नई खोज या स्टार्टअप सामने आ रहे है। लेकिन मल्टी लेयर पेकिंग का कोई समाधान नहीं है। इसे भी जलने से पर्यावरण को नुकसान पहुंचने वाली जहरीली गैस बनेगी और जमीन में यह ख़त्म नहीं होगा।
मल्टीलेयर पैकिंग से सीधा मतलब टेट्रा पैक से है। जिसको अज्ञात सूत्रों या वजहों से सुरक्षित मान लिया गया है। ये सरकारो की मूर्खता है या जानबूझ कर मूर्ख होने की वजह है की सिंगल यूज प्लास्टिक को तो प्रतिबंधित किया हुवा है और टेट्रा पैक जैसे और भी खतरनाक तत्वों को खुली छूट दे रखी है।
मोदी सरकार चाहे छवि निर्माण के लिए सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबन्ध लगाया हो लेकिन सच्चाई लोगो के सामने से रोज गुजरती है। सिंगल यूज प्लास्टिक के साथ साथ मल्टी लेयर पैकिंग मटेरियल पर भी सरकार और आम जनता का ध्यान खींचने की कोशिश है। आपका टूथपेस्ट हो या नूडल्स का पैकेट या ज्यूस का पैकेट सभी मल्टी लेयर पैकिंग मटेरियल से बने है जिनका खत्म पृथ्वी के साथ ही होना है।
क्या हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए जीवन इतना कठिन क्र देंगे की वो पीढ़िया अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए लेब और कृत्रिम तरीको के लिए विवश हो जाये। अभी भी मौका है। हम अपनी गलतियों को सुधारे और सरकारों को भी समझाये की क्या गलत है। एक दो मंत्री बिकने का मतलब सरकार बिकना नहीं है। जनता को एक जुट हों ही पड़ेगा। नहीं तो वो नवम्बर या दिसम्बर दूर नहीं जब इन महीनो का तापमन 40 डिग्री से ऊपर न हो और खेत बंजर हो जाये।
प्लास्टिक कचरा कम करने के लिए आम जनता को ही कदम बढ़ाने होंगे। क्यों की सरकारे अपने में ही मस्त है।
हमें फ़िल्मी मोड या विचारो से आगे आना होगा। फिल्मो में कोई हीरो या नेता आ ही जाता है। लेकिन वास्तविक स्थिति में हम लोगो को ही पहल और शुरुवात करनी पड़ेगी। बजाये किसी स्टार्टअप किये जिसमे आप किसी के लिए आदर्श तो हो सकते है लेकिन समस्या का समाधान नहीं। आज भारत में ऐसे कई स्टार्टअप है जो प्लास्टिक के कचरे से कुछ न कुछ बना कर मिडिया में सुर्खियां बटोर रहे है। लेकिन प्लास्टिक निपटान से ज्यादा उत्पादन पर हमारा ध्यान होना चाहिए। और यही रास्ता है जब हम प्लास्टिक के कचरे का समाधान कर सकते है।
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वनवासी संस्कृति ही इंसानी भविष्य का आधार होगी !
अतिथि संपादक कौशल किशोर मिश्रा (आयुर्वेदिक चिकित्सक )
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जिओलाइट -आंते डिटॉक्स करने का बेहतरीन प्रदार्थ
फ़ूडमेन द्वारा विश्लेषित लेख
आप में से बहुत कम लोगो ने जिओलाइट (ZEOLITE) के बारे में सुना होगा। जिओलाइट एक प्राकृतिक खनिज है जिसका उपयोग सदियों से इसके विषहरण गुणों के लिए किया जाता रहा है। यह एक प्रकार का एलुमिनोसिलिकेट है, जिसका अर्थ है कि यह एल्यूमीनियम, सिलिकॉन और ऑक्सीजन से बना है। जिओलाइट में छोटे-छोटे छिद्रों वाली छत्ते जैसी संरचना होती है। जिससे यह भारी तत्वों के साथ चिपक जाता है। और उसे अपने साथ शरीर से बाहर ले आता है।
हाल के वर्षों में, स्वस्थ आंत बनाए रखने के महत्व पर काफी ध्यान दिया गया है। मानव आंतें पाचन, पोषक तत्वों के अवशोषण और अपशिष्ट उन्मूलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। हालाँकि, हमारी आधुनिक जीवन शैली, आहार विकल्प और पर्यावरणीय विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आने से आंतों को भारी नुकसान पहुंचता है। और जीवनशैली रोग डायबिटीज,आंतो में सूजन ,कैंसर ,और गैस की समस्याएं होती रहती है
जर्नल ऑफ एप्लाइड टॉक्सिकोलॉजी में प्रकाशित एक अध्ययन में मानव आंत में भारी धातुओं, जैसे सीसा, पारा और कैडमियम, साथ ही मायकोटॉक्सिन, कीटनाशकों और वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों (वीओसी) पर जिओलाइट का प्रयोग किया। परिणामों से संकेत मिला कि जिओलाइट में आंतों में हानिकारक पदार्थों के अवशोषण को कम करके विषहरण को सुविधाजनक बनाने की क्षमता है।
“पर्यावरण विज्ञान और प्रदूषण अनुसंधान” पत्रिका में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि जिओलाइट आंत में हानिकारक बैक्टीरिया के अवशोषण को कम करने में मदद कर सकता है।
“टॉक्सिकोलॉजी एंड एप्लाइड फार्माकोलॉजी” पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि जिओलाइट चूहों के शरीर से भारी धातुओं को हटाने में प्रभावी था। अध्ययन में पाया गया कि जिओलाइट चूहों के शरीर से सीसा, पारा, कैडमियम और आर्सेनिक को बांध सकता है और हटा सकता है।
जर्नल ऑफ क्लिनिकल गैस्ट्रोएंटरोलॉजी में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में आंत माइक्रोबायोटा पर जिओलाइट के प्रभावों पर शोध किया गया। शोध से पता चला कि जिओलाइट अनुपूरण ने हानिकारक बैक्टीरिया के प्रसार को रोकते हुए लाभकारी प्रजातियों के विकास को बढ़ावा देकर आंत बैक्टीरिया के संतुलन को सकारात्मक रूप से प्रभावित किया।
कई अध्ययनों से संकेत मिला है कि जिओलाइट्स भारी धातुओं, पर्यावरण प्रदूषकों और मायकोटॉक्सिन जैसे हानिकारक पदार्थों से प्रभावी ढंग से बंध सकते हैं।
ली एट अल द्वारा किया गया शोध। (2019) ने प्रदर्शित किया कि जिओलाइट अनुपूरण ने चूहे की आंतों में सीसे के संचय को काफी कम कर दिया, जिससे सीसा विषाक्तता का खतरा कम हो गया। इसी तरह, अरिकान एट अल द्वारा एक अध्ययन। (2020) में पाया गया कि जिओलाइट अनुपूरण से पर्यावरण प्रदूषण के संपर्क में आने वाली मछलियों की आंतों में पारे के स्तर में कमी आई है।
झांग एट अल द्वारा आयोजित एक अध्ययन। (2021) से पता चला कि सूअरों में जिओलाइट अनुपूरण ने आंत माइक्रोबायोटा की विविधता और संरचना में सुधार किया, जिससे स्वस्थ आंत वातावरण को बढ़ावा मिला।
मैड्रिगल-सेंटिलान एट अल द्वारा एक अध्ययन। (2018) ने कोलाइटिस से पीड़ित चूहों में जिओलाइट अनुपूरण के सूजन-रोधी प्रभावों की जांच की। परिणामों से पता चला कि प्रो-इंफ्लेमेटरी मार्करों में उल्लेखनीय कमी आई है और आंतों की अखंडता में सुधार हुआ है, जो आंतों की सूजन के लिए सहायक चिकित्सा के रूप में जिओलाइट की क्षमता का सुझाव देता है
स्मिथ एट अल द्वारा आयोजित एक यादृच्छिक, डबल-ब्लाइंड, प्लेसीबो-नियंत्रित परीक्षण। (2010) ने 100 प्रतिभागियों में भारी धातु विषहरण पर जिओलाइट अनुपूरण के प्रभाव की जांच की। अध्ययन में पाया गया कि जिओलाइट के सेवन से प्लेसीबो समूह की तुलना में रक्त में सीसा और पारा के स्तर में उल्लेखनीय कमी आई।
न्यूट्रिएंट्स” पत्रिका में प्रकाशित जिओलाइट पर शोध की समीक्षा ने निष्कर्ष निकाला कि जिओलाइट शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालने का एक सुरक्षित और प्रभावी तरीका है। समीक्षा में पाया गया कि जिओलाइट को शरीर से भारी धातुओं, कीटनाशकों और अन्य हानिकारक पदार्थों को हटाने में प्रभावी दिखाया गया है।
जॉनसन एट अल द्वारा एक अलग अध्ययन में। (2010 ), शोधकर्ताओं ने गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याओं वाले 50 प्रतिभागियों में आंतों के विषहरण पर जिओलाइट अनुपूरण के प्रभाव का आकलन किया। जिओलाइट के आठ सप्ताह के उपयोग के बाद, प्रतिभागियों ने मल त्याग में महत्वपूर्ण सुधार दिखाया और विष संचय से जुड़े लक्षणों में कमी दर्ज की।
उपरोक्त अध्ययन रिसर्च रिपोर्ट अदि में साफ साफ बताया गया है जिओलाइट कितना प्रभावशील तत्व है। लेकिन इसकी उपयोगिता को मिडिया और चिकित्सीय विज्ञान से जानबूझ कर दिखाया नहीं जाता है। क्यों की जिओलाइट प्रभावी होने के साथ साथ बहुत सस्ता भी है। जिससे मेडिकल लॉबी को भारी नुकसान हो सकता है।
फ़ूडमेन ऐसे ही वैकल्पिक तत्वों के बारे में जानकारी का संग्रहण कर रहा है।
जिओलाइट अपनी दिनचर्या में जोड़ने से पहले अपने चिकित्सक व विशेषज्ञ की राय जरूर लेवे