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क्या हिन्दुओ को आस्था के अनुसार पैकेज्ड फ़ूड का अधिकार नहीं ?

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हिन्दू आस्था के अनुसार क्यों नहीं है पैकेज फ़ूड ?

क्या भारत में आस्था के अनुसार पैकेज फ़ूड पाने का अधिकार  हिन्दुओ को नहीं है ?भारत आस्थाओ का देश है। और संप्रभुता के साथ साथ सामान नागरिकता व धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। 

भारत में खाद्य सुरक्षा के लिए भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण खाद्य मापदंडो खाद्य  प्रकार व जनहित को ध्यान में रखते हुवे भारतीयों के खाद्य एवं प्रोसेस फ़ूड का नियमन करता है। लेकिन क्या FSSAI के नियम भारत की बहुसंख्यक आबादी या हिन्दूओ आस्था के अनुसार के अनुरूप है ?

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है की FSSAI के अधिकांश नियम विदेशो से प्रेरित या नक़ल मात्र है। जिसे आनन फानन में बनाया व लागू किया गया था।

जिसमे अधिकांश नियम तो सामान है सिर्फ सजा के प्रावधानों को भारत के अन्य नियमो की तरह ढुलमुल और बचाव के अनुसार संशोधित किये गए है।कानून विदेशी कानूनों से प्रेरित है लेकिन इन नियमों को लागू करवाने से लेकर  सजा के प्रावधानों में ही आपको भारतीय कानून की झलक देखने को मिल जाएगी।
देश में अधिकतर विदेशी परम्पराओ और संस्कृति के अनुसार बनने वाले प्रोसेस फ़ूड की पैकिंग या लेबलिंग पर आपको हलाल या कोशर प्रमाणित दिख जायेगा। लेकिन किसी भी तरह से हिन्दू परम्पराओ के अनुसार कोई प्रमाणीकरण आपको नहीं दिखेंगे।


ऐसा नहीं है की ऐसा करने के प्रयास नहीं किये गए। कई बार सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं व मीडिया के एक खास तबके हिन्दुओ की परम्परा के अनुसार भोजन का प्रमाणीकरण करने की मांग की है।
लेकिन ऐसा संभव नहीं हुवा और न ही होना निकट भविष्य में संभव है। जिसकी खास वजह हिन्दुओ के भोजन के प्रति मान्यताओं और परम्पराओं का होना ही है।हिन्दुओ में अधिकतर भोजन शाकाहार ही है।और शाकाहार के लिए FSSAI हरी बिंदी (ग्रीन डॉट )लगा कर अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करती है।

हाल ही में रामदेव बाबा की कम्पनी पतंजलि के टूथपेस्ट में जेलीफिश के अंशो को लेकर एक महिला वकील ने याचिका लगायी थी। सिर्फ पतंजलि ही नहीं बल्कि कोलगेट जैसे उत्पादों ने हमेशा ग्रीन डॉट से हिन्दू उपभोक्ताओं को मुर्ख ही बनाया है। जबकि कई वर्षो तक बिना उपभोक्ताओ को बताये हड्डियों से बने कैल्शियम कार्बोनेट को टूथपेस्ट में मिलाया जाता रहा है। 

आस्थाओ के नाम पर राजनीती। लेकिन खाद्य क्यों नहीं ?

खुद FSSAI की माने और हिन्दू आस्था के अनुसार पैकिंग के  साथ देखे तो कई हरी बिंदी के उत्पादों में खाद्य अवयव के नाम पर कई ऐसे प्रदार्थ काम में लिए जाते है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मांस व चर्बी से जुड़े है। और यही एक मात्र कारण है की जब भी हिन्दू आस्था के अनुसार भोजन को प्रमाणीकरण की मांग उठी है।

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ऐसी मांगो का राजनीतिकरण कर के इसे प्रशासनिक रूप से खत्म कर दिया जाता है।आज देश में अधिकतर प्रोसेस फ़ूड उत्पादक जो एक विशेष आस्था वर्ग से आते है। अपने खुद के खाने में तो वो धार्मिक हो जाते है लेकिन अपने उत्पादों को वो भी किसी भारतीय आस्था या प्रमाणीकरण के पक्ष में नहीं है।

फ़ूडमेन की भी मांग है की भारतीय आस्थाओ और धार्मिकता विशेष कर हिन्दू आस्थाओ को ध्यान में रखते हुवे FSSAI भोजन प्रमाणीकरण की व्यवस्था करे।  जब आस्थाओ के नाम पर सुप्रीमकोर्ट कई महत्वपूर्ण फैसले दे सकती है तो उसी आस्था के नाम पर भोजन की स्वतंत्रता और प्रोसेस फ़ूड में आस्थाओ के अनुसार प्रमाणीकरण होना चाहिए। और इसके लिए हिन्दू आस्थाओ को मानने वालो को एक होना पड़ेगा।

आज देश में हिन्दू धर्म के खतरों को लेकर सोशल मिडिया व मुख्य धरा मिडिया छाती पीट पीट कर अलाप करने में मग्न है। वही इन्ही माध्यमो से पैकेज फ़ूड के विज्ञापन प्रसारित होते है।

जो आस्थाओ और विश्वास दोनों को डिगाने का काम बहुत ही चुपके से कर जाते है। और हिन्दू आस्थाओ के साथ विश्वासघात करते है। धर्म कभी खतरे में नहीं होता है। अगर खतरे में ही कोई है तो वो हिन्दू आस्था जिसे हर रोज पैकेज फ़ूड में खाद्य अवयव मिला कर खंडित किया जा रहा है। 

हिन्दू आस्था के अनुसार क्यों नहीं है पैकेज फ़ूड ?

भारत देश में जहा हिन्दू आबादी बाहुल्य में है। हर तरह के पैकेज फ़ूड पर सिर्फ अंग्रेजी भाषा और ई-कॉड की ही भाषा लिखी होती है। क्या इसे हिंदी और स्थानीय क्षत्रिय भाषा में नहीं होना चाहिए ?

ये काम अब तक इस लिए नहीं हुवा है क्यों की जनता में यह मुद्दा है ही नहीं और न ही मिडिया द्वारा इसे मुद्दा बनाया गया है। 

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फूडमेन अपने प्रयासो से इसे जनता के समकक्ष इन्ही खाद्य मुद्दों को लाने की कोशिश करता आया है। 

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