फ़ूड लेबल : इ कोडिंग के सच
E -150 ( सल्फाइट )से शरीर को कोई लाभ नहीं किन्तु कई तरह से नुकशान पंहुचा सकता है।
सल्फाइट (sulfite ) एक लम्बी चेन : देख भाल के
कंज्यूमर कार्नर
एंटीऑक्सीडेंट
क्या होते है एंटीऑक्सीडेंट ? कैसे करते है काम ?
एंटीऑक्सीडेंट हम हर रोज किसी न किसी रूप में सुनते व उपभोग करते है
एंटीऑक्सीडेंट हम हर रोज किसी न किसी रूप में सुनते व उपभोग करते है। लेकिन एंटीऑक्सीडेंट के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं होती है। एंटीऑक्सीडेंट को समझने के लिए ऑक्सीडेंट को समझना होगा। “ऑक्सीडेंट” ऑक्सीजन के वह अणु होते है जो किसी भी कारण से इलेक्ट्रॉन मुक्त या अपने इलेक्ट्रॉन खो देते है। तथा किसी भी अणु के साथ जुड़कर या उसके इलेक्ट्रॉन अवशोषित कर लेते है।
जिससे एक नए तरह के अणु बन जाता है। तथा जिस अणु से इलेक्ट्रॉन अवशोषित हुवा है वो किसी और अणु से इलेक्ट्रॉन की पूर्ति करता है और यह क्रम चलता रहता है।ऑक्सीडेंट का एक मुख्य प्रभाव यह है कि वे मुक्त कण(फ्री रेडिकल्स ) उत्पन्न कर सकते हैं। मुक्त कण वे होते हैं जिनमें अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन होते हैं और वे शरीर में नुकसान पहुंचा सकते हैं, क्योंकि वे कोशिकाओं के अंदर विभिन्न प्रकार के कार्यों को प्रभावित कर सकते हैं।इन्ही तत्वों को अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन दे कर या ले कर इन अणुओं को निष्क्रिय करने वाले पदार्थों को ही एंटीऑक्सीडेंट कहा जाता है
इसलिए, हमारे शरीर में ऑक्सीडेंट के प्रभाव को नियंत्रित करना महत्वपूर्ण है। अपने आहार में एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर खाद्य पदार्थों को शामिल करके आप अपने शरीर को ऑक्सीकरण के नकारात्मक प्रभावों से बचा सकते हैं और एक स्वस्थ जीवन जी सकते हैं।
ऑक्सीडेशन से क्या होता है _ सरल भाषा में कहे तो हमारे वातावरण में ऑक्सीजन भरपूर है और हर स्थान पर है। ऑक्सीजन के कण बहुत ही प्रतिक्रियात्मक होते है। तथा अवसर मिलते ही दूसरे तत्वों के साथ प्रतिक्रिया आरम्भ कर देते है। जिसे ऑक्सीडेशन कहते है। आपने ने देखा होगा की सेव को काट कर रखने पर उस पर धीरे धीरे हल्का कालापन आ जाता है। यानि की हवा में मौजूद ऑक्सीज़न सेव के तत्वों में ऑक्साइड बनाना शुरू कर देती है और कुछ देर बाद कटा हुवा सेव खाने के लिए उपयुक्त नहीं रहता है।
वातावरण वाले इसी प्रक्रिया को रोकने के लिए एंटीऑक्सीडेंट तत्वों का उपयोग होता है।
तैयार उत्पाद की पैकिंग भी ऑक्सीडेशन को रोकती है। लेकिन सावधानी और उत्पाद की सुरक्षा हेतु एंटीऑक्सीडेंट का उपयोग होता है। विशेष के द्रव्य उत्पादों व वसा युक्त उत्पादों में एंटीऑक्सीडेंट तत्वों का उपयोग होता है। उत्पाद में खाद्य अवयवों की उपस्थिति भी उत्पाद को बदल सकती है। एंटीऑक्सीडेंट उन अवयव की उपस्थिति में भी उत्पाद को ख़राब होने से बचाते है। एक और तथ्य ये भी है की एंटीऑक्सीडेंट प्राय कोई न कोई विटामिन या पोषक तत्व होते है। अधिकतर वसा संबंधी उत्पादों जैसे कॉस्मेटिक क्रीम या लोशन ,तेल घी मक्खन आदि में में विटामिन ई व सी का उपयोग होता है।
एंटीऑक्सीडेंट हमारे शरीर के लिए महत्वपूर्ण है। इसलिए जितना हो सके उतना प्राकृतिक रूप से विटामिन व अन्य पोषक तत्वों का उपयोग करना चाहिए। इन तत्वों की अधिकता भी शरीर के लिए नुकसानदायक भी हो सकती है। अधिक मात्रा में पोषक तत्व शरीर की उन कोशिकाओं के लिए भी पोषण देने का काम करते है। जिसकी जरूरत शरीर में नहीं होती। और कई तरह की बीमारियां उत्पन्न हो जाती है।
हाल ही में हुए कई पश्चिमी देशो के शोध और रिसर्च से पता चला है की अत्यधिक या जरूरत से ज्यादा एंटीऑक्सीडेंट कैंसर ,पेट के कैंसर ,बवासीर ,जैसी कई पेट सम्बन्धी कैंसर के कारक भी हो सकते है। तथा कई तरह से शारीरिक बीमारियों के लिए जिम्मेदार हो सकते है। कैंसर के इलाज में काम आने वाली कई दवाएं एंटी एंटीऑक्सीडेंट व एंटी विटामिन होती है।
गठिये के इलाज में भी एंटी विटामिन दवाओं का उपयोग किया जाता है। आज कई एंटीऑक्सीडेंट दवाओं का प्रचार प्रसार अखबारों और ब्लॉग व इंटरनेट के माध्यम से किया जा रहा है। ऐसे में आप को कौन सा एंटीऑक्सीडेंट लेना चाहिए इसके लिए आप को अपने चिकित्सक से परामर्श जरूर करना चाहिए।
कंज्यूमर कार्नर
केराजीनन (carrageenan) – E-407-407a
केराजीनन से होने वाली पेट की गड़बड़ी को केराजीनन ब्लॉट कहा जाता है।
केराजीनन ( carrageenan ) किसी भी प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ में चिपचिपाहट बढ़ाने के लिए केराजीनन ( carrageenan ) का उपयोग किया जाता है। यह खाद्य सामग्री सूची में पैकेज्ड खाद्य लेबल पर E-407-407a के रूप में दिखाई देता है। लगभग 50% प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों में कैरेजेनन मिलाया जाता है।
यहां तक कि धुंध पैदा करने वाले प्रोटीन को हटाने के लिए इसका उपयोग बीयर और वाइन में भी किया जाता है। केराजीनन का उपयोग बेकरी और बेकरी क्रीम, बिस्कुट, ब्रेड आटा गूंथने, टॉफी, चॉकलेट, आइसक्रीम, टूथपेस्ट, दवाओं में सहायक पदार्थ के रूप में किया जाता है। क्योंकि इससे शरीर को कोई सक्रिय योगदान नहीं मिल पाता है. लेकिन एक मात्रा या एक समय के बाद कई लोगों में इसके गंभीर परिणाम देखने को मिले हैं।
केराजीनन समुद्री लाल शैवाल (चैन्ड्रस क्रिस्पस / केराजीनन मॉस) से तैयार किया जाता है। केराजीनन तीन प्रकार के होते हैं – कप्पा, आयोटा (नरम जेल के लिए), और लैम्ब्डा (जो जेल नहीं बनता और डेयरी उद्योग में उपयोग किया जाता है)। नकली डेयरी उत्पादों में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। सामान्य परिस्थितियों में, केराजीनन का अनुशंसित दैनिक सेवन शरीर के वजन के प्रति किलोग्राम 75 मिलीग्राम है। यानी एक सामान्य व्यक्ति जिसका वजन 75 किलोग्राम है, के लिए 5-6 ग्राम से अधिक कैरेजेनन युक्त भोजन खाना सुरक्षित है।
इससे अधिक और लगातार खाने से कई गंभीर परिणाम हो सकते हैं। केराजीनन को जिलेटिन के शाकाहारी विकल्प के रूप में देखा जाता है। लेकिन अपनी स्थापना के बाद से ही केराजीनन विवादों में घिरा रहा है। कई बार यह उत्पाद पर प्रदर्शित भी नहीं होता है। कैरेजेनन का वैश्विक बाजार 2021 में 66 बिलियन रुपये से अधिक होने की उम्मीद है और यह हर साल 5.8 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ रहा है।
केराजीनन का उपयोग 200 वर्षों से किया जा रहा है। इसे 1935 में एक खाद्य सामग्री के रूप में मान्यता दी गई थी। हालांकि, समय के साथ प्रयोगों और परीक्षणों के माध्यम से, कैरेजेनन को मात्रा और सीमा में उपभोग के लिए सुरक्षित माना जाता है।केराजीनन से होने वाली पेट की गड़बड़ी को केराजीनन ब्लॉट कहा जाता है। जो की केराजीनन की अधिक मात्रा का शरीर में पहुंचे से होता है। नौजवानो और बच्चो में आइसक्रीम और डब्बाबंद फलो के ज्यूस का काफी चलन है। जिसमे केराजीनन की मात्रा होती है। यहाँ तक की कई डेयरी उधोग व पैकेज्ड दूध बेचने वाली कम्पनी भी दूध को गाढ़ा दिखाने और मिलावट को छुपाने के लिए भी केराजीनन का उपयोग करती है
चूहों पर किए गए कई परीक्षणों में चूहों में आंतों का कैंसर, प्रजनन क्षमता में कमी, वजन बढ़ना आदि पाया गया। कई खाद्य विशेषज्ञों का मानना है कि केराजीनन आंतों में सूजन बढ़ाता है। केराजीनन के लगातार सेवन से आंतों का कैंसर, वजन बढ़ना, मधुमेह हो सकता है। और प्रजनन अंगों में कमजोरी आती है। कुछ खाद्य विशेषज्ञ खाद्य सूची से कैरेजेनन को हटाने की वकालत करते हैं। क्योंकि केराजीनन शरीर को कोई फायदा नहीं पहुंचाता।
डिब्बाबंद खाद्य उद्योग ने हमेशा किसी उत्पाद की सामग्री सूची को छिपाने की कोशिश की है। या तो किसी उत्पाद का उल्लेख ही नहीं किया जाता या अंतरराष्ट्रीय कोडिंग या बेहद वैज्ञानिक नामकरण का सहारा लेकर ग्राहक को अंधेरे में रखा जाता है। और उत्पाद में खाद्य सामग्री की मात्रा ही छुपी होती है। जिसके कारण ग्राहक को खाद्य सामग्री की कथित सुरक्षित मात्रा की जानकारी नहीं हो पाती है और ग्राहक को मजबूरी में स्वास्थ्य एवं दवा उद्योग की ओर जाना पड़ता है।
हमारे रोज के खान पान में ऐसे कई तत्व है। जिनकी कुछ मात्रा सेवन के लिए सुरक्षित होती है। लेकिन सिमित मात्रा से अधिक ये खाद्य अवयव नुकसान पंहुचा सकते है। लेकिन हमारी लापरवाही और अनदेखी के चलते हम रोज ही सिमित मात्रा की सीमा तोड़ते रहते है और बीमारियों का शिकार हो जाते है।
ब्लॉग
चीनी नहीं कृत्रिम मिठास है खतरनाक
हम भारतीय ही थे जिन्होंने गन्ने से चीनी बनाने के विज्ञान की शुरुवात की थी। हम भारतीयों ने ही 350 ईस्वी में गुप्त वंश के दौरान ही चीनी को क्रिस्टलीकरण करने की खोज कर ली थी।हालाँकि कई भारतीय ग्रंथो और धार्मिक किताबो में चीनी और मिश्री ,खाण्ड और गुड़ का जिक्र मिलता है। यानी की हम भारतीय सदियों से चीनी खाते आये है। और चीनी से होने वाले रोगो की भी जानकारी हमारे इतिहास में दर्ज है।विशेष रूप से “मधुमेह”।लेकिन आज उसी चीनी को लेकर एक अलग ही कहानी सुनाई जा रही है। बतायी जा रही है।पिछले सात दशकों से हम भारतीयों व विश्व भर में डायबिटीज के बढ़ते प्रकोप में चीनी को ही जिम्मेदार बता दिया जाता है। जो की आधा सच है।
कुछ दिनों पहले रेवंत हिमतसिंग्का के बोर्नविटा में कितनी चीनी है का वीडियो वायरल हुवा था। जिसमे रेवंत ने बोर्नविटा में कितनी चीनी है का खुलासा किया। हालाँकि बोर्नविटा के नोटिस पर रेवंत ने सार्वजानिक माफ़ी माँग ली। जो की अभी भी संदिग्ध है। तथा एक बार फिर से रेवंत ने अपने वीडियो शेयर करने शुरू कर दिए है।रेवंत की तरह और भी कई लोग उत्पादों में चीनी का विश्लेषण करने लगे है। जो की एक अच्छी शुरुवात है जनता द्वारा उत्पादों की सामग्री का विश्लेषण खाद्य सुरक्षा व प्रोसेस फ़ूड इंडस्ट्री से होने वाली जीवनशैली बीमारियों के विरुद्ध एक मिल का पत्थर साबित हो सकता है।
लेकिन इसमें चिंता का विषय चीनी को लेकर भ्रम की स्थिति है। जिसे सीधा डाइबिटीज से जोड़ कर देखा जाता है। जबकि यह सच्चाई का एक पहलू मात्र है।इस बात में कोई शक नहीं की चीनी डायबिटीज के कारणों में से एक कारण हो सकता है। लेकिन सिर्फ चीनी ही डायबिटीज का कारण नहीं हो सकती है। यह भ्रम प्रोसेस फ़ूड व दवा बनाने वाली व सुगर फ्री बनाने वाली कम्पनीज का सयुक्त अजेंडा है। विशेष रूप से पश्चिमी व यूरोपियन देशो में चीनी को बदनाम करने और कृत्रिम मिठास के तत्वों से ध्यान हटाने के लिए कथा कथित “सुगर माफिया”,शुगर इंडस्ट्रीज आदी नामो का उपयोग किया जाता है।
जबकि सच्चाई ये है की 1950 के दशक के बाद से ही प्रोसेस फ़ूड में कृत्रिम मिठास (चीनी) धीरे धीरे अपने पांव पसारने शुरू कर दिए थे। और आज ऐसा दौर है की लगभग हर मीठा प्रोसेस फ़ूड कृत्रिम मिठास के साथ ही आता है।तथा डाइबिटीज का कारण बनता है। लेकिन बदनाम चीनी को ही किया जाता है।
इसलिए अगली बार जब भी किसी उत्पाद की सामग्री देखे तो चीनी की मात्रा के साथ साथ कृत्रिम मिठास के अवयव को भी पहचानना सीखे। अधिक जानकारी के लिए पढ़े
मीठे जहर : वैकल्पिक स्वीटनर (Sweetener ) – E -950-E -969
फ़ूड लेबल : इ कोडिंग के सच
पैकेट की सामग्री के हेर फेर: MSG(मोनोसोडियम ग्लूटामेट)
जैसा की हम पिछले लेखो में बता चुके है की मोनोसोडियम ग्लूटामेट या अजीनोमोटो ( MSG-,E -621 ) हमारे दिमाग और स्वाद व तंत्रिका तंत्र के लिए कैसे खतरनाक होता है।और किस तरह से ये हमें खास खाद्य पदार्थ के प्रति आकर्षित या कहे की खाने का गुलाम बनाता है। लेकिन इसकी खाद्य में एक सीमा तय होती है। ई-कोड्स को समझने वाले तुरंत ही सामग्री लिस्ट में MSG को पढ़ लेते है। लेकिन सीमित मात्रा की पाबन्दी के चलते ये खाद्य निर्माता चोर रस्ते या कानूनों के लूप हॉल का फायदा उठाते हुवे MSG को छुपाते हुवे और MSG से बने या MSG जैसे तत्वों का उपयोग धड़ल्ले से करते है। इनको कभी ई-कोड में तो कभी इनके वैज्ञानिक नामों से पैकिंग की सामग्री सारणी में दिखाया जाता है। जिनको समझ पाना या इनके ई-कोड को याद रख पाना किसी महामानव के बस की बात है। आम आदमी इतना ध्यान नहीं रख पाता है।
जैसा की MSG की खाद्य सीमा तो तय है ठीक उसी तरह MSG की तरह के अन्य प्रदार्थो की तय सीमा होती है। लेकिन कितने अवयव डाले जाये उसकी कोई सीमा नहीं है। खाद्य उत्पादक इसी का फायदा उठा कर तय सीमा में कई तत्व एक साथ डाल कर अपने उत्पाद की बिक्री बढ़ाने और उपभोक्ता को आदी बनाने का काम बेखौफ और धड़ल्ले से किये जा रहे है। जिसका खामियाजा आपको और आपके बच्चो को भुगतना पड़ रहा है।
MSG और उसके अन्य खाद्य अवयव लगातार इस्तमाल करने से विशेष कर छोटे बच्चो में इनके स्वाद को लेकर एक आकर्षण बन जाता है। जो बाद में अभिभावकों की मज़बूरी।
इससे बच्चो में अन्य खाद्य प्रदार्थो में अरुचि ,पेट संबंधी बीमारिया ,दस्त उल्टी। तथा वजन का ना बढ़ाना ,चिड़चिड़ापन व उदासीनता बढ़ जाती है। साथ ही बच्चो को त्वचा संबंधी दाद फुंसिया आदि निकलती रहती है। बच्चो में अन्य खाद्य की अरुचि ही आगे चलकर कई तरह के खाद्य प्रदार्थो की एलर्जी का रूप ले सकती है। इसलिए किसी भी पैकेट पैक खाद्य सामग्री को ध्यान से पढ़े तथा जहाँ पर भी टेस्ट इन्हांसर लिखा हो तो तुरंत इंटरनेट के माध्यम से उक्त प्रदार्थ का नाम या कोड की जानकारी जरूर ले कर अपने फैसले लेवे।आपकी ये छोटी सी अनदेखी आपको या आपके अपनों को गंभीर बीमारियों के तरफ ले जा सकती है।
MSG और MSG जैसे सम्बंधित प्रदार्थो की लिस्ट निम्न है
E -621 , E -622 ,E -623 ,E -624 ,E -625 E -626 ,E -627 ,E -628 ,E -629
E -630 ,E -631 E -632 ,E -633 ,E -634 E -635