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फैक्ट्री मेड मांस- FDA की हरी झंडी: भविष्य बदल देगी

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फैक्टरी मेड दूध और फैक्ट्री मेड मांस (Lab Grown Meat) और GMO फैसले हमारी आने वाली नस्लों की तबाही नहीं तो गुलामी जरूर ले आएँगी।
 आज जिनको नकली अंडे बोल कर उनको पहचानने और नुकसान के बारे में जो चर्चाये सोशल मिडिया में है। ये ही फैक्ट्री मेड अंडे ,मांस ,दूध पनीर आने वाले भविष्य की मज़बूरी और जरुरत बन जाएगी।
खाद्यान में नई क्रांति
भविष्य के खाद्य बाजार पर होने वाला है  पूंजीपतियों का कब्ज़ा
एक नई खाद्य क्रांति जल्दी ही दुनिया भर में होने वाली है। जिसका दावा  है की भविष्य के खाद्य संकट से निपटने का कारगर तरीका हो सकता है।
जल्द ही बाजार में फेक्ट्री में उत्पादित मांस आने वाला है।हालाँकि भारत में कुछ स्टार्टअप ने इस पर काम शुरू कर दिया है 
फ़िलहाल अमेरिका की खाद्य एवं औषधि विभाग ( FDA ) ने अपसाइड फ़ूड(Upside foods ) को फैक्ट्री मेड मांस बनाने और बेचने की छूट दे दी गई है। इससे पहले सिंगापूर में फैक्ट्री मेड मांस बेचा जा रहा है।
फेक्ट्री मेड मांस के लिए किसी जानवर को नहीं मारा जाता है। बल्कि जानवर के स्वस्थ प्रारंभिक कोशिका (Stem  cell )को अनुकूल वातावरण में रख कर कोशिका को मांसपेशियों की कोशिका बनने के लिए निर्देशित करके उत्पादन किया जाता है।उत्पादित मांस पशु मांस की तरह ही होता है लेकिन इसमें हड्डियों और रक्त वाहिनियों का आभाव होता है। इसे सरल भाषा में मांस का लोथड़ा कह सकते है। इसे पूर्णतया हिंसा रहित मांस कहना जल्दबाजी होगा।
हमारे देश में कई धर्मो के अनुयायी मांस का सेवन नहीं करते तथा मांस के लिए पशु वध का विरोध करते है। इसलिए भारत के लिए ये खबर महत्त्व नहीं रखती है। लेकिन एक बहुत बड़े वैश्विक षड्यंत्र को समझने की जरुरत है।
हालही के 5 सालो में देश में वगेनिजम  और शाकाहार को बढ़ावा देने वाले कई संगठन सक्रीय है। जिनकी फंडिंग विदेशो से की जा रही है। ये कथा कथित पशुप्रेमी या तो अप्रवासी भारतीय होते है। या किसी बड़ी विदेशी  कम्पनी से काम छोड़ कर भारत में पशु प्रेम ,शाकाहार और वीगन मांस ,पनीर ,और दूध का प्रचार प्रसार सोशल मिडिया और विडिओ द्वारा करते नजर आते है।
क्यों की आने वाले एक दो साल बाद फैक्ट्री मेड दूध भारतीय बाजार में में बिकने के लिए तैयार है। वही साथ के साथ अब फैक्ट्री मेड मांस भी तैयार है। पशु पालन करने का मूल कारण ही दूध अंडा और मांस है। जो की देश के गरीबो और किसानो  के अधीन है। असल में सारा षड्यंत्र खाद्य शृंखला को असंगठित क्षेत्र या गरीब और मजदुर वर्ग से छीन कर पूंजीपतियों को सौंपने के लिए है ।
GMO फसलों को भी इसी अंतर्गत उतारा गया है। ताकि किसान हर फसल के बाद बीजो के लिए कम्पनियो पर ही निर्भर रहे। और पशुपालन व्यवसाय पूर्ण रूप से समाप्त हो जाये। हालही में यूरोप में किसानो को अपने मवेशियों की संख्या में 30 प्रतिशत की कमी करने के सरकारी आदेश  हुवे जिसका किसानो ने विरोध भी किया। दरअसल में वैज्ञानिक मान्यता है की मवेशियों से निकलने वाली मीथेन गैस और कार्बन उत्सर्जन के कारण भी धरती का तापमान बढ़ रहा है। इसलिए मज़बूरी में पशु सख्या पर नियंत्रण करने की आवशयकता है।

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