सच का सामना
अपनों के ही स्वार्थ का परिणाम था बंगाल का अकाल
भारत में अकाल और सूखे का इतिहास रहा है खोपड़ी अकाल ,चालीसा अकाल ,छप्पनिया अकाल ,जैसे अकाल प्राकृतिक कारणो से रहे लेकिन 1943 का अकाल एक सुनियोजित षड़यंत्र था।
कल्पना कीजिये की आप को सजा के तौर पर एक दिन का भोजन नहीं दिया जाये और उस सजा पर आपके माता पिता भी सहमत हो तो आपको क्या लगेगा ? अपनी कल्पना बढ़ाते है अब तीन दिन खाना ना खाने की सजा और स्थिति भी वही। शायद अब आप अपने माता पिता के असली होने लेकर शंकित हो जाये। आपको लग सकता है आप गोद लिए हो। आप में काफी नकारात्मक विचार आएंगे।
1943 से 1944 तक भारत के तत्कालीन बंगाल जिसमे आज बांग्लादेश भी आता था उसकी करोडो जनता अपने नेताओ समाजसेवियों और अंग्रेज सरकार से खाने की उम्मीद में मार दी गई। बड़े बड़े कोंग्रेसी नेता राष्ट्रवाद और आजादी की चिंगारी दिल में लिए भाषणों में अंग्रजो की नीवे हिला देने वाले नेता मुँह में दही जमा कर बैठ गए थे। बंगाल में छोटे छोटे बच्चे भूख से सिसक सिसक कर मर गए और अंग्रेजो के पिट्ठू और भारतीय अधिकारी क्लब और फार्म हाउस में कूल्हे मटकाने व्यस्त थे।
बंगाल अकाल जिसकी तुलना होलोडोमोर या होलोकॉस्ट से या ग्रेट चाइना अकाल से भी कर सकते है क्यों की ये सारी घटनाएं कुदरती नहीं थी। बल्कि श्रेष्ठता की भावना से किया हुआ कुकृत्य था ।
1943 द्वितीय विश्व युद्ध का दौर था जापान ने चीन पर हमला कर जीतते हुवे म्यांमार (बर्मा ) तक आ चुका था
ब्रिटेन भी युद्ध में कूद चूका था ब्रिटेन की अधिकतर फौजो में भारतीय सैनिक ही थे। तथा ब्रिटेन अलग अलग मोर्चो पर लड़ रहा था। ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने जानबूझ कर बंगाल से रशद सामग्री का निर्यात शुरू कर दिया था। जिसके चलते बंगाल में 30 से 40 लाख लोग भूख से मर गए।
इंटरनेट पर इस घटना की जानकारी है। लेकिन ताज्जुब इस बात को लेकर है की स्कुल की किताबो में इस घटना को लेकर कोई जिक्र सिर्फ बंगाल में 1943 में अकाल पड़ा था की सूचना मात्र तक है।
क्यों ? अंग्रेजो ने भारत के साथ जो क्रूर कृत्य किये थे उनका इतिहास पढ़ाया जाता रहा था लेकिन 1943 के अकाल जो अंग्रेजो की राजनीती की वजह से हुया था जिसमे लाखो लोग भूख से ऐड़िया रगड़ रगड़ कर मर गए थे। इस घटना पर परदेदारी क्यों ?
क्योंकी जब बंगाल भूख से तड़प रहा था तब भारत को आजाद करने की बातचीत हो रही थी।
लेकिन इस देश की महानता रही की किसी इन्सान ने भूख में तड़प कर दूसरे इंसान को नहीं खाया
विडंबना थी अपने बच्चो को भूख की तड़प में तड़पाने से अच्छा किसी ने नदी में तो किसी ने कुओ में अपने बच्चे फैंक दिए। महिलाओं ने बच्चों की भूख मिटाने के लिए वेश्यावृत्ति करने को मजबूर हो गई।
लेकिन दुख इस बात का भी रहा की मीडिया चुप थी नेता चुप थे लेकिन इस देश का अमीर काला अंग्रेज पार्टियों में ही व्यस्त था।
अंग्रेज भारतीयों से नफरत करते थे लेकिन वो कौन भारतीय थे जिन्होंने इस त्रासदी में गरीबो की मौत का तांडव देखते रहे।